जन स्वास्थ्य, शौचालय एवं पर्यावरणीय स्वच्छता पर सेमिनार

ए.के. सेनगुप्त

 

पिछले साढ़े छह दशकों में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के क्षेत्र में हम उतने गम्भीर नहीं रहे हैं, जितना कि होना चाहिए था। हमने जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी को नजरअन्दाज किए रखा, जिसके फलस्वरूप आज राष्ट्र में पेयजल स्रोत मानव मल से प्रदूषित हो गया है, जिसके पीने से न केवल बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास अवरूद्ध हो रहा है, बल्कि जन साधरण भी पेट, यकृत और गुर्दे सम्बन्धी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

 

जन स्वास्थ्य, शौचालय एवं पर्यावरणीय स्वच्छता को विचारों की मुख्यधारा में लाने के लिए इंस्टिट्यूट आॅफ पब्लिक हेल्थ इंजीनियर्स इण्डिया की दिल्ली शाखा द्वारा 13-14 फरवरी, 2015 को दो दिवसीय सेमिनार ‘नेशनल कंसल्टेशन आॅन रिन्युअल एजेंडा आॅन सेनिटेशन’ का आयोजन नई दिल्ली में लोधी एस्टेट स्थित स्कोप काॅम्प्लेक्स में किया गया।

 

जन सेवा विभाग में कार्यरत अनेक अभियंताओं, विद्वजन, समाजसेवी, विचारक एवं ब्यूरोक्रैट्स ने इस सेमिनार में भाग लिया। यह सेमिनार अपने प्रकार का एक अनूठा प्रयास था।

 

15 अगस्त, 2014 को माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश में ‘स्वच्छ भारत’ अभियान की घोषणा की थी और 2 अक्टूबर को इसका शुभारम्भ किया गया था। हालाँकि इस अभियान के आरम्भ से लेकर अभी तक काफी कार्य किया जा चुका है, किन्तु यह तो केवल शुरुआत है। हमें अभी भी हजारों प्रेरक व्यक्तियों की आवश्यकता है, जो कि सन् 2019 तक भारत को स्वच्छ देशों की पंक्ति में खड़ा करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारी मदद कर सकते हैं।

 

इंस्टिट्यूट आॅफ पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग के दिल्ली चैप्टर के निदेशक श्री ए.के. सेनगुप्ता ने समागत प्रतिनिधियों का स्वागत किया। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि 15 अगस्त, 2014 को माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश में ‘स्वच्छ भारत’ अभियान की घोषणा की थी और 2 अक्टूबर को इसका शुभारम्भ किया गया था। हालाँकि इस अभियान के आरम्भ से लेकर अभी तक काफी कार्य किया जा चुका है, किन्तु यह तो केवल शुरुआत है। हमें अभी भी हजारों प्रेरक व्यक्तियों की आवश्यकता है, जो कि सन् 2019 तक भारत को स्वच्छ देशों की पंक्ति में खड़ा करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारी मदद कर सकते हैं।

 

इस अवसर पर आई.पी.एच.ई. के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री के.जे. नाथ ने आई.पी.एच.ई. द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जन स्वास्थ्य कार्यों में गैर सरकारी संस्थानों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। इस प्रकार के आयोजनों से न केवल जन जागरण होगा, बल्कि सरकारी विभागों की भी ऐसे कार्यक्रमों के प्रति रुचि बढ़ेगी। एक तरफ हम लोग जहाँ विश्व शक्ति बनने का ख्वाब देख रहे हैं, मंगल ग्रह पर यान भेज रहे हैं एवं अनेक उपलब्धियाँ हासिल कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 60 करोड़ है, जो आज भी खुले में शौच करने को मजबूर हैं।

 

इस अवसर पर सुलभ संस्थापक डाॅ. बिन्देश्वर पाठक ने कहा कि इस सेमिनार का उद्देश्य सन् 2019 तक भारत किस प्रकार अपने देश के हर घर में एक स्वच्छ शौचालय उपलब्ध करवा सकता है, जैसा कि माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा है और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का सपना था, पर चर्चा करना है। उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व कोलकाता में बड़ी संख्या में घोड़ा गाड़ियाँ चलती थीं। घोड़ों का मल भारी मात्रा में सड़कों पर जमा होकर नालियाँ अवरुद्ध कर देती थी। सन् 1907 से जब मोटर गाड़ियों का प्रयोग किया जाने लगा तो घोड़ों की संख्या कम हो गई और समस्या का निदान हो गया। इसका अर्थ है कि समस्याओं के निदान के लिए तकनीक की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि तकनीक ऐसी होनी चाहिए, जो सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य एवं आर्थिक रूप से वहन करने के योग्य हो।

 

डाॅक्टर पाठक ने बताया कि सुलभ टू-पिट तकनीक ऐसी ही एक शौचालय तकनीक है, जिसके द्वारा सन् 2019 तक भारत के हर घर में शौचालय का सपना पूरा किया जा सकता है।

 

इस अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुश्री पेयदन ने कहा कि उन्होंने अनेक गरीब परिवारों का सर्वेक्षण किया है, जहाँ स्वच्छता नाम की कोई चीज नहीं है। इसके अलावा स्कूलों एवं स्वास्थ्य केन्द्रों पर भी स्वच्छता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

 

डाॅक्टर पाठक ने बताया कि सुलभ टू-पिट तकनीक ऐसी ही एक शौचालय तकनीक है, जिसके द्वारा सन् 2019 तक भारत के हर घर में शौचालय का सपना पूरा किया जा सकता है।

 

आई.पी.एच.ई. के मानद सचिव श्री असित नेमा ने अपनी प्रस्तुति में अनेक जानकारियाँ उपलब्ध करवाईं। कानपुर आई.आई.टी. से कम्पनी टेक्नो आॅर्बिटल एडवांस्ड मॅटिरियल्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रतिनिधि श्री सुनील घोले ने विकसित जल शोधन यंत्र पर अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि उनकी यह तकनीक बिजली की खपत के बिना भी (मानव शक्ति से) कार्य कर सकती है, ऐसी स्थिति में लागत 3-4 पैसे प्रति लीटर आती है। इस यंत्र के द्वारा प्रति घण्टे में 2,000 लीटर जल को पीने लायक बनाया जा सकता है।

 

पेयजल एवं स्वच्छता मन्त्रालय के पूर्व सचिव श्री पंकज जैन ने कार्यक्रम का समापन भाषण देते हुए कहा कि हमें ठोस एवं तरल अपशिष्ट के निपटान के लिए विशेष तौर पर सोचना होगा। कुछ मुद्दों को हम नजरअन्दाज नहीं कर सकते। ये हैं :

 

1. सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक मुद्दे, 2. तकनीकी मुद्दे, 3. नदियों की सफाई का मुद्दा और 4. स्वच्छ पेयजल का मुद्दा, क्योंकि आमतौर पर इसमें आर्सेनिक एवं फ्लोराइड रहता है।

 

पुनः उन्होंने सुलभ की टू-पिट तकनीक को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सेप्टिक टैंक के प्रयोग से समस्या का हल नहीं निकलेगा। बायो टाॅयलेट, जोकि डी.आर.डी.ओ. ने विकसित किए हैं, वे अच्छे हैं, किन्तु उनकी लागत अधिक है।

 

आयोजन का अन्त आई.पी.एच.ई. दिल्ली चैप्टर के उपाध्यक्ष श्री आर. मेहरोत्रा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

 

साभार : सुलभ इण्डिया फरवरी 2015

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