सुलभ ब्यूरो
16 जुलाई,2014 को नई दिल्ली के पी.एच.डी चैम्बर में आयोजित सम्मेलन में नेशनल फाउंडेशन फॉर कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (एन.एफ.सी.एस.आर.), आई.आई.सी.ए. की संयोजक तथा चीफ प्रोग्राम एक्जेक्युटिव सुश्री गायत्री सुब्रह्मण्यम ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि कंपनीज ऐक्ट-2013 में सी.एस.आर. परिदृश्य का दायरा काफी व्यापक है, वहाँ सी.एस.आर. कार्रवाइयों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है और सरकार इनके पूरे अनुपालन की अपेक्षा करती है। अपनी सविस्तार प्रस्तुति में सुश्री सुब्रह्मण्यम ने कॉर्पोरेट-कार्रवाइयों के अनुपालन के लिए प्रतिभागियों से अपील की, जैसी कि सरकार की अपेक्षा है, साथ ही उन्होंने अपने-अपने बोर्ड से स्पष्ट उल्लेख के साथ अनुमोदन कराने का भी अनुरोध किया।
सम्मेलन में भाग लेने वाले सम्मान्य महानुभाव थे- डॉ. एस. वाई सुरेशी (भारत के पूर्व-मुख्य निर्वाचन-आयुक्त), पद्मभूषण डॉ. बिन्देश्वर पाठक (संस्थापक, सुलभ-स्वच्छता आन्दोलन), श्री महेश गुप्ता (वाइस प्रेसिडेंट, पी.एच.डी. चेंबर), श्री विनोद बंसल (को-चेअरमैन, टास्क फोर्स ऑन सी.एस.आर, पी.एच.डी. चेंबर)।
सम्मेलन में यह स्पष्ट अभिमत उभरकर सामने आया कि कंपनीज ऐक्ट-2013 के जरिए कॉर्पोरेट-जगत् के सामने महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का माहौल विद्यमान है। भारत में सी.एस.आर. कार्यकलाप की समझ काफी समय से विद्यमान रही है, पर नए कंपनीज ऐक्ट-द्वारा कॉर्पोरेट-जगत के लिए नए प्रावधानों और दायित्वों को कानूनी रूप दिया गया है, जिससे इन मदों में होने वाले निवेश तथा परिव्यय में वृद्धि अपेक्षित है। यह भी उल्लेख किया गया कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सी.एस.आर. के मामले में भारत के पहल की प्रशंसा हुई है और इस मॉडल के कार्यान्वयन पर सबकी उत्सुक निगाहें टिकी हैं, ताकि दुनिया के अन्य देशों में इसे लागू करने पर विचार किया जा सके।
कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व
यह देखा गया है कि कुछ व्यापारिक घरानों ने बड़े दान देकर ख्याति अर्जित की है। 19 वीं सदी में कुछ औद्योगिक घरानों का दान आदि में अधिक विश्वास था और उन्हीं के विश्वास का परिणाम है कि आज कई स्कूल, अस्पताल एवं उच्च शिक्षा के कॉलेजों का निर्माण हो सका, समय के साथ इसे ‘कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व’ का नाम दिया गया है।
हालाँकि पूरे विश्व में कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व के महत्त्व को समझा जाता है, किन्तु भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व को अब आवश्यक बनाया गया है।
आज के नए कंपनी-अधिनियम एवं उसकी धारा 135 के अनुसार, वे कंपनियाँ, जिनका मूल्य कम-से-कम 500 करोड़ है अथवा जिनका वार्षिक आय-व्यय 1,000 करोड़ रुपए का है अथवा जिनका वार्षिक लाभ कम-से-कम पाँच करोड़ रुपए है, इनको एक सी. एस. आर. समिति का गठन करना अनिवार्य है, जिसे कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक दायित्वों की ओर ध्यान देना होगा, जैसे कि शिक्षा, लिंग-समानता, महिला-सशक्तीकरण, मातृ-स्वास्थ्य तथा पर्यावरण-सुधार। इन सभी क्षेत्रों को धारा 135 में विस्तार से बताया गया है।
