ग्रामीण स्वच्छता अभियान

देवेन्द्र उपाध्याय

 

गाँवों में समुचित स्वच्छता की सुविधाओं की कमी के कारण कई तरह की घातक बीमारियाँ हो जाती हैं जिनमें अतिसार, पोलियो और टाइफाइड आदि प्रमुख हैं। अगर गाँवों में समुचित स्वच्छता सुविधाओं की व्यवस्था हो जाए तो ऐसी बीमारियों पर काबू पाया जा सकता है। अगर हर घर, हर स्कूल और हर आँगनवाड़ी में शौचालय की सुविधा की व्यवस्था हो जाए तो इससे गाँव खुले में शौच की समस्या से मुक्त हो जाएंगे। गाँव वासियों के लिये यह बहुत ही कष्टकर समस्या है, विशेष रूप से महिलाओं के लिये तो यह अत्यन्त ही कष्टकर है।

 

भारत सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय ने ग्रामीण स्वच्छता को प्रोत्साहित करने के कार्य को उच्च प्राथमिकता दी है। इसके लिये सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान प्रारम्भ किया गया है। इसे प्रत्येक जिले को एक इकाई मानते हुए क्रियान्वित किया जाता है जिससे प्रत्येक जिले के समूचे ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण स्वच्छता उपलब्ध कराने के कार्य को सुनिश्चित किया जा सके। इससे गाँवों में स्वच्छता को लेकर जागरूकता पैदा करने में भी मदद मिल रही है।

 

राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2005-06 के लिये 761 ग्राम पंचायतों तथा नौ ब्लाक पंचायतों को ‘निर्मल ग्राम’ पुरस्कार प्रदान किए। पिछले वर्ष 40 पंचायती राज संस्थाओं को पुरस्कार दिए गए थे।

 

इस वर्ष चार गैर-सरकारी संगठनों को भी ‘निर्मल ग्राम’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी के सांसद अरुण कुमार वंदावल्ली ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में सांसद निधि से दो करोड़ रुपये ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम पर खर्च किए, उन्हें भी इसके लिये राष्ट्रपति ने सम्मानित किया।

 

केन्द्र सरकार ने प्रत्येक जिले के समस्त ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पूर्ण स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिये अनेक कदम उठाए हैं। वर्ष 2001-02 में 130 करोड़ रुपये बजटीय परिव्यय इस अभियान के लिये रखा गया था जो वर्ष 2005-06 में 700 करोड़ रुपये हो गया था। अब वर्तमान वित्तीय वर्ष में इसे बढ़ाकर 800 करोड़ रुपये किया गया है। अप्रैल 2005 से फरवरी 2006 तक 83 लाख 14 हजार पारिवारिक शौचालय, 65 हजार स्कूल शौचालय एवं स्वच्छता परिसर का निर्माण कार्य पूरा हो गया था। वर्तमान वित्तीय वर्ष में इस अभियान का विस्तार सभी जिलों में हो जाने पर पूरे भारत में 11वीं योजना के अन्त तक खुले में शौच की प्रथा समाप्त हो जाएगी।

 

भारत सरकार ने ग्रामीण स्कूलों में इसी वित्तीय वर्ष में जलापूर्ती एवं स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया है। घरों के साथ स्कूलों में भी इन सुविधाओं के मिलने से बच्चों में स्वच्छता के बारे में नयी सोच बनेगी।

 

सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान को और अधिक तेजी से लागू करने के लिये भारत सरकार ने दिशानिर्देशों में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। पारिवारिक शौचालयों की इकाई लागत को 625 रुपये से बढ़ाकर 1,500 रुपये और एक हजार से बढ़ाकर दो हजार रुपये कर दिया गया है। इकाई लागत में ऊपरी ढाँचे के निर्माण के लिये 650 रुपये भी शामिल हैं। इससे ग्रामीण स्वच्छता कवरेज में निश्चित रूप से तेजी आएगी। स्कूलों और आँगनवाड़ियों में शौचालयों के निर्माण की गति में तेजी लाने के लिये समुदाय के अंशदान की संस्थागत शौचालयों के निर्माण से हटा दिया गया है। अब भारत सरकार इसके लिये प्रत्येक लागत के लिये 70 प्रतिशत हिस्सा देगी तथा राज्य सरकारों को 30 प्रतिशत हिस्सा देना होगा। तमिलनाडु और हरियाणा में स्कूलों में जलापूर्ती एवं स्वच्छता सेवाएं उपलब्ध कराई जा चुकी हैं, अन्य राज्यों को भी इस कार्य को तेजी से पूरा करने के लिये कहा गया है।

 

ग्रामीण स्वच्छता अभियान को प्रोत्साहित करने के लिये समुदाय, पंचायती राज संस्थाओं और गैर-सरकारी स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये 2 अक्टूबर, 2003 से ‘निर्मल ग्राम’ पुरस्कार योजना प्रारम्भ किया गया।

