गाँधी दर्शन के केन्द्र में है स्वच्छता

एस.पी. सिंह

गाँधी जी का मानना था कि केवल स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं है, यह भी आवश्यक है कि पुराने सामाजिक ढाँचे को तोड़कर एक नया ढाँचा तैयार किया जाए और इस कार्य में कहीं हिंसा नहीं होनी चाहिए। गाँधी जी ने जीवन भर इसी विषय पर कार्य किया और अपने लक्ष्य के लिए अब्राहम लिंकन की तरह शहीद हो गए। गाँधी और लिंकन में फर्क केवल इतना ही था कि गाँधी अपने लक्ष्य की प्राप्ति अहिंसा के द्वारा करना चाहते थे, जबकि लिंकन ने अपना लक्ष्य अमेरिका में गृह-युद्ध के बाद प्राप्त किया। दोनों की मृत्यु गोली लगने से ही हुई, जबकि दोनों की मृत्यु में 83 वर्ष का अंतराल था एवं दोनों ही एक-दूसरे से मीलों दूरी पर थे।

शौचालय की स्वच्छता

स्वच्छता एवं अस्पृश्यता पर गाँधी जी के विचार स्पष्ट एवं पूर्ण रूप से केन्द्रित थे। उनके आश्रम में प्रत्येक व्यक्ति को शौचालय की सफाई करनी पड़ती थी, जिसमें इन्दिरा गाँधी तथा विदेशी आगन्तुक भी शामिल थे। ऐसे ही विदेशी आगन्तुकों में नीला क्रैम कुक, जो भारत में सामाजिक समस्याओं पर शोध करने आई, एक युवा अमेरिकी महिला और एक लेखक की पुत्री थी, शामिल थी। मैसूर के चामुण्डी देवी मन्दिर में उसे प्रवेश नहीं करने दिया गया था। बाद में उन्होंने बैंगलुरु में सड़क सफाई अभियान की शुरुआत की और पास ही चीतल दुर्ग स्थित हरिजन बस्ती में कार्य करना आरम्भ किया। साबरमती एवं वर्धा स्थित गाँधी जी के आश्रम में भी उन्होंने कुछ समय व्यतीत किया। साबरमती आश्रम में उन्होंने शौचालयों की सफाई की और बाद में इस सन्दर्भ में प्रभावशाली लेख भी लिखे। ऐसे ही एक लेख में उन्होंने लिखा, ‘दिन में कितनी ही बार नहा लेने और इत्र छिड़क लेने के बावजूद मैं अपने शरीर से आती दुर्गंध दूर नहीं कर सकी। गाँधी वास्तव में महान थे, जो जीवन भर इसी दुर्गंध में रहे। उनका कार्य उनकी महानता का मापदण्ड है, जिसकी इतिहास में कोई मिसाल नहीं।’ वे न्यूयार्क में रहीं और आजीवन गाँधीवाद का प्रचार करती रहीं। अस्पृश्यता के मुद्दे पर गाँधी जी तटस्थ थे और किसी भी स्थिति में समझौता नहीं करना चाहते थे। स्कैवेंजर ही उनके सामाजिक परिवर्तन आन्दोलन के केन्द्र में थे और उन्हीं के साथ उन्होंने कार्य किया और रहे भी।

गाँधी जी ने जेल में रहकर एवं बाहर भी बहुत लेखन कार्य किया, क्योंकि वे जानते थे कि उनकी विरासत यही होगी कि उनके कार्य से गरीब व्यक्ति के जीवन में कितना परिवर्तन आया। केवल उनकी राजनीतिक उपलब्धियाँ ही नहीं गिनी जाएंगी। उनके लेखन की शैली 'बातचीत' की थी, विवरण की नहीं। वे दोनों पक्षों का मत सामने रखते थे- अपना एवं किसी मत पर अपने विरोधी का भी, जैसा कि 'हिन्द स्वराज'  में था। गाँधी जी सुकरात से प्रभावित थे और उन्होंने अपनी पुस्तक का नाम 'द डेथ एंड डिफेन्स ऑफ सोक्रेट्स' रखा था। महत्वपूर्ण यह है कि वे ‘श्रीमद्भगवतगीता' में श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद से अधिक प्रभावित थे, जिसका मुख्य प्रतिपाद्य ईश्वर, कर्म, भक्ति, एवं साधना है।

राजकोट में उनके पैतृक गृह घर में ऊका नाम की महिला स्कैवेंजिंग का कार्य करती थी। यदि गलती से गाँधी जी ऊका को छू लेते थे तो उनकी माता पुतली बाई उन्हें स्नान करने को कहती थीं। विनम्र एवं आज्ञाकारी पुत्र होने के बावजूद गाँधी जी को यह अच्छा नहीं लगता था। 12 वर्ष कि आयु में वे अपनी माँ से बहस करते थे, ऊका हमारे यहाँ साफ-सफाई कर हमारी सेवा करती है, मेरा उसे छूना मुझे प्रदूषित कैसे कर सकता है? मैं आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूँगा, किन्तु 'रामायण' में लिखा है कि राम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे। वह शबरी एक अस्पृश्य थी। इस प्रकार भगवान राम ने एक अस्पृश्य को गले लगाया। आदिकाव्य 'रामायण' हमें गलत नहीं सीखा सकता। उनके इस प्रश्न का माता पुतली बाई के पास कोई उत्तर नहीं था।

गाँधी जी को दक्षिण अफ्रीका के उनके मित्र महान स्कैवेंजेर के नाम से बुलाते थे। वहाँ तीन वर्ष तक रहने के बाद वे अपनी पत्नी और बेटों को लेने के लिए भारत लौटे। बॉम्बे प्रेसीडेंसी में उस वक्त प्लेग फैला हुआ था और उसके राजकोट तक फैलने की पूरी सम्भावना थी। गाँधी जी ने राजकोट की स्वच्छता व्यवस्था सुधारने के लिए तुरन्त अपनी सेवा देने कि पेशकश की। उन्होंने प्रत्येक घर की जाँच की और इस बात पर जोर दिया कि लोग अपने शौचालयों को साफ करें। अन्धकार युक्त गन्दे, बदबूदार एवं कीड़ों से भरे माहौल ने गाँधी को डरा-सा दिया। कुछ घरों, जो समृद्ध एवं ऊँची जाती के लोगों के थे में नालियों का प्रयोग शौच के लिए होता था एवं वहाँ असहनीय दुर्गन्ध आती थी। लोग इस तरफ से पूर्णतयः उदासीन थे। गरीब एवं अस्पृश्य लोग साफ घरों में रहते थे और गाँधी जी कि प्रार्थनाओं पर ध्यान देते थे। गाँधी जी ने सुझाव दिया कि मल एवं मूत्र के लिए अलग-अलग बाल्टियों का प्रयोग किया जाए। इससे स्थिति में थोड़ा सुधार अवश्य आया।

राजकोट में गाँधी के परिवार को लोग जानते थे। उनके पिता एवं दादा ने राजकोट एवं उसके आस-पास के राज्यों में दीवान का कार्य किया था। 70 वर्ष पूर्व एक दीवान के पुत्र का जो स्वयं एक वकील थे घर-घर जाकर उनकी नालियों का निरिक्षण करना, वास्तव में उनके उदात्त विचारों का परिचायक था। उन्होंने कई पश्चिमी परम्पराओं की आलोचना की, किन्तु बार-बार यही दोहराते रहे कि स्वच्छता का पाठ उन्होंने पश्चिम से ही सीखा है। वे चाहते थे कि वैसी ही स्वच्छता हमारे भारत में भी आए।

दक्षिण अफ्रीका से दूसरी बार भारत आने पर गाँधी जी कोलकाता में कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल हुए। वे यहाँ अफ्रीका में भारतीयों पर हो रही बर्बरता की बात करने आए थे। कांग्रेस के कैंप में स्वच्छता कि स्थिति अत्यन्त बुरी थी। कुछ प्रतिनिधि तो अपने कमरे के बाहर के बरामदे में ही मल त्याग देते थे और दूसरे लोग इसपर आपत्ति भी नहीं करते थे। गाँधी जी ने इस पर तुरन्त कार्यवाही की। उन्होंने जब स्वयंसेवियों से इस विषय में बात की तो उन्हें जवाब मिला, 'यह आपका कार्य नहीं, यह सफाई-कर्मचारी करेगा।' गाँधी जी ने एक झाड़ू मंगवाया और गन्दगी को साफ किया। इसके बाद उन्होंने पश्चिमी पोशाक पहनी। स्वयंसेवी उनका यह रूप देखकर हतप्रभ थे, किन्तु उनमें से कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया। वर्षों बाद, जब गाँधी जी देश के दिशा-निर्देशक बन गए तो कांग्रेस कैम्पों में सफाई-कार्य के लिए दल बनाए गए। एक बार तो केवल ब्राह्मणों द्वारा भंगियों का कार्य किया गया। हरिपुर कांग्रेस स्कैवेंजिंग का कार्य करने के लिए 2000 शिक्षकों एवं छात्रों को विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया गया। किसी एक वर्ग, जो समाज को गन्दगी से छुटकारा दिलाता है, पर अस्पृश्य का धब्बा लग जाए, गाँधी जी ऐसा सोच भी नहीं सकते थे। वे भारत से अस्पृश्यता पूरी तरह समाप्त कर देना चाहते थे।

गोरों का बर्ताव

दक्षिण अफ्रीका में गोरे भारतीयों को तुच्छ समझते थे। गाँधी जी ने उनके घरों का मुआयना किया और प्रार्थना की कि वे अपने घरों में एवं आस-पास सफाई रखें। उन्होंने इस बारे में सभाओं में भी बातचीत की एवं अखबारों में भी लिखा। डर्बन में गाँधी जी का घर पश्चिमी डिजाइन में बना हुआ था। उनके स्नानागार में जल-निकासी की व्यवस्था नहीं थी। शौच-पात्रों का प्रयोग उनके साथ रहने वाले क्लर्क आदि भी करते थे। वे अपनी पत्नी से भी उसे ही प्रयोग करने को कहते। ऐसा ही वे अपने युवा पुत्रों को भी कहते। एक बार निम्न वर्ग के एक क्लर्क द्वारा प्रयोग किए गए पात्र को उठाने में कस्तूरबा ने कुछ मुँह बनाया तो गाँधी जी ने बहुत गुसा किया और कस्तूरबा से कहा कि यदि जातिगत भेदभाव करना है तो वे तुरन्त घर छोड़ कर चली जाएँ। एक अस्पृश्य दम्पत्ति को अपने साबरमती आश्रम में प्रवेश दिलाने के कारण उन्हें अपने ही चाहने वालों ने सामाजिक तौर पर बहिष्कृत कर दिया था।

दक्षिण अफ्रीका की एक जेल में गाँधी जी ने एक बार शौचालय साफ करने का अभियान आरम्भ किया। अगली बार जेल कर्मचारियों ने उन्हें जेल की सफाई का कार्य सौंप दिया।

स्वच्छता लाने एवं स्कैवेंजिंग की प्रथा समाप्त करने में गाँधी जी के प्रयासों की यह अधूरी कहानी है। आज हमारे प्रधानमन्त्री गाँधी जी के अधूरे कार्य को पूरा करना चाहते हैं।

साभार : सुलभ इण्डिया नवम्बर 2014      

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