गाँव की स्वच्छता एवं शिक्षा के लिए समर्पित

इन्द्रेश चौहान

 

हमारे देश में ज्यादातर युवा पढ़ाई-लिखाई के बाद अपना कैरियर संवारने में जुट जाते हैं, जबकि कुछ ऐसे भी युवा हैं, जो अपने कैरियर के साथ ही अपने देश व समाज के विकास को वरीयता देते हैं। ऐसे युवाओं को देशवासी अपना नेता चुनते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने को तैयार रहते हैं। ऐसे ही एक युवा हैं छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पाली ब्लॉक के अंतर्गत आने वाली सिलटी ग्राम पंचायत के निवासी रघुराज सिंह। इन्होंने उच्च शिक्षा अर्जित करने के बाद गाँव का रुख किया और अपने गाँव की तस्वीर बदल दी। अब अपने परिवार के सहयोग के चलते रघुराज सिंह ने अपनी 10-15 एकड़ खेती को आजीविका का माध्यम बनाया और गाँव के विकास में लगे हुए हैं। रघुराज के प्रयासों को शासन-स्तर से भी सभी तरह का सहयोग प्राप्त हो रहा है। पूरा प्रदेश इस गाँव को ‘आदर्श गाँव’ के रूप में देख रहा है।


रघुराज सिंह की ओर से चलाए गए विभिन्न अभियानों की वजह से सिलटी ग्राम पंचायत की पूरी तस्वीर बदली हुई है। इस गाँव में प्रवेश करते ही जलनिकासी की समुचित व्यवस्था दिखती है। सबसे ज्यादा जोर सफाई व्यवस्था पर रहा। जगह-जगह कूड़ेदान रखा हुआ है। गाँव के लोग कूड़दान का प्रयोग करते हैं। इतना ही नहीं गाँव की नालियां भी नियमित रूप से साफ की जाती हैं। सफाईकर्मी के न होने पर गाँव के लोग अपने घरों के सामने खुद सफाई करते हैं। ऐसे में सफाई के मामले में यह गाँव पूरे इलाके के लिए नजीर के तौर पर सामने आ रहा है। ग्रामीणों की सामूहिक भागीदारी का नतीजा है कि गाँव में घुसते ही पेयजल एवं स्वच्छता का नजारा साफतौर पर दिखता है। गाँव में नालियों तक में गन्दगी नहीं दिखती। यानि नालियों का पानी सड़क पर बहता हुआ नहीं दिखाई पड़ता है। नियमित सफाई होने के साथ ही यहाँ पेयजल स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी मिल रहा है। हैंडपम्प के प्लेटफार्म बने हुए हैं। इससे गन्दा पानी हैंडपम्प से कुछ दूर नालियों के जरिए आगे निकल जाता है। जिन स्थानों पर कुएँ हैं वहाँ भी सफाई की समुचित व्यवस्था की गई है। पाइप से होने वाली सप्लाई में पानी में क्लोरीन डालने के साथ ही नियमित तौर पर चूना पाउडर का छिड़काव किया जाता है। इस वजह से रघुराज सिंह को राष्ट्रपति के हाथों ‘निर्मल’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जबकि गाँवों में बालिकाओं को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए सत्येन्द्र मिश्रा सम्मान से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं रघुराज सिंह को गाँव में कुष्ठ निवारण अभियान के तहत किए गए कार्यों के लिए भी कई सम्मान प्रदान किए गए हैं।


