जल संरक्षण विषय पर वैश्विक सम्मेलन

आभा बहादुर

फ्रांस के मार्सेल शहर में 12-17 मार्च, 2012 के बीच ‘जल संरक्षण’ विषय पर विश्व में अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन आयोजित हुआ। इसका आयोजन प्रति तीन वर्ष के अंतराल पर जलापूर्ति सम्बन्धी सभी विषयों पर विचार विमर्श के लिए होता है। इसमें विश्व के विविध देशों के प्रधानमन्त्री, सांसद, सचिव एवं पत्रकारों के साथ-साथ जल विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ, दातागण, गैर-सरकारी संस्थानों के प्रतिनिधिगण जल सम्बन्धी विभिन्न मुद्दों, यथा-आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणिक तथा वित्तीय प्रश्नों का हल निकालने के उद्देश्य से मिलते हैं तथा अरबों लोगों को जल उपलब्ध करवाने के विषय में विमर्श करते हैं।

इस विचार मंच का आयोजन 2000 में हैग में, 2003 में क्योटो (जापान) में, 2006 में मैक्सिको में तथा 2009 में इस्तानबुल तुर्की में हुआ। इस कार्यक्रम द्वारा जल के विषय में नवीन दृष्टिकोण, कौशल तथा जानकारी को गति देने की योजना बनाई जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में जल संरक्षण एवं इससे सम्बन्धित चुनौतियों से निपटने के उपाय खोजना और उन्हें कार्यान्वित करना है।

जल ही एक ऐसा साधन है, जिसके बिना विकास असम्भव है। इसे राजनीतिक कार्य सूची में सम्मिलित किए जाने पर भी विचार किया गया। गत वर्ष यू.एन. के 189 सदस्य देशों ने जल एवं स्वच्छता के अधिकार को मान्यता दी, जिसे लागू एवं कार्यान्वित करने की जरुरत है।

फ्रांस के माननीय प्रधानमन्त्री श्री फ्रान्कवॉ फिलॅन ने छठे विश्व जल सम्मेलन का शुभारम्भ करते हुए कहा, ‘चुनौतियाँ बड़ी है तथा समस्याओं की जड़ें गहरी हैं और इस ओर उठाए गए कदम बहुत धीमे हैं। अब हमें इस अभियान को तीव्र गति देनी होगी। करोड़ों लोग शुद्ध जल से वंचित हैं। इस कारण वे रोग एवं मृत्यु का सामना करते हैं। हम ऐसी स्थिति स्वीकार नहीं कर सकते।’

यू.एन. के माननीय महासचिव श्री बान की मून ने अपने वीडियो सन्देश में कहा, ‘कृषि और खाद्य उत्पादन तथा ऊर्जा उपभोग की बढ़ती जरूरतों से लेकर जल प्रदूषण एवं जल प्रबन्धन की कमियों के कारण ताजा जल पर निरन्तर दबाव बढ़ता जा रहा है।’

वर्ष 2012 के पश्चात् भी जल सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु एक मंच बनाने के उद्देश्य से विश्व भर के लोगों को ‘टाइम फॉर सौल्यूशंस’ वेबसाइट पर अपने सुझाव एवं विचार देने की प्रार्थना की गई है। सुलभ इंटरनेशनल सामाजिक सेवा संस्थान द्वारा ‘सार्वजनिक शौचालयों के दूषित जल के विकेन्द्रीकृत शुद्धिकरण, जिससे पर्यावरण स्वच्छ रह सके एवं शौचालयों की सुविधा प्रदान कर मानवाधिकार तथा गरिमा रक्षण’ पर समाधान प्रस्तुत किए गए।

यह कार्यक्रम लगभग एक सप्ताह तक चला, जिसमें 173 देशों के प्रतिनिधि,15 राज्याध्यक्षों एवं यूरोपीय कमिश्नरों, लगभग 3,500 स्वयंसेवी संस्थाओं, नगरीय सामाजिक प्रतिनिधियों तथा हजारों बच्चों एवं युवाओं ने भाग लिया। जल तथा स्वच्छता पर लगभग 1,400 सुझाव प्राप्त हुए। इससे जल संरक्षण तथा उसकी सहज उपलब्धि एवं स्वच्छता सम्बन्धी उपायों को बल मिलेगा। रियो द जनेरो (ब्राजील) में जून, 2012 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित होने वाले ‘विश्व जल सम्मेलन’ में इन सभी उपायों एवं प्रतिबद्धताओं पर विमर्श होगा। इस सम्मेलन का मुख्य विषय ही है- ‘जल एवं स्वच्छता।’

