श्रेया पारेख
आइए जानें कि प्रौद्योगिकी और लोकप्रबंधन कौशल का इस्तेमाल करते हुए मंसूर किस तरह कचरा संग्रह को एक सुव्यवस्थित व्यवसाय में बदल रहा है। उसके प्रयासों के कारण अब बंगलुरू के कचरा बीनने वालों के पास पहचान पत्र , साफ-सुथरी यूनिफार्म और बेहतर आमदनी है।
मंसूर कहते हैं, “कचरा बीनने वाला समुदाय बहुत उद्यमी है। अगर उनके उद्यम कौशल को व्यवस्थित करके सही दिशा दी जाए तो वे चमत्कार कर सकते हैं। इससे न सिर्फ उसके कचरा उठाने वाले अन्य साथी कठोर श्रम और साख के सही मार्ग पर बढ़ेंगे, बल्कि इससे वे मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में शामिल हो सकेंगे।”
उनका मानना है कि एक व्यक्ति शहर के कचरा संकट को हल करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है। विचार यह है कि पूरे समुदाय को समस्या हल करने की प्रक्रिया में लाया जाए। एक तरफ बंगलुरू के नागरिक कचरे की समस्या का उत्सुकता के साथ समाधान ढूंढ रहे हैं, दूसरी तरफ कचरा बीनने वाले समुदाय की अपार ऊर्जा को मुक्त करना चाहते है क्योंकि वे बंगलुरू के नागरिकों की समस्या का समाधान कर सकते हैं।
मंसूर बताते हैं , “मेरे पिता ने करीब 30 साल पहले कबाड़ी का व्यापार शुरू किया था। उस वक्त छंटाई करने के बारे में कोई बात तक नहीं करता था। लेकिन उस समय भी वे इस तरह की आदत को उसी प्रकार प्रोत्साहित करते थे जिस प्रकार आज किया जाता है। आज वे नहीं हैं लेकिन मैं उनसे प्रेरित हूँ और वही काम करना चाहता हूँ।”
बंगलुरू के जयनगर में वार्ड नम्बर 168 में ड्राइ वेस्ट कलेक्शन के नाम से अपनी दुकान चलाने वाले मंसूर शहर के केवल एक कचरा कारोबारी नहीं हैं बल्कि एक प्रशिक्षित कबाड़ व्यापारी हैं जो अपने काम के प्रत्यक्ष दायरे से काफी आगे बढ़कर उसमें काफी बदलाव लाने में लगे हैं।
इसे मंसूर की मेहरबानी कहिए कि वार्ड नम्बर 168 अब एक व्यवस्थित कबाड़ संग्रह केन्द्र के तौर पर विकसित हो रहा है, यहाँ संग्रह करने वालों और बीनने वालों का एक दल है जो कि यह सुनिश्चित करता है कि कचरा किसी लैंड फिल में फेंकने के बजाय जिम्मेदार तरीके से रिसाइकिल किया जा सके।
मंसूर याद करते हुए कहता है, जब मैं बच्चा था तो अपने अभिभावकों की कचरा इकट्ठा करने और उसे बीनने में मदद करता था। हम हर महीने 500 बोरा कचरा उठाते और बीनते थे।
बेहतर कचरा प्रबन्धन करने और कचरा बीनने वालों को अच्छा जीवन स्तर देने का मंसूर का सपना उस वक्त एक कदम और आगे बढ़ा जब उन्होंने खुद को शहर के कचरा बीनने वालों के लिये काम करने वाली बंगलुरू की एक एनजीओ हसीरुदाला नामक संगठन से जोड़ा। उन्होंने मंसूर को न सिर्फ आरम्भिक सहायता दी बल्कि जब भी जरूरत पड़ी तो वित्तीय सहायता देकर आगे बढ़ने में मदद की।
आज मंसूर के पास जयनगर ड्राइ वेस्ट कलेक्शन सेंटर में कचरा छांटने और इकट्ठा करने वालों की दस लोगों की एक टीम है। वे हर महीने 10-12 टन सूखे कचरे को सम्भालते हैं और उसके रिसाइकिलिंग के लिए जाने से पहले उसे 72 विभिन्न श्रेणियों में छांटते हैं।
पर मंसूर महज कचरे का मूल्य संवर्धन करके ठहर नहीं जाते। वे कबाड़ व्यापारियों के भीतर सहयोगपूर्ण रवैया विकसित करते हैं जिससे उचित मूल्य का बाजार बने, पारदर्शी आँकड़ों तक पहुँच बने और घरेलू कचरे की बिक्री के लिए सबसे पहले कबाड़ व्यापारियों को चिह्नित किया जा सके।
मंसूर ने क्लीन सिटी रिसाइकिल एसोसिएशन (सीसीआरए) नाम से ब्राण्ड नाम बनाया है और अपनी योजना को लागू करने में एमबीए के डिग्री धारकों को जोड़ा है। लेकिन इस हद तक पहुँचना मंसूर के लिए आसान नहीं था। उनके पास अपना काम चलाने के लिए और कामगारों को देने के लिए आय का स्थायी स्रोत नहीं था। हसीरुदाला उनकी मदद के लिए आगे आया और काम को स्थिरता देने में सहायता की। मंसूर कहते हैं, “धीरे-धीरे चीजों पर मेरी पकड़ बन गई और आज यह केन्द्र आत्म-निर्भर है।”
