दो डिब्बों और एक थैले से कचरा प्रबन्धन

रूही भटनागर

बंगलुरू के एक अपार्टमेंट कॉम्पलेक्स की महिलाओं ने एक साथ मिलकर पूरे समुदाय को असरदार कचरा प्रबन्धन के मॉडल को अपनाने के लिये मजबूर कर दिया। आइए जानें कि उन्होंने यह कार्य कैसे सम्भव किया।

तस्वीर में जो महिलाएं दिखाई गई हैं लगता है कि वे किटी पार्टी कर रही हैं लेकिन असलियत में वे उससे ज्यादा गम्भीर काम कर रही हैं, ऐसा काम जिसकी हम सब उपेक्षा करते हैं लेकिन वो काम उस दुनिया पर बहुत बड़ा फर्क डालता है जिसमें हम सब रहते हैं।

नए युग की महिलाओं की यही परिभाषा है जो अपने घर-परिवार और नौकरी को सम्भालने के अलावा अपने समुदाय के लोगों को यह अहसास कराने की भी जहमत उठाएं कि एक साफ, स्वस्थ, टिकाऊ और स्वच्छ वातावरण बनाने में उनके योगदान की अहमियत क्या है।

आइए बंगलुरू के आवासीय अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स शोभा क्वार्ट्ज की एसडब्लूएम की टीम से मिलते हैं।

इन `दैवीय महिलाओं’(पावरपफ गर्ल्स) के अथक प्रयासों और कॉम्पलेक्स के सहयोगपूर्ण निवाससियों के चलते शोभा क्वार्ट्ज अब ऐसा आवासीय समुदाय बन चुका है जो कि कचरे को अलग करने और कचरे को लैंडफिल में फेंके जाने को कम करने में पूरी तन्मयता से लगा हुआ है।

दो सौ परिवारों के समुदाय ने अपना पर्यावरण बचाने के उद्देश्य के लिए जिम्मेदार नागरिक बनकर एक दूसरे के साथ हाथ मिलाया है।

हमारी आधुनिक जीवन शैली और आबादी की बढ़ती दर के चलते इन दिनों कचरे का निस्तारण एक बड़ी परेशानी का सबब बन गया है। पिछले साल बीबीएमपी ने घरेलू स्तर पर भारी कचरा पैदा करने वाले लोगों (जैसे कि अपार्टमेंट कॉम्पलेक्स) को दिशानिर्देश जारी करके कहा कि वे अपने परिसर में ही कचरे का ज्यादा असरदार ढंग से निस्तारण करें वरना उन पर जुर्माना लगाया जाएगा। इस प्रकार कचरे की छंटाई और उसे दिशानिर्देश के मुताबिक निस्तारित करना आवश्यक हो गया।

क्वार्ट्ज पर एसडब्लूएम का काम पाँच महीने पहले तब शुरू हुआ, जब शुभा त्रिपाठी नाम की एक निवासी का कासा मुक्त बेलन्दूर समूह से सम्पर्क हुआ। यह समूह बेलन्दूर इलाके में दो डिब्बे और एक थैले की नई तकनीक से कचरा छांटने के काम में सक्रिय तौर पर लगा हुआ है।

शुभा कहती हैं, “आप जहाँ भी जाते हैं वहाँ सड़क पर, खाली प्लांट पर और बन्जर जमीन पर कचरे के ढेर पड़े मिलते है। इससे हमारे पर्यावरण को अपूर्णनीय क्षति होती है। इसलिए लैंडफिल पर कचरे का ढेर लगने से बचाने के लिए स्रोत पर ही कचरे की छंटाई, रिसाइक्लिंग और कचरे को जिम्मेदारी से फेंकना ही एक मात्र समाधान है।”

कुछ दिनों के भीतर ही समान सोच के दोस्तों और पड़ोसियों को मिलाकर स्वयंसेवकों की एक टीम बन गई। उन्होंने आर्गेनिक, रिसाइकिल होने लायक और एकदम फेंके जाने लायक कचरे को रखने के लिए दो डिब्बों और एक थैले की पद्धति अपनाई। इससे निवासियों (अभिभावकों और बच्चों दोनों) , नौकरानियों और साफ सफाई वाले स्टाफ को कचरे की छंटाई समझने और अपनाने में सहूलियत हो गई।

ऑर्गेनिक कचरे को कम्पोस्ट में डाला जा सकता है और उससे खाद बनाई जा सकती है। रिसाइकिल करने लायक (व्हाइट) कचरे को किसी कबाड़ी वाले को बेचा जा सकता है ताकि वह फिर से किसी काम में आ सके। एकदम फेंके जाने लायक कचरा जो कि कुल कचरे का 10 प्रतिशत होता है वह लैंडफिल में जाएगा न कि सभी प्रकार का कचरा।

व्यस्त पारिवारिक और प्रोफेशनल जीवन और उससे जुड़ी कठिन चुनौतियों के बावजूद समुदाय के सदस्य अपनी भावी कार्रवाई की दिशा तय करने के लिये एकाध बार मिलते जरूर हैं। त्वरित चर्चा के लिए उनके पास एक व्हाटस एप समूह भी है। निवासियों की सहमति और फैसलों के पालन की निगरानी के लिए वे घर-घर जाते हैं , नियमित ई-मेल भेजते हैं और ताजा समाचार भी बताते हैं ताकि समुदाय का उत्साह बना रहे।

टीम की एक अन्य सदस्य शीला बताती हैं, ``शुरुआती एक दो महीनों में हमने उन फ्लैटों को चिह्नित किया जो कचरे को छांटते नहीं थे, लेकिन उससे आंकड़ों में सुधार नहीं हुआ और तमाम लोग चिह्नित किए जाने से अप्रसन्न भी थे। हालांकि फरवरी के महीने में हमने रणनीति बदलने का फैसला किया और उन निवासियों के नामों को चर्चा में लाने का फैसला किया जो कचरे को अच्छी तरह छांटने की जहमत उठाते थे। इससे लोगों में सकारात्मक सोच आई और नजरिए में बदलाव आया।’’

यहाँ तक स्थिति लाने में लोगों को सहमत करने, तमाम मेहनत और गम्भीर किस्म की प्रतिबद्धता की जरूरत पड़ी लेकिन उसके हमें परिणाम मिले और महीने भर के कचरे में बेकार कचरे की मात्रा घट कर महज 10 प्रतिशत रह गई। एसडब्लूएम समूह ने प्रशंसा के तौर पर कचरे की लगातार छंटनी करने वाले और सक्रियता दिखाने वाले परिवारों को कपड़ा खरीदने वाले बैग का तोहफा देने का फैसला किया।

शीला कहती हैं,`` सबसे विस्मयकारी और दिल खुश करने वाली कहानी उन परिवारों की रही जो छंटाई के बारे में एकदम नहीं जानते थे और डिब्बे पर निशान के बिना भी पक्की छंटाई करने लगे थे।’’

कचरे के व्यापारी क्वार्ट्ज के निवासियों से रेड और ग्रीन डिब्बे के लिए तो कीमत लेते हैं, लेकिन रिसाइकिल होने वाले सफेद थैले से उन्हें  व्यावसायिक फायदा मिलता है, इस तरह कॉम्पलेक्स की कुल लागत घट जाती है। लेकिन ऐसा हाउसकीपिंग स्टाफ के समर्पण के बिना सम्भव नहीं हो पाता।

टीम की एक सदस्य आनंदी कहती है,`` टीम और हाउसकीपिंग स्टाफ के बीच संवाद मुख्य बाधा थी क्योंकि हममें से ज्यादातर लोगों को स्थानीय भाषा नहीं आती थी और उन्हें अंग्रेजी लिखना और पढ़ना नहीं आता था। हमने रंगीन तस्वीरों के साथ उनके सामने प्रदर्शन किया ताकि वे इकट्ठा किए गए कचरे को अच्छी तरह से पहचान सकें। उदाहरण के लिए रिसाइकिल किए जाने वाले कचरे के बैग में अगर तेल और ग्रीज लगा कागज मिलता है तो नौकरानी उसे बेकार कचरे वाले बैग में डाल देती है क्योंकि कचरे का व्यापारी उसे रसोई के कचरे में नहीं शामिल करता या रिसाइकिल किया जाने वाला कोई भी कचरा अगर ऑर्गेनिक कचरे में मिलता है तो उसे रिसाइकिल किए जाने वाले बैग में छोड़ दिया जाता है।

इस तरह की किसी उपलब्धि के लिए पूरे समुदाय की मेहनत लगती है, इसलिए यह कहना अनावश्यक है कि यह सर्वोत्कृष्ट जिम्मेदार नागरिक समाज है जो पर्यावरण की सेहत की परवाह करता है। उम्मीद की जानी चाहिए यह आदत सभी इलाकों में फैले। समय की माँग यह है कि कचरे की छंटनी को अपनी जीवन शैली बना ली जाए, लेकिन इसे रोज लागू करने में लगातार प्रयास की जरूरत है।

आनन्दी उत्साह के साथ कहती है, ``कभी मैं प्लास्टिक बैग का लगातार प्रयोग करती थी लेकिन अब मैं शापिंग के लिए अपने कपड़े के थैले का इस्तेमाल करती हूँ। स्वच्छ भारत का लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जब हम में से हर कोई महसूस करे कि मेरा कचरा मेरी जिम्मेदारी है और कचरा इधर-उधर फेंकने में कमी लाने में मैं अपना योगदान दूँ। हमारे पास रहने के लिए एक ही ग्रह है और इसलिए अपने गैर जिम्मेदाराना व्यवहार से इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए।’’

एक कहावत भी है कि ,``हमें धरती अपने पुरखों से विरासत में नहीं मिली है, बल्कि हमने इसे अपने बच्चों से उधार लिया है...’’

लेखिका परिचय: `चिकन सूप फॉर इंडियन सोल’ की लेखिका हैं और उनके चित्र कई स्थानीय प्रदर्शनियों में प्रदर्शित हो चुके हैं।    

अंग्रेजी से साभार अनूदित

साभार : बेटर इण्डिया वेबसाइट

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