विकास एवं सहयोग सम्बन्धी स्विस एजेंसी के डायरेक्टर जनरल द्वारा सुलभ स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार आन्दोलन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक को अपने अप्रतिम प्रयोगों की प्रस्तुति एवं भारत सरीखे देश में जल सम्बन्धी मानवाधिकार एवं स्वच्छता अभियान के कार्यान्वयन हेतु सुझाव देने के लिए आमन्त्रित किया गया। इस सभा का आयोजन स्वीटजरलैंड, स्पेन तथा उरुग्वे द्वारा किया गया, जिसमें अनेक देशों के मन्त्रियों ने भाग लिया।

इस अवसर पर डॉ. पाठक ने जल तथा स्वच्छता की समस्याओं और उनके समाधान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केवल मल निकासी व्यवस्था से शौचालयों की कमी तथा खुले में शौच की समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता, यह एक विश्वव्यापी समस्या है। भारत के 7,532 शहरों/नगरों में केवल 160 शहरों में अपजल शोधन संयंत्र लगे हैं। इस कारण जलाशय एवं पर्यावरण प्रदूषित होती जा रहे हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें मानव उत्सर्जन को शोधित करने तथा जल के संरक्षण के लिए उन तकनीकियों को अपनाना चाहिए, जो किफायती, उपयुक्त और सांस्कृतिक दृष्टि से स्वीकार्य हो।

उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में स्थानीय लोगों, राज्य सरकारों, केन्द्रीय सरकारों, अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं, स्वयंसेवी संस्थानों एवं निधि उपलब्ध कराने वाली एजेंसियों के सहयोग एवं भागीदारी पर बल दिया। इस कार्यक्रम में उन्होंने सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर दोनों का महत्व बताया, यथा प्रोत्साहन, शिक्षा, संवाद, प्रशिक्षण, डिजाइन, प्राक्कलन, कार्यान्वयन तथा रखरखाव और अनुगामी कार्यवाही। इन सबसे सरकार अत्यधिक मात्रा में शौच के लिए प्रयोग होने वाले जल की बचत एवं आम लोगों की अनिवार्य आवश्यकता की वस्तु जल को अधिक बचाकर रखने और जल तथा स्वच्छता के मानवाधिकार को संरक्षित कर सकेगी। खासकर महिलाओं एवं लड़कियों के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा।

यू.एन. हैबिटेट द्वारा सुलभ को ‘एशिया और प्रशान्त महासागर क्षेत्र: शहरी जल सुरक्षा’ सत्र में आमन्त्रित किया गया और व्यावहारिक उपायों तथा समाधानों पर प्रस्तुति हेतू आग्रह किया गया। डॉ. पाठक को विमर्श में हिस्सा लेने के लिए आग्रह किया गया, जहाँ सफलता हासिल करने वाले मामलों के अध्ययन तथा भविष्य के लिए नीति बनाने में योगदान करना था, जिससे सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को पूरा किया जा सके, ताकि एशिया एवं प्रशान्त क्षेत्र में सबको पेयजल और स्वच्छता की सुविधा उपलब्ध हो सके। इस सत्र की अध्यक्षता श्री रवि नारायण ने की। भाग लेने वालों में सिंगापुर के मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी श्री च्यूँ म्यूँ लेंग, आई.डब्ल्यू.पी के निदेशक डॉ. के.ई. सीताराम, विश्व जल स्टीवार्डशिप के निदेशक श्री ग्रेग कोच, टी.सी.सी.सी. अटलांटा तथा यू.एन.ई.एस.सी.ओ., आई.एच.एफ. के ऑर्थर मेनेट प्रमुख थे।

एशिया के अनेक देशों में तेजी से बढ़ती हुई आबादी और शहरों के बेतरतीब विकास के चलते पेयजल की माँग में वृद्धि हो रही है। फलत: नई तकनीकों की खोज आवश्यक हो गई है, जिनमें मल-जल शोधन की स्थलीय व्यवस्था शामिल है, ताकि मल-जल शोधन की खर्चीली प्रणाली का विकल्प विकसित हो सके। सुलभ की ओर से श्रीमती आभा बहादुर ने ‘सार्वजनिक शौचालय से नि:सृत अपजल को पर्यावरण स्वच्छता के लिए विकेन्द्रीकरण द्वारा निर्मल करना’ विषय पर प्रस्तुतिकरण दिया। सुलभ द्वारा आविष्कृत मानव-मल आधारित बायोगैस संयंत्र तथा एफ्लुएंट ट्रीटमेन्ट-प्लांट का भी वर्णन किया गया। नोम पेन्ह, लाओ पी.डी.आर. जकार्ता, कर्नाटक तथा कोका-कोला पर भी प्रस्तुतियाँ की गईं।