कॉन्फ्रेंस में भाग ले रहे अनेक वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में कहा कि हालांकि सरकार ने इस सम्बन्ध मंे कानून एवं नियम बनाकर औपचारिकता जरूर पूरी कर ली है, किन्तु अभी भी इसमें कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ स्थिति स्पष्ट नहीं है एवं वह तभी स्पष्ट हो पाएगी, जब इस पर कार्रवाई आरम्भ होगी। उन सभी का कहना था कि यदि इसमें सफलता मिलती है एवं इससे भारत में खुशहाली आती है तो इससे उन सभी को प्रसन्नता मिलेगी, किन्तु उन्हें डर है कि कहीं संसद्-द्वारा पारित किया गया यह विचार केवल एक कानून बनकर ही न रह जाए।
कॉर्पोरेट विश्व में इस बात की पूर्ण चेतना है कि जरूरतमंदों एवं गरीबों का कल्याण सरकार अकेले नहीं कर सकती। आज अनेक कंपनियाँ इस व्यवस्था से जुड़ रही हैं। आज बढ़ती माँग एवं कानून-द्वारा भी आवश्यक किए जाने पर कंपनियों के बोर्डरूप में सी.एस.आर. का विषय अपनी महत्ता लिए हुए है।
आज जबकि सी.एस.आर. के एक ढाँचे का गठन कर लिया गया है, समाज के कल्याण के लिए विभिन्न सहभागिताओं की आवश्यकता पड़ती है और ऐसी स्थिति में सी.एस.आर. गतिविधियों को प्रभावी ढंग से कार्यरूप देने के लिए सहभागिता महत्त्वपूर्ण हो जाती है। सी.एस. आर. के लिए यदि कोई दो कंपनियाँ आपस में साझेदारी करती हैं तो इससे न केवल जन-कल्याण-कार्य पर खर्च होने वाली राशि में कमी आती है, बल्कि उसकी परिधि में आनेवाले लोगांे की संख्या भी अधिक हो जाती है।
सुलभ-तकनीक
उपर्युक्त वर्णित सन्दर्भ के अन्तर्गत ही देश के लगभग 3 लाख गैर-सरकारी संस्थाओं में एक प्रमुख सुलभ-स्वच्छता-आन्दोलन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक को 16 जुलाई, 2014 को नई दिल्ली में प्रोग्रेस हारमोनी डिवेलपमेंट (पी.एच्.डी.) चैंबर ने अपने तीसरे इंटरनेशलन कॉन्फ्रेंस ऑन कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी में विशेष तौर से आमन्त्रित किया।
इस अवसर पर अपने सम्बोधन में डॉक्टर पाठक ने सुलभ की सफलता का राज बताया। उन्होंने कहा, ‘किसी भी गैर-सरकारी संस्थान की सफलता उसके इस विश्वास पर निर्भर करती है- ‘ईश्वर आपकी सहायता करते है, यदि आप किसी की सहायता करते हैं।’ स्कैवेंजरों को उनके द्वारा किए जा रहे अमानवीय कार्य से छुटकारा दिलाने के लिए मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी। मैंने दिन-रात प्रयास किया।’ वहाँ बैठे लोगों से डॉक्टर पाठक ने पुनः कहा कि मैं सदा अमेरिका के राष्ट्रपति श्री जॉन एफ. कैनेडी के उन शब्दों को याद करता हूँ, जो उन्होंने कहे थे, ‘मत पूछें कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है, बल्कि पूछें कि आप अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं?’
डॉक्टर पाठक ने कहा, ‘अपने लक्ष्य को पाने के लिए मैंने अपने परिवार के सुखों को भी त्याग दिया, इसीलिए आज मैं कामयाब हूँ। अस्पृश्यता दूर करने के गाँधी जी के सपने को पूर्ण करने में मैं लगा रहा। संक्षेप में मैं कहना चाहूँगा कि पिछले 40 वर्षों की मेहनत के बाद सुलभ आज स्वच्छता के पर्याय के रूप में हर घर में जाना जाता है। इसका कारण है कि एक मानव-द्वारा अन्य मानव के मल को ढोने का दृश्य मुझसे नहीं देखा जाता था। इसीलिए मैंने दो गड्ढों वाले शौचालय का आविष्कार एवं विकास किया। मैं उनके मन में हो रहे कष्ट को समझ पाया, क्योंकि इतना सब करने के बाद भी वे समाज के अवांछित एवं अस्पृश्य लोग थे। ’