कोरबा जिले के पाली ब्लॉक के अंतर्गत आने वाली सिलटी पंचायत की कुल आबादी लगभग 2300 है। इस ग्राम पंचायत में सभी जाति व धर्म के लोग रहते हैं। सभी का आपस में काफी अच्छा मेल-जोल है। ग्रामीण विभिन्न आयोजनों एवं समारोहों में एक दूसरे के हमदर्द भी रहते हैं, लेकिन ग्राम पंचायत के विकास को लेकर कोई खास काम नहीं हो पाया था। इसी ग्राम पंचायत में एक युवक का होनहार युवक का जन्म हुआ। इस युवक ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वे पंचायत के सरपंच बनेंगे। रघुराज सिंह बताते हैं कि वह बचपन से ही मेधावी रहे हैं। हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद अपने जिले से ही इंटरमीडिएट की पढ़ाई की। इसके बाद स्नातक किया उनके गाँव के तमाम बच्चे विभिन्न प्रोफेशनल कोर्स के जरिए नमचीन कंपनियों में नौकरी कर रहे थे। ऐसे में उन्होंने ने भी प्रोफेशनल कोर्स की ओर मन दौड़ाया। विभिन्न कोर्स के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद तय किया कि वह बीसीए करेंगे। इसके लिए उन्होंने भोपाल के बरकतुल्ला विश्वविद्यालय में आवेदन किया। अच्छे नंबर होने की वजह से विश्वविद्यालय में बीसीए कोर्स में प्रवेश मिल गया। इस कोर्स के करने के बाद फिर एमबीए करने का मन हुआ। इसके लिए बंगलोर विश्वविद्यालय में आवेदन किया। यहाँ एमबीए पढ़ाई पूरी की। एमबीए करने तक मन में सिर्फ और सिर्फ एक ही सपना था कि किसी अच्छी कंपनी में नौकरी करें। पढ़ाई पूरी होते ही बंगलुरू में नौकरी की शुरुआत की। विभिन्न कंपनियों में काम करने के बाद एक निजी कंपनी में बतौर मैनेजर काम शुरु किया। यह काम चुनौती पूर्ण था, लेकिन कभी असहज नहीं हुए। कंपनी में बतौर मैनेजर अच्छी शुरुआत हुई। कंपनी को फायदा होने के साथ ही कामगारों को भी बेहतरी देने की कोशिश की। इस बीच दीवाली की छुट्टियों में गाँव आए। गाँव में तमाम समस्याएँ देखीं। अन्य गाँवों की तरह ही इस ग्राम पंचायत में भी सफाई एवं पेयजल एक बड़ी समस्या थी। इस समस्या के निदान के लिए कोई तैयार नहीं था। गाँव के लोग जहाँ चाहते वहीं कूड़ा फेंकते थे। साफ पेयजल का भी इंतजाम नहीं था। इस वजह से गाँव में आए दिन बीमारियां फैलती थीं। कई बार बच्चों ने संक्रामक बीमारी की चपेट में आने की वजह से दम तोड़ दिया। इन सारी बातों को लेकर रघुराज के मन में भी चिंता थी, लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि इन समस्याओं का निस्तारण कैसे किया जाए। बस पढ़ाई-लिखाई के बाद अपने कैरियर की फिक्र थी।


रघुराज बताते हैं कि जब वह दीपावली की छुट्टी में घर आए तो उस दौरान गाँव में पंचायत के चुनाव चल रहे थे। गाँव में रात को चौपाल बैठती थी कि किसे सरपंच चुना जाए। यह देखकर उनके मन में सरपंच का चुनाव लड़ने वालों के प्रति अच्छे विचार नहीं थे। वे सोचते थे कि  आखिर सरपंच का चुनाव लड़ने के बाद लोग गाँव को क्योँ भूल जाते हैं। जिस मकसद के लिए ग्रामीणों ने उन्हें सरपंच चुना है, उसे पूरा क्यों नहीं करते हैं। इस तरह के तमाम सवाल उनके मन में उठने लगे थे। रघुराज सिंह बताते हैं कि वह पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी कर रहे थे। उनकी इच्छा थी कि पूरे परिवार के साथ शहर में शिफ्ट कर जाएं। कुछ ऐसी ही मंशा लेकर दीपावली के समय गाँव में आए। लेकिन गाँव में आने के बाद ग्रामीणों का दर्द देखा और पंचायत चुनाव के दौरान सरपंच पद को लेकर चल रही जोड़-तोड़ देखी तो उनका मन बहुत दुखी हुआ। वह गाँव की तमाम समस्याओं और ग्रामीणों के हालात को लेकर विचलित हो गए। इसी बीच गाँव के लोगों से बातचीत हुई। लोगों ने पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा। फिर कहा कि ऐसी पढ़ाई की है जो अपने ही गाँव के काम नहीं आ रही है। बस यहीं से मन बदल गया। लोगों का प्यार देखा। एक पढ़े-लिखे नौजवान से गाँव का हर व्यक्ति उम्मीद लगाए नजर आया। यहीं से मन बदल गया और तय किया कि पढ़ाई-लिखाई से जो कुछ भी सीखा है उसका पहला फायदा अपने ही गाँव के लोगों को दूंगा। इसी मंशा के साथ कुछ दिन में रुक गया। इसी दौरान पंचायत चुनाव चल रहे थे। परिवार के लोगों को बिना बताए ब्लॉक मुख्यालय पहुंचा और चुपचाप सरपंच के चुनाव का पर्चा दाखिल कर दिया। चुनाव में गाँव वालों ने नया सरपंच चुना। रघुराज बताते हैं कि सरपंच चुने जाने के बाद उनके सिर पर बड़ी चुनौती थी। क्योंकि आमतौर पर अभी तक चुने जाने वाले सरपंच से लोग कुछ ज्यादा उम्मीद नहीं लगाते थे, लेकिन उनसे ज्यादा उम्मीदें थीं। लोगों के भरोसा था कि पढ़ा-लिखा नौजवान सरपंच बना है तो गाँव की तस्वीर भी बदलेगी। ग्रामीणों की इन तमाम उम्मीदों की वजह से ही ज्यादा दिक्कते थीं। यदि लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं हो पाईं तो ग्रामीण टूट जायेंगे। उनका भरोसा टूट जाएगा। उन्हें लगेगा कि उनके गाँव की तस्वीर किसी भी कीमत पर नहीं बदल सकती है जो मुझे मंजूर नहीं था। मैं हर हाल में गाँव की तस्वीर बदलना चाहता था और जिस उम्मीद के साथ ग्रामीणों ने सरपंच चुना था, उसे पूरा करने का जज्बा था।