जल वितरण तथा स्वच्छता सहयोग परिषद ने हमें ‘मासिक धर्म सम्बन्धी झिझक तोड़ने तथा स्वच्छता बनाए रखने’ विषय पर विचार व्यक्त करने के लिए आमन्त्रित किया। इस सत्र का उद्देश्य था मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता अपनाना तथा इस विषय में व्यावहारिक समाधान एवं जागरूकता फैलाना। यह विषय अक्सर डब्ल्यू.ए.एस.एच. नीति के तहत उपेक्षित रहा। इस विषय से सम्बद्ध कमियों एवं चुनौतियों पर विमर्श किया गया, क्योंकि ये विषय महिलाओं की निजता तथा गरिमा से जुड़े हैं। सुलभ के प्रतिनिधियों द्वारा ‘भारतीय सन्दर्भ में स्वच्छ पैड: बढ़ावा एवं वितरण’ विषय पर प्रस्तुतिकरण दिया गया। इसमें यह भी बताया गया कि अपर्याप्त मासिक संरक्षण उपायों के कारण 12-18 वर्ष की लड़कियाँ महीने के पाँच दिन विद्यालय में अनुपस्थित रहती हैं। इतना ही नहीं लगभग 23 प्रतिशत लड़कियाँ मासिक धर्म आरम्भ होने पर विद्यालय ही छोड़ देती हैं।

सुलभ इंटरनेशनल द्वारा अनेक ऐसी महिलाओं को सम्मानजनक पेशे में प्रशिक्षित किया गया है, जो पहले सर पर मानव माल ढोकर दूर फेंकने का कार्य करती थीं। प्रशिक्षण प्राप्ति के पश्चात् उनके जीवन में आए परिवर्तन का वर्णन करने के लिए उनमें से दो महिलाओं को आमन्त्रित किया गया था।

सुलभ द्वारा पुनर्वासित एवं संस्था की मानद अध्यक्ष श्रीमती उषा चौमड़ ने, जो अलवर, राजस्थान की हैं, अपनी तथा अपनी जैसी अन्य स्कैवेंजर महिलाओं की समस्याओं तथा जीवन मे आईं परेशानियो का वर्णन किया। सर पर मानव मल ढोने का कार्य उन्हें अत्यन्त अमानवीय लगता था, परन्तु आज वह उस कार्य को त्याग कर आम लोगों की तरह इज्जत के साथ जीवन व्यतीत करती हैं। यह केवल सुलभ के कारण ही सम्भव हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि भारत के राजस्थान के अलवर में स्थित ‘नई दिशा’ केन्द्र से हमें विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में प्रशिक्षण मिला, ताकि हम अपनी आजीविका स्वयं कमा सकें। उनके साथ ऐसी ही दूसरी महिला श्रीमती गुड्डी अठवाल भी थीं।

अफ्रीका तथा एशिया के प्रवक्ताओं ने अपने-अपने देशों की आवश्यकताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने अपनी चुनौतियों, उपभोक्ताओं की जरूरतों, विशेषत: ‘गरीबों की समस्याओं एवं स्वच्छता की उनके जीवन से दूरी’ विषय पर प्रकाश डाला एवं सम्पूर्ण स्वच्छता-प्राप्ति के सहस्राब्दि विकास लक्ष्य 2025 तक प्राप्त करने की दिक्कतों पर भी चर्चा की।

सप्ताह भर के आयोजन वाले इस छठे जल विचार मंच में विश्व के अनेक देशों से लगभग 35,000 प्रतिभागियों ने भाग लिया और जल एवं स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ाते हुए 17 मार्च को इस कार्यक्रम का समापन हुआ। अगला आयोजन 2015 में दक्षिण कोरिया में करने के निर्णय के साथ सम्मेलन समाप्त हुआ।

साभार : सुलभ इण्डिया अप्रैल 2012

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