कृपया ‘मेरा डिब्बा साफ’ करें

मोहना एम.

 

केन्द्रीय रेलवे अपने 23 मिलियन यात्रियों को प्रतिदिन एक स्वच्छ सफर देने का प्रयास कर रहा है। इसमें तकनीक आधारित प्रणाली उसकी मदद कर रही है। यात्रियों को केवल मिस्ड कॉल या मैसेज के माध्यम से अपना डिब्बा साफ करवाना है।

 

एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत केन्द्रीय रेलवे ने ’मेरा डिब्बा साफ करें’ प्रोग्राम शुरू किया है, जो कि पिछले दो महीनों से सफलतापूर्वक चल रहा है। इसमें जो यात्री लम्बी दूरी तय कर रहे हैं वे रेल विभाग को एक मिस्ड कॉल करके अपना डिब्बा साफ करवा सकते हैं। रेल पर सवार सफाई कर्मचारियों की टीम ठीक उसी डिब्बे में जाकर सफाई कर देगी। यह प्रोग्राम अभी तक 14 ट्रेनों में चल रहा है। इसे जल्द ही रेल के दूसरे जोन में भी शुरू किया जाएगा।

 

ठीक उसी समय सफाई

 

यात्री 58888 पर CLEAN<space><10-digit PNR number> पर मैसेज कर सकते हैं। यह सिस्टम काफी कुशल है। 58888 नम्बर एक केन्द्रीय सर्वर से जुड़ा हुआ है, जो कि यह जान लेता है कि यात्री किस ट्रेन से और किस सीट पर बैठकर यात्रा कर रहा है। सर्वर यह सारी जानकारी सफाई कर्मचारियों को मुहैया करा देता है। साथ ही सर्वर यात्री को मैसेज के माध्यम से सफाई कर्मचारी का नाम और मोबाइल नम्बर उपलब्ध कराता है जो कि उनकी शिकायत के निवारण हेतु डिब्बे में आएगा। एक गुप्त कोड भी यात्री को भेजा जाता है।

 

जैसे ही सफाई कार्य खत्म होता है कर्मचारी वह गुप्त कोड लेकर रेल दफ्तर के केन्द्रीय सर्वर को मैसेज कर देता है। इससे प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। एस.के सूद ने बताया इस तरह से हम आने वाली सभी शिकायतों की प्रगति पर ध्यान रखते हैं।

 

‘मेरा डिब्बा साफ करें’ पहल

 

केन्द्रीय रेलवे के महाप्रबन्धक एस.के सूद ने बताया कि मैसेज के अलावा हमने एक वेबसाइट www.cleanmycoach.com भी शुरू की है। इसमें जिन यात्रियों के पास इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध हो वे यहाँ पर भी अपना पीएनआर नम्बर डालकर अनुरोध कर सकते हैं।

 

इस प्रक्रिया का फायदा यह है कि अब यात्री कॉल या मैसेज के माध्यम से स्वच्छ सफर की माँग कर सकते हैं।

 

यह तकनीक का एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे उनके माध्यम से लोगों की सेवा की जा सकती है। रेलवे यह सुनिश्चित करता है कि सभी शिकायतों का निवारण ठीक ढंग से हो।

 

‘मेरा डिब्बा साफ करें’ से सम्बन्धित विज्ञापन हर डिब्बे में लगाए गए हैं ताकि यात्री शिकायत कर सकें।

 

चलती ट्रेन में सफाई व्यवस्था

 

ओबीएचएस (ऑन बोर्ड हाउसकीपिंग सर्विस) प्रणाली चार से पाँच साल पहले ही ईजाद कर ली गई थी, लेकिन इसके लिए कोई उचित निगरानी व्यवस्था न होने के कारण और एजेंसी द्वारा सही सुविधाएँ मुहैया कराने पर संशय के चलते इसे लागू नहीं किया गया। चलती ट्रेनों में कोई भी संचार प्रणाली नहीं थी। ओबीएचएस को सूचना प्रौद्योगिकी से जोड़ने पर अब चलती ट्रेनों पर भी निगरानी रखी जा सकती है।

 

केन्द्रीय रेलवे के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा शुरू की गई इस पहल को सभी जोन में जल्द ही लागू किया जाएगा। जल्द ही पश्चिमी रेल पर चलने वाली राजधानी में यह सुविधा शुरू हो जाएगी।

 

ओबीएचएस के अलावा स्टेशनों पर खड़ी ट्रेनों की सफाई के लिए 30 सफाई कर्मचारियों की टीम काम करती है। इस तरह हर 6 घण्टे में ट्रेन की सफाई की जाती है। यह मॉडल ओबीएचएस से ज्यादा कारगर है। इसमें ट्रेन निरीक्षक कड़ी निगरानी रखता है कि उस स्टेशन पर सभी ट्रेनों की सफाई हो। जबकि ओबीएचएस में सफाई कर्मचारियों की चलती ट्रेन में सुनिश्चितता को बताने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। सफाई कर्मचारियों की उपस्थिति जाँचने के लिए कुछ रेल विभागों ने बायोमिट्रिक सिस्टम लगाया है। हालाँकि यह भी शत-प्रतिशत ठीक नहीं है। अब तकनीक आधारित निरीक्षण प्रणाली के द्वारा हम सफाई से सम्बन्धित शिकायत, उसका निपटान करने वाले कर्मचारी और प्रक्रिया को पूर्ण करने में लगे समय को जान सकते हैं। यह व्यवस्था सफाई ठेकेदारों के काम-काज पर भी निगरानी रखता है।

 

अन्य पहल

 

एस.के सूद ने कहा कि कीट प्रबन्धन दूसरी बड़ी चुनौती है। शुरू में सिर्फ चार कम्पनियों को रेलवे बोर्ड ने कीट प्रबन्धन के लिए चयनित किया था, लेकिन अब यह सभी के लिए खुला है।

 

उन्होंने कहा- हमने एक 8 लाख की कचरा कतरने की मशीन लगाई है। आधे घण्टे के अन्दर यह सभी गीले कचरे के टुकड़े कर देती है जिसे कि फिर खाद बनने के लिए भेज दिया जाता है। इस मशीन को वैन में भी लगाया जा सकता है।

 

हमें एक एजेंसी की जरूरत है जो रेलवे कॉलोनियों से सूखा कूड़ा ले सके। हमने इन कॉलोनियों में रह रहे लोगों को कई डस्टबीन दिए हैं जिससे कि कचरा प्रबन्धन और रिसाइक्लिंग का काम हो सके। हमें व्यावसायियों की तलाश है जो कचरा प्रबन्धन का कार्य करके मुनाफा कमा सकें। इस योजना को रेलवे स्टेशन पर भी लागू किया जा सकता है जहाँ कि अत्यधिक मात्रा में बोतल, कागज और अन्य कचरे का रोज उत्पादन होता है।

 

साभार : क्लीन इण्डिया जर्नल अप्रैल 2015

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