 

देश के तमाम युवा अपने बारे में ही सोचते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो खुद के साथ ही समाज व देश के बारे में भी सोचते हैं। ऐसे ही युवा हैं रघुराज सिंह। रघुराज सरपंच का पद सम्भालने के बाद धीरे-धीरे अपने गाँव की समस्याओं की ओर ध्यान देना शुरू किया। स्वच्छता एवं शिक्षा की दिशा में गाँव को नई राह दिखाई। अपने प्रयासों से और अपने ज्ञान से गाँव की खुशहाली की इबारत लिखनी शुरू की। नतीजा यह है कि राष्ट्रीय परिदृश्य में अपना झंडा गाड़ चुका यह गाँव सत्येन्द्र मिश्रा पुरस्कार सहित निर्मल ग्राम से भी पुरस्कृत हो चुका है।


रघुराज सिंह बताते हैं कि सरपंच चुने जाने के बाद सबसे पहले गाँव के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को विश्वास में लिया। लेखपाल से लेकर ‘ग्राम पंचायत विकास अधिकारी’ से बात की। सरकारी दिक्कतों एवं ग्राम पंचायत स्तर पर होने वाली दिक्कतों को समझा। फिर ब्लाक मुख्यालय जाकर अधिकारियों से बात की। इस दौरान तय किया कि यदि गाँव की सफाई व्यवस्था दुरुस्त कर दी जाए तो आधी समस्या का समाधान हो सकता है। इसके लिए अधिकारियों से बात करके गाँव में नालियों का निर्माण किया। कूड़ादान की व्यवस्था के साथ ही लोगों को खुद स्वच्छ रहने के प्रति जागरूक किया। इसका नतीजा रहा कि गाँव लोगों ने इसमें बढ़-चढ़कर सहयोग दिया। स्वच्छता अभियान पूरे गाँव ने जमकर चला। एक स्थिति यह आई कि जिला मुख्यालय के तमाम अधिकारी गाँव में आकर स्वच्छता अभियान के बारे में हकीकत जानने लगे। अधिकारियों के गाँव में आने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि तमाम ग्रामीणोँ की समस्याओं का गाँव में ही निस्तारण होने लगा। धीरे-धीरे समस्याओं का निस्तारण हुआ और गाँव में विकास के तमाम कार्य हुए। सड़क, बिजली, पानी, नाली, खड़ंजा आदि का निर्माण अधिकारियों की मौजूदगी में हुआ। ऐसे में कहीं से भी किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होने पाई। पेयजल एवं स्वच्छता की दिशा में किए गए तमाम कार्यों की वजह से ग्राम पंचायत को ‘निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना’ में चुना गया। इसके तहत ग्राम पंचायत को पुरस्कार मिले। पुरस्कार स्वरूप मिली राशि से ग्राम पंचायत में विकास कार्य कराए गए।