वे कहते हैं, “कचरा जमा करने को छोटा काम नहीं समझना चाहिए। इसके लिए हसीरुदाला का शुक्रगुजार होना चाहिए कि आज लोग मेरे काम को नीचा नहीं समझते और मैं जो करता हूँ उसके लिए उनके मन में सम्मान है। हसीरुदाला ने कचरा उठाने वालों को पहचान पत्र दिए हैं और अच्छे यूनिफार्म भी। ऐसा लगता है कि हम किसी अच्छे काम के हिस्से हैं।” अपने काम का असर बताते हुए वे कहते हैं कि छंटनी करने वालों और उनकी टीम के सदस्यों पर जबरदस्त सकारात्मक असर पड़ा है।
“कचरे के निस्तारण के समय लोगों को कभी-कभी ज्यादा सावधान रहना पड़ता है। वे गीला और बेकार कचरे को कभी-कभी सूखे कचरे की श्रेणी में रख देते हैं। इससे हमारा केन्द्र काम करने का एक अस्वच्छ स्थल बन जाता है। अगर कचरे को विधिवत अलग नहीं किया जाता तो हम उसका संग्रह बन्द कर देते हैं।”
चेतना फैलाने में मंसूर की कड़ी मेहनत का कमाल देखिए कि उनके 75 प्रतिशत ग्राहक अब कचरे को वहीं छांट देते हैं जहाँ वह पैदा होता है।
कचरे के बारे में लोगों के मानस को बदलने के अलावा मंसूर ने अपने कार्यबल पर भी असर डाला है। हमें पता चला है कि उनके एक नए कर्मचारी अरुणाचलम पहले कचरा बीनते थे, शराबी थे और उनके पैर में गम्भीर किस्म का जख्म था जिसकी कोई देखभाल नहीं की जाती थी। जिस दिन से उसने मंसूर की टीम के साथ काम शुरू किया उसकी स्थिति में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है, वह पहले से ज्यादा कमाता है और अब अच्छे स्वस्थ भोजन के साथ सुधार की दिशा में है।
मंसूर कहते हैं, “हालांकि मैं भी सीख रहा हूँ और मैंने महसूस किया है कि प्रौद्योगिकी की एक भूमिका है। मेरी गार्बेज टीम ने रोजाना के काम को सम्भालने के लिए एंड्रायड एप विकसित किया है और इसे पहले से कहीं ज्यादा आसान बनाया गया है। इससे हमें कचरा लेने का स्थल, उसे संग्रह करने का स्थल जैसी अन्य जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।”
सोशल इनक्लुजन लिमिटेड के ग्राहक भागीदार (क्लाइंट पार्टनर)-सत्यम गम्भीर का कहना है कि ,”At I Got Garbage, एट आइ गाट गार्बेज, पर हमारा ध्यान कचरा उठाने वालों की जीविका और क्लाउड प्लेटफार्म पर उसका समाधान निकालने पर होता है। इसे हम दोहरा सकते हैं और उसे नए तरीके से सुधार सकते हैं। मंसूर को हम एक दीर्घकालिक रणनीतिक भागीदार के तौर पर देखते हैं, उनका कभी न कम होने वाला समर्पण और विशेषज्ञता काफी मददगार रही है।”
माइंडट्री की एक पहल आइ गाट गार्बेज (I Got Garbage) के साथ मंसूर एक भागीदार है। आइ गाट गार्बेज मंसूर के साथ बंगलुरू के कुछ हिस्सों में `डोनेट ड्राइ वेस्ट’ नाम से एक परियोजना चला रहा है।
जैसा कि मंसूर कहता है कि, “हर कचरा उठाने वाले के पास एक अच्छे ब्राण्ड का रिक्शा होगा, एक यूनिफार्म और एक स्मार्ट फोन होगा और उसे घरों और अपार्टमेंट से अलग किया हुआ कचरा उठाने के लिए दिशा निर्देशित किया जाएगा।”
गम्भीर कहते हैं, “इस समय कचरा उठाने वाले श्रृंखला की आखिरी कड़ी के रूप में हैं और वे सड़क से कचरा उठाते हैं। वे अपनी आजीविका चलाने के लिए दिन रात के उल्टे सीधे वक्त में सड़कों पर निकलते हैं। हम चाहते हैं कि वे कचरा सप्लाई श्रृंखला की पहली कड़ी बनें, उदाहरण के लिए वे वहाँ से जुड़ें जहाँ पर कचरा निकलता है यानी हमारे और आप के घरों पर जाएं।”
वे उस दिन की कल्पना करते हैं जब कचरा उठाने वाले कचरे के प्रबन्धक बनेंगे और वे यूनिफार्म में हर हफ्ते कचरा उठाएं। वे चाहते हैं कि इन चीजों को औपचारिक रूप दिया जाए। इस काम को अन्जाम देने में मंसूर की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
मंसूर और उनकी मानव प्रबन्धन की विशिष्ट कुशलता के कारण कचरा उठाने वालों की प्रति माह 9000 से 12000 रुपए कमाई होती है, यह उस राशि से बहुत ज्यादा है जब वे रिसाइकिल करने लायक कचरा उठाने के लिए सड़कों पर मारे-मारे फिरते हैं।
समाज में बदलाव देखने के मंसूर के विस्मयकारी उत्साह और इच्छा हम निश्चित तौर पर उम्मीद कर सकते हैं कि यह उपेक्षित क्षेत्र अपना वाजिब हक प्राप्त करेगा। मंसूर के बारे में और जानने के लिए , सवाल पूछने के लिए या कोई सन्देश छोड़ने के लिए –info@igotgarbage.com पर जाएं।
साभार : बेटर इण्डिया वेबसाइट
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