द इवोक-2 : स्वच्छता के गीत

डॉ. रूपक राय चौधरी

 

सामाजिक संघर्ष पैदा करने वाले मुद्दों में कभी-कभी नृत्य एवं संगीत भी लाभकारी हो सकते हैं। किसी भी सन्देश के सम्प्रेषण में संगीत और लघु नाटिका द्वारा सफलता मिलने की सम्भावना अधिक हो जाती है। यह तर्क देना ठीक है कि उस संगीत के साथ, जिसमें माधुर्य और गीतात्मकता हो, जिसे बार-बार दोहराया जा सके, जिससे संवाद बना रहे तथा जो स्थानीय स्तर पर सन्देश की पहुँच आसान कर दे, खासतौर से ग्रामीण लोगों तक, जिनके पास सीमित संसाधन होते हैं, समाज प्रभावित होता है। प्रभावोत्पादकता उसकी जरूरत होती है। गीत और नृत्य के जरिए बच्चों को किसी विशेष मुद्दे की ओर आकर्षित करके उसके व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है।

 

पिछले साल की तरह, इस साल भी ‘द इवोक-2’ की प्रस्तुति दिल्ली में हुई। 7 मई, 2014 को आयोजित ‘द इवोक-2’ अत्यन्त सफल साबित हुआ। आयोजन के दिन दिल्ली के 10 विद्यालयों के प्रतिभागियों ने सुलभ-ग्राम में इस तरह प्रवेश किया, मानो वे अन्य टीमों को पछाड़ने वाली सर्वोत्कृष्ट टीम हैं और यह अवसर उनकी क्षमता साबित करने का है।  एक अनोखा और शानदार घटनाक्रम, जिसमें दर्शकों का उत्साह था। उसमें उन सभी के लिए सफलता थी, जो उससे जुड़े थे।

 

दूसरा प्रशंसनीय पक्ष था, नृत्य की संरचना, जिसमें अनेक सामाजिक विषय प्रतिबिम्बित थे और जिनसे वर्तमान सामाजिक समस्याओं को लेकर हमारी समझ का दायरा बढ़ा।

 

ये कलाकार दिल्ली और ओडिशा के विभिन्न विद्यालयों से आए हुए सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब के सदस्य थे। वे पहले से चल रहे स्कूल-स्वच्छता-कार्यक्रम के एक अंग हैं, जो छात्रों और समुदाय के सदस्यों में स्वच्छता के मानकों के प्रति जागरूकता लाकर उसकी बेहतरी के लिए प्रयास करते हैं। यह समूह संगीत का इस्तेमाल करके लोगों को समझाने का प्रयास कर रहा है कि स्वच्छ एवं स्वस्थ बने रहने के लिए किस तरह अस्वच्छता, जल और भोजन सम्बन्धी आपूर्तियों पर दुष्प्रभाव डालती है।

 

दर्शक और श्रोताओं की ओर से कलाकारों को मिश्रित प्रतिक्रियाएँ मिलीं, जिनमें कुछ लोगों ने अपना चेहरा ढक लिया, जबकि कुछ हँस रहे थे। लेकिन स्वच्छता का सन्देश पहुँचा दिया गया।

 

जैसे-जैसे कलाकार नाटकीय ढंग से झाड़ू और पोंछे के जरिए बता रहे थे कि किस तरह उचित स्वच्छता आ सकती है, दर्शक प्रशंसा कर रहे थे और हँसी के फव्वारे भी छूट रहे थे।

 

‘नृत्य और नृत्य निर्देशन में मुझे रूचि है, जिस कारण ‘द इवोक-2’ मुझे पसन्द आया। इसमें सामाजिक मुद्दों को बेहद सहजता के साथ बताया गया है।’ यह प्रतिक्रिया थी उत्साह से भरी सुश्री जया विर्ली की, जो पीतमपुरा, दिल्ली स्थित बोस्को पब्लिक स्कूल की शिक्षिका हैं।

 

‘दरअसल ‘द इवोक-2’ एक साकार और पुनर्नवीनीकरण का अनुभव था। इस भ्रमण के लिए आपका धन्यवाद है।’ एक युवा कत्थक नृत्यांगना सुश्री विदिप्ता बनर्जी, जो जिनवानी पब्लिक स्कूल, द्वारका की छात्रा हैं, का यह कहना था।

 

सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब, ओडिशा के एक युवा सदस्य श्री चन्दन मिश्र ने कहा, ‘हम हाथ धोने के सही तरीके, शौचालय की सफाई और निजी शुचिता पर स्कूल और कॉलेज में अपने जागरूकता अभियान के दौरान बल देते हैं। हम जानते हैं कि बीमारी से बचाने में शौचालय महत्वपूर्ण है।’


जैसे-जैसे कलाकार नाटकीय ढंग से झाड़ू और पोंछे के जरिए बता रहे थे कि किस तरह उचित स्वच्छता आ सकती है, दर्शक प्रशंसा कर रहे थे और हँसी के फव्वारे भी छूट रहे थे।

 

‘सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब एक परिवार की तरह है।’ यह टिप्पणी थी सुश्री रिया पांडे की, जो माउंट कार्मेल स्कूल, द्वारका की छात्रा और इस आयोजन की एक संचालिका थीं, ‘वास्तव में यह सच है! और हर बीतते हुए वर्ष के साथ यह परिवार बढ़ रहा है। धन्यवाद है हमारे उद्यम को। हमारे सदस्यों को शुभकामनाएँ’