चीन की यात्रा से बहुत कुछ सीखा


ग्राम पंचायत में किए गए तमाम कार्यों की वजह से ही विदेश यात्रा का भी अवसर मिला। रघुराज सितंबर 2011 में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत चीन यात्रा पर गए। रघुराज का कहना है कि वहाँ ग्रामीण विकास की दिशा में तमाम कार्य हुए हैं जिसके जरिए भारत के गावों को भी संवारा जा सकता है। जैसे चीन के गाँवों में साफ-सफाई पर हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी निभाता है। ऐसे में भारत के लोग भी अपनी जिम्मेदारी निभाकर अपने गाँव और आस-पास के माहौल को स्वच्छ बना सकते हैं। चीन में देखे गए कार्यों के जरिए ही सिलटी गाँव में भी विकास कार्य कराने की कोशिश की जा रही है। रघुराज सिंह कहते हैं कि उनका जोर है कि उनके गाँव के लोग चीन की तरह ही अपने काम के जरिए तरक्की तरक्की करें। इसके लिए वह लोगों को न सिफ शिक्षा के प्रति जागरूक कर रहे हैं, बल्कि उन्हें नौकरी के नए-नए रास्ते भी बताते हैं।


बढ़ेंगे लोग तो बढ़ेगा देश

सरपंच रघुराज सिंह गाँव में साफ-सफाई के साथ ही पढ़ाई पर भी जोर दे रहे हैं। उनका मानना है कि यदि गाँव के लोग पढ़े-लिखे होंगे तो अपने विकास के बारे में सोचेंगे। इसी सोच के साथ ही सरपंच बनते ही ग्रामीणों को शिक्षित करने की कोशिश शुरू की गई। वह बताते हैं कि गाँव में लड़के तो पढ़ाई करते तो पर लड़कियों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं थी। ग्रामीण अपनी बच्चियों को पढ़ाने में ही कोई खास रुचि नहीं दिखाते थे। ऐसे में लोगों को समझाया गया। पंचायत की बैठक में पढ़ाई का मुद्दा सबसे आगे रखा गया। फिर घर-घर जाकर शिक्षा के फायदे बताए। अब स्थिति यह है कि गाँव का हर व्यक्ति अपने बेटे के साथ ही बेटियों को भी पढ़ा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में किए गए तमाम कार्यों के वजह से ही उन्हें सत्येंद्र मिश्र सम्मान से सम्मानित किया गया। अब उनकी कोशिश है कि गाँव में पढ़ाई के प्रति माहौल बने। ऐसे में लोगों को देश-दुनिया की जानकारी होनी चाहिए। गाँव में अखबार आने लगा है। अब कोशिश है कि नई लाइब्रेरी खोली जाए। इसके लिए प्रयास किया जा रहा है। जल्द ही नई लाइब्रेरी खुल जाएगी। ऐसे में गाँव के लोगों को हर तरह की किताबें मिल सकेंगी। लाइब्रेरी में इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि बच्चों के लिए ज्यादा से ज्यादा किताबें हों। क्योंकि बच्चों में ललक पैदा करने के लिए नई-नई किताबें होना भी जरूरी है। सिलटी के सरकारी स्कूल में 7 कम्प्यूटर हैं। इस कम्प्यूटर के जरिए बच्चे नई तकनीक की जानकारी ले रहे हैं। उनके लिए यह अनोखा प्रयोग है। सरपंच की कोशिश है कि गाँव के स्कूल में इस वर्ष दर्जनभर से अधिक कम्प्यूटर हो जाएं। इससे ज्यादा से ज्यादा बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा ग्रहण करने का मौका मिलेगा।


विभिन्न संगठनों ने दिया सहयोग

सरपंच की विकासात्मक सोच को देखते हुए कई कम्पनियां भी गाँव के विकास में सहयोग कर रही हैं। सरकारी-स्तर पर मिल रहे सहयोग के साथ ही विभिन्न समूहों की ओर से सहयोग मिलने से गाँव के विकास को गति मिली है। सरपंच रघुराज सिंह ने बताया कि उन्होंने टीपीसी के सहयोग से बाजार में 15 लाख रुपये का शेड बनवाया। इसके साथ ही जल्द ही गाँव में सौर ऊर्जा से प्रकाशित होने वाली स्ट्रीट लाइट लगने वाली है। वेदांता समूह के सहयोग से गाँव की लड़कियों को स्वरोजगार संबंधित प्रशिक्षण दिया जा रहा है। रघुराज सिंह बताते हैं कि विभिन्न कंपनियों में काम करने की वजह से उन्हें यह अच्छी तरह से पता है कि कंपनियां भी सामाजिक क्षेत्र में सहयोग करती हैं। ऐसे में वह अपने गाँव में विभिन्न कंपनियों से संपर्क करके तमाम विकासात्मक परियोजनाएं ला रहे हैं।


(लेखक स्वतंत्र पत्रकार)

ई-मेल : indreshc22@gmail.com

Path Alias

/articles/gaanva-kai-savacachataa-evan-saikasaa-kae-laie-samarapaita

Post By: iwpsuperadmin
×