अपनी बातों को प्रोजेक्टर के द्वारा दिखाते एवं समझाते हुए डॉक्टर पाठक ने दर्शकों का ध्यान शौचालयों के विभिन्न नमूनों की ओर आकृष्ट किया, जिनका विकास उन्होंने इस प्रकार किया है कि वे किसी भी स्थान पर एवं वातावरण में कार्यरत रहते हैं। समय की कमी के कारण डॉक्टर पाठक अपने जीवन की संघर्ष-गाथा को पूरा नहीं बता सके, जिसमें वे बेतिया में स्कैवेंजरों की कॉलोनी में उनके साथ रहे। उन्होंने इतना अवश्य कहा कि ‘आप जो कुछ भी सुलभ में देखते हैं, वह कड़ी मेहनत तथा त्याग का परिणाम है। जिसमें अपने डिजाइन की सहमति लेने के लिए मुझे एक स्थान से दूसरे स्थान पर दौड़ना पड़ता था, जिससे यह लाभ होने वाला था कि स्कैवेंजरों को दूसरों का मल उठाकर अपनी रोटी कमानेसे छुटकारा मिले।’
स्कैवेंजरों को मुक्ति दिलाकर डॉक्टर पाठक के सामने प्रश्न था कि किस प्रकार इस जाति-बंधनों में बँधे समाज में उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जाए। वे इन स्कैवेंजरों का पाँच सितारा होटलों में ले गए, उन्हें राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री एवं देश के अन्य महत्त्वपूर्ण लोगों से मिलवाया। ‘नई दिशा’ नाम का एक केन्द्र खोला गया, जहाँ वे विभिन्न विषयों में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। वे उन्हें संयुक्त-राष्ट्र ले गए, जहाँ उन्होंने रैंप पर चलकर दुनिया को दिखाया कि वे किसी भी क्षेत्र में किसी से भी पीछे नहीं है। वे उन्हें धार्मिक स्थलों, जिनमें वाराणसी भी है, ले गए, जहाँ उन्होंने गंगा में स्नान किया एवं पूजा-अर्चना की। आखिरकार इन स्कैवेजरों को समाज के उस वर्ग-द्वारा भी स्वीकार कर लिया गया, जिनके घरों में वे कभी शौच साफ किया करते थे। आज वे ही लोग अपने घरों मंे आयोजित सामाजिक अनुष्ठानों में इन्हें आमन्त्रित करते हैं।
स्कैवेंजरों की मुक्ति की चर्चा करने के बाद डॉक्टर पाठक ने वृंदावन एवं वाराणसी की विधवाओं को राहत एवं सहायता प्रदान करने में सुलभ के योगदान एवं सहायता प्रदान करने में सुलभ के योगदान की भी चर्चा की। अपने मित्रों एवं स्वजनों द्वारा परित्यक्त इन विधवाओं की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं था। किन्तु सुलभ के कल्याणकारी कार्यों में विस्तार के कारण वृंदावन एवं वाराणसी की अधिकतर विधवाएँ गर्व के साथ कहती हैं कि उन्हें अब पुनर्जन्म की अनुभूति होती है, जबसे सुलभ ने उनकी देखभाल की जिम्मेदारी सँभाली है, यंत्रणा और उपेक्षा-भरे दिन उनका अतीत हो चुके हैं।
डॉक्टर पाठक ने दर्शकों का ध्यान उत्तराखंड की विधवाओं को दी गई सुलभ-सहायता की ओर भी आकर्षित किया, जिन्हांेने केदारनाथ में आए जल-प्रलय में न सिर्फ अपने पति, बल्कि जीविकोपार्जन के सभी साधन खो दिए। डॉक्टर पाठक ने कहा कि सुलभ ने इन परिवारों को गोद लिया है और जब-तक ये अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते, तब-तक सुलभ उनके भरण-पोषण एवं राहत के लिए वचनबद्ध है। उत्तराखंड में पहाड़ पर झोपड़ी के बाहर एक नन्हे शिशु के साथ डॉक्टर पाठक की तस्वीर को अत्यधिक प्रशंसा मिली।
बातचीत के पश्चात व्यापारिक घरानों की शीर्षस्थ महिलाओं, प्रबन्धकों एवं शिक्षाविदों ने डॉक्टर पाठक को घेर लिया और उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। हालांकि उन्होंने ढेर सारे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया, परन्तु यह उनकी प्रतिक्रिया देखकर स्पष्ट था कि डॉक्टर पाठक ने जो भी कार्य किए हैं, वे प्रशंसनीय हैं और ऐसे संगठनों को अपने मुनाफे का 2 प्रतिशत देने में उन्हें अत्यधिक हर्ष की अनुभूति होगी, जो गरीबी के दर्द को समझते हैं और हर सम्भव राहत प्रदान करने की कोशिश करते हैं।
साभार : सुलभ इण्डिया जुलाई 2014
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