 

इस योजना में उन पंचायती राज संस्थाओं और गैर-सरकारी स्वयंसेवी संगठनों को पुरस्कार दिए जाते हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में सम्पूर्ण स्वच्छता कवरेज प्राप्त कर लिया है और जहाँ खुले में शौच जाने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो गई है। ग्राम पंचायतों के लिये आबादी के हिसाब से पुरस्कार राशि से ब्लाक पंचायतों के लिये 10 से 20 लाख रुपये तथा जिला पंचायतों के लिये 30 से 50 लाख रुपये निर्धारित किए गए हैं। पुरस्कारों की घोषणा के बाद 16 राज्यों से 1,600 से अधिक पंचायती राज संस्थाओं के आवेदन मिले थे जिनकी निर्धारित मानदण्डों पर छानबीन कर उनमें से 770 संस्थाएं पुरस्कार के योग्य पाई गईं।

 

राष्ट्रीय निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना के लिये  कुछ मानदण्ड निर्धारित किए गए हैं। पुरस्कार के लिये पाँच पंचायती राज संस्था अपने क्षेत्र में खुले में शौच से मुक्त होनी चाहिए और सभी परिवारों में शौचालय सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। सभी स्कूलों तथा आँगनवाड़ियों में शौचालय सुविधा होनी चाहिए तथा वे उपयोग में भी होनी चाहिए। यानि कि उनका इस्तेमाल हो रहा हो। सह-शिक्षा स्कूलों में छात्राओं के लिये अलग शौचालयों की सुविधा हो तथा गाँवों में सामान्य रूप से स्वच्छता हो। इकाई लागत में वृद्धि होने से यह उम्मीद है कि अगले वर्ष राष्ट्रीय निर्मल ग्राम पुरस्कार पाने वाली पंचायती राज संस्थाओं की तादाद में बढ़ोत्तरी होगी। इस पुरस्कार योजना के प्रारम्भ होने के बाद पंचायती राज संस्थाओं में ग्रामीण स्वच्छता अभियान के बारे में जागरूकता बढ़ी है।

 

पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य का एक-दूसरे से गहरा सम्बन्ध है। असुरक्षित गन्दे जल के उपयोग तथा मानव मल के खराब निपटान और निजी एवं खाद्य सफाई में कमी की वजह से कई बीमारियाँ फैलती हैं। स्वच्छता में कमी की वजह से ही उच्च बाल मृत्युदर को कम नहीं किया जा सका है। इन सबको देखते हुए ग्रामीण स्वच्छता अभियान को व्यापक रूप दिया गया है, जिसके अच्छे परिणाम सामने आने लगे हैं। बच्चों में सफाई और स्वच्छता की आदतें जब घर और स्कूल में पड़ने लगेंगी तो अपने जीवन में वह इन्हें बनाए रखेंगे और दूसरों को भी इनके लिये प्रेरित करेंगे। बालिकाओं पर विशेष ध्यान देते हुए स्कूलों को स्वास्थ्य शिक्षा का लक्ष्य बनाया गया है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। बच्चों के माध्यम से इस अभियान को आसानी से सफल बनाया जा सकता है।

 

स्वसहायता समूहों को पंचायती राज व्यवस्था में लगातार मजबूत किया जा रहा है। इससे महिलाओं में जागरूकता आ रही है और उन्हें वैकल्पिक रोजगार के अवसर मिलने लगे हैं। ग्रामीण स्वच्छता अभियान में स्वसहायता समूहों और सहकारी दुग्ध समितियों की कम दरों पर पैसा उपलब्ध कराने के लिये एक रिकार्डिंग फण्ड बनाया गया है, जिसकी अधिकतम राशि प्रति जिला 50 लाख रुपये है। इससे अच्छी साख वाले स्वसहायता समूहों और दुग्ध सहकारी समितियों को जीरो प्रतिशत ब्याज पर ऋण आसानी से मिलेगा। इसके साथ ही ठोस और तरल प्रबन्धन से सम्बन्धित एक घटक को भी अभियान के दिशानिर्देशों में शामिल किया गया है, जो कुल परियोजना लागत का दस प्रतिशत होगा। इससे ग्रामीण स्वच्छता कवरेज में और तेजी आएगी। ग्रामीण स्वच्छता अभियान निश्चित रूप से गाँवों की तस्वीर और तकदीर बदलने में मील का पत्थर साबित होगा।

 

ग्रामीण विकास मन्त्री रघुवंश प्रसाद सिंह इस अभियान को लेकर बहुत उत्साहित हैं। उन्होंने विश्वास प्रकट किया है कि ग्यारहवीं योजना में देश के सभी गाँवों में इसके कवरेज को लक्ष्य पूरा हो जाएगा।

 

लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं

 

साभार : योजना जून 2006

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