क्यों ना हम भी डाले एक आहूती

क्षमा शर्मा

देश में गाँधी जी की जयंती 2 अक्टूबर से स्वच्छता अभियान शुरू होना है। नारा है स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का मानना यह भी है कि सफाई से न केवल बीमारियों में कमी आएगी बल्कि पर्यटन भी बढ़ेगा। यही नहीं कूड़े के भी विविध उपयोग करके आय के साधन विकसित किए जाएँगे। हालांकि 2 अक्टूबर से पहले ही यह अभियान शुरू हो चुका है। हर साल होने वाली केन्द्र सरकार के कर्मचारियों की छुट्टी भी रद्द कर दी गई है। विभिन्न मन्त्रालयों और उनके विभागों को इस अभियान में लगाया गया है। जैसे कि यदि रेल मन्त्रालय है तो रेलवे से जुड़े तमाम विभागों और रेलवे स्टेशन की सफाई की जिम्मेदारी उसकी है। देश के सात हजार से अधिक प्लेटफॉर्म की सफाई होनी है। यदि मानव संसाधन मन्त्रालय है तो तमाम स्कूलों-कॉलेजों की सफाई के बारे में उसे सोचना है। मोदी कैबिनेट के मन्त्री इन दिनों झाड़ू हाथ में पकड़े झाड़ू लगाते दीख रहे हैं। पता नहीं केजरीवाल अपनी झाड़ू को दूसरी पार्टी के हाथ में चले जाने पर क्या सोच रहे होंगे।

सच तो यह है कि हमारे देश में सफाई कभी मुद्दा ही नहीं रहा है। सोच तो यह है कि अपने घर का कूड़ा दूसरे के घर के सामने डालो, बस हो गई सफाई। कहीं भी थूको, कहीं भी खा-पीकर कुछ भी फैलाओ। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं। किसी तरह का न जुर्माना, न सजा। जो जगहें लोगों की सुविधा के लिए बनाई गई हैं जैसे पार्क, अस्पताल, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे उन सब पर फैले कूड़े को देखकर कौन कह सकता है कि लोगों को देश की सफाई की कुछ खास चिन्ता है।

प्रधानमन्त्री का कहना है कि 2019 में जब गाँधीजी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी तब हम उसे स्वच्छ भारत के तोहफे के रूप में मनाएँ। क्योंकि गाँधी जी को खुद सफाई बहुत पसन्द थी। हालांकि इस अभियान में लोग कितनी दिलचस्पी दिखाएँगे, कहा नहीं जा सकता क्योंकि हमारे यहाँ इस तरह के कामों की जिम्मेदारी अक्सर दूसरों की मान ली जाती है। एक उदाहरण से ही माना जा सकता है कि लोग किस तरह अभी तक इस अभियान को सिर्फ हँसने का मामला समझ रहे हैं। मन्त्रियों को झाड़ू लगाते देख कोई-कोई तो यह भी कहता पाया गया कि अरे ये क्या झाड़ू लगाने के लिए मन्त्री बने थे।

हमारे ही देश में निजी प्रयासों से कितनी नदियों को साफ किया गया है। कई गाँवों और शहरों की सड़कें लोगों ने श्रमदान करके बनाई हैं। तो क्यों न ऐसे प्रयास पूरे देश के स्तर पर किए जाएँ। दूसरे देश इतने साफ-सुथरे हो सकते हैं तो हम क्यों नहीं। इस यज्ञ में हम भी एक आहूति डालें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें।

मेरे घर के पास एक बड़ा परिसर है। यहाँ दूध और सब्जी बेचने वाली मदर डेयरी है। निजी क्षेत्र का एक बैंक है। कॉफी की बड़ी और मशहूर दुकान है। एक डोसा वाला, कई फल वाले, ब्रेड अण्डा बेचने वाला, पान वाला तथा कई अन्य दुकानें भी हैं। जो जगह खाली पड़ी है, वहाँ पिछले दिनों से एक टैक्सी वाले की टैक्सियाँ खड़ी होने लगी हैं। 2-3 ब्यूटी पार्लर भी हैं। यहाँ हरदम लोगों का आना जाना लगा रहता है। आसपास के युवाओं के लिए यह जगह काटने, यार-दोस्तों से मिलने का एक अच्छा अड्डा है। कई बार आस-पास के स्कूलों के बच्चे भी यहाँ बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं।

इतना लोकप्रिय स्थान होने के बावजूद यहाँ बेहद गन्दगी है। शायद देश में स्वच्छता अभियान शुरू होने के बावजूद इस तरफ किसी का ध्यान नहीं गया है। हाल ही में एक दिन मैं सब्जी लेने गई थी। तब मदर डेयरी के मालिक से कहा कि प्रधानमन्त्री ने जो सफाई योजना शुरू की है, आप सब भी मिलकर इस जगह कि सफाई क्यों नहीं कर लेते। उसने कुछ गुस्से और कुछ मजाक उड़ाने वाली नजरो से मुझे देखा। फिर कहा- प्रधानमन्त्री कर सकते है। हम नहीं कर सकते। हम तो अपना काम ही ठीक से कर लें और लोग करने दें तो यही बड़ी बात है। मैने पूछा- क्या मतलब तो बोला अजी कई बार सवेरे-सवेरे आओ तो ऐन दरवाजे पर इतना कूड़ा बिखरा मिलता है। जान बूझकर डाल जाते हैं जिससे कि परेशानी हो। कुछ कहो तो लड़ने-मरने के लिए तैयार हो जाते हैं। साथ में जो पार्क है, उसका सारा कूड़ा बटोरकर यहाँ फेंकते हैं। एक बार कहा तो बोले- तेरे बाप की है यह जगह। कई बार सौ-सौ रुपए देकर यह जगह साफ करा चुका हूँ। मगर कब तक करें।

यह सिर्फ एक कॉलोनी की एक छोटी सी जगह की बात है। पूरे देश की तस्वीर कैसी होगी। वही बात बार-बार साबित होती है कि अपना कूड़ा दूसरे के घर, दूसरे के सिर। बहुत लोग बदला लेने के लिए दूसरे के ऊपर कूड़ा फेंकते हैं। इसालिए हमें यह योचना ही होगा कि किय तरह हम सफाई को अपने जीवन का अंग बनाएँ। सरकार से ही उम्मीद न करें। सरकार गंगा की सफाई के बारे में सोच रही है। इस पर अब तक अरबों रुपए खर्च हो चुके हैं और होने वाले है। गंगा इसी बात से साफ नहीं होगी कि इसमें गिरने वाले नाले, औद्योगिक कचरा और सीवेज उसमें न जाए। बल्की जहाँ-जहाँ से गंगा गुजरती है उन शहरों गाँवों के लोग यदि तय कर लें कि वे गंगा में गन्दगी नहीं डालेंगे, उसमें थूकेंगे नहीं, प्लास्टिक के कचरे को कूड़ेदान में डालेंगे तो कोई वजह नहीं कि गंगा साफ न हो। यही बात शहरों की सफाई के बारे में भी है। लोगों को जागरूक करना होगा, लोगों को जागरूक होना होगा। हर एक आदमी यदि तय कर लेगा कि चाहे कुछ भी हो जाए वह कूड़ा नहीं फैलाएगा और अगर कोई दूसरा कूड़ा फैलाता है तो उससे लड़ने की बजाए, मन ही मन उसे साफ करते हुए, उसके फैलाए कूड़े को कूड़ेदान में डाल देगा तो कुछ बात बन सकती है। यही गाँधी जी की शिक्षाओं का सही अनुसरण होगा।

2019 तक का समय अगर हमारे पास है तो यह लम्बा समय है। देश के सवा अरब लोग अगर यह तय कर लेंगे कि देश को कूड़े और रोगों से मुक्ति दिलानी है तो कोई वजह नहीं कि ऐसा न हो सके। हमारे ही देश में निजी प्रयासों से कितनी नदियों को साफ किया गया है। कई गाँवों और शहरों की सड़कें लोगों ने श्रमदान करके बनाई हैं। तो क्यों न ऐसे प्रयास पूरे देश के स्तर पर किए जाएँ। दूसरे देश इतने साफ-सुथरे हो सकते हैं तो हम क्यों नहीं। इस यज्ञ में हम भी एक आहूति डालें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। देखिए कि क्या कमाल होता है।

लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।

साभार : प्रजातन्त्र लाइव 29 सितम्बर 2014

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