दिल्ली वासियों के लिए खतरा बन रहे हैं कचरे के पहाड़

नई दिल्ली, 28 जून (एजेंसी): राष्ट्रीय राजधानी में मौजूदा “लैंडफिल” स्थलों का उपयोग उनकी क्षमता से ज्यादा हो रहा है और नगर के 5 नगर निकाय “कोई अन्य विकल्प” नहीं होने से मानव जीवन के “जोखिम” पर उनका उपयोग करने के लिए बाध्य हैं। दिल्ली सरकार की आर्थिक रिपोर्ट में कहा गया है कि नगर में 8360 एमटीडी (मीट्रिक टन रोजाना) कचरा पैदा होता है लेकिन उसके सभी 3 “लैंडफिल” स्थलों की क्षमता 4660 एमटीडी ही है। रिपोर्ट के अनुसार सभी ऐसे स्थलों का उनकी क्षमता से अधिक उपयोग किया जा रहा है। भलस्वा लैंडफिल स्थल की शुरूआत 1994 में हुई थी, जबकि गाजीपुर लैंडफिल स्थल की 1984 में और ओखला की 1996 में शुरूआत हुई थी। उनमें से कोई भी 2,000 के नगर ठोस कचरा नियमों के अनुरूप डिजायन नहीं है। सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि पाँचों नगर निकायों ने सूचित किया है कि उनके पास उनका उपयोग करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है लेकिन वहाँ “मानव जीवन के जोखिम पर” कार्य जारी है।

 

सभी ऐसे स्थलों का उनकी क्षमता से अधिक उपयोग किया जा रहा है। भलस्वा लैंडफिल स्थल की शुरूआत 1994 में हुई थी, जबकि गाजीपुर लैंडफिल स्थल की 1984 में और ओखला की 1996 में शुरूआत हुई थी। उनमें से कोई भी 2,000 के नगर ठोस कचरा नियमों के अनुरूप डिजायन नहीं है।

 

पूर्वी दिल्ली नगर निगम की स्थिति सबसे ज्यादा दुविधापूर्ण है, क्योंकि गाजीपुर लैंडफिल स्थल की क्षमता काफी पहले ही पूरी हो चुकी है औऱ उसे 2200 एमटीडी कचरा रोजाना लेना होता है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के 2200 एमटीडी में करीब 1300 एमटीडी ठोस कचरे का गाजीपुर के कचरे से बिजली बनाने वाले संयंत्र में प्रसंस्करण किया जाएगा। इस संयंत्र के इसी साल चालू होने की सम्भावना है लेकिन शेष 900 एमटीडी के बारे में कोई प्रस्ताव नहीं है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल कहा था कि नगर ठोस कचरा नियमों के अनुसार लैंडफिल स्थलों की ऊँचाई 70-80 फुट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए लेकिन उनकी मौजूदा ऊँचाई 150-160 फुट है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम और दक्षिण दिल्ली नगर निगम के मामले में भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है।

 

दिल्ली नगर निगम ने नरेला बवाना स्थित लैंडफिल साइट को ऑपरेशन बनाने की तैयारी कर ली है। यह पहली ऐसी जगह होगी, जहाँ इनवायरमेंट फ्रैंडली तरीके से कूड़े का निस्तारण किया जाएगा। यह प्रोजेक्ट 400 मीट्रिक टन कचरा निस्तारित करेगा। यह प्रक्रिया दो चरणों में पूरी होगी। पहला चरण कूड़े के निस्तारण से जुड़ा होगा, जबकि दूसरे में इससे बिजली पैदा की जाएगी।

 

1. 1300 मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण नरेला-बवाना साइट करेगी। इससे मौजूदा साइट पर बोझ कम हो सकेगा।

2. 183 मीट्रिक टन ज्वलनशील कचरा इंडस्ट्रीयल प्रयोग में लाया जाएगा।

3. 400 मीट्रिक टन ऑर्गेनिक वेस्ट डिस्पोज किया जाएगा।

4. 500 मीट्रिक टन कचरे से मेटेरियल रिकवरी की जाएगी।

5. 212 मीट्रिक टन रिजेक्ट किए गए कचरे का इस्तेमाल सेनेट्री लैंडफिल में किया जाएगा।

6. तीन लेयर की स्पेशल लाइनर भी लगाई जाएगी, ताकि कूड़े से निकले जहरीले पदार्थ जमीन में न जा सकें।

7. कूड़े से निकलने वाले जहरीले पानी को नालों में बहाने से पहले शोधित किया जाएगा।

 

साभार : नवोदय टाइम्स 29 जून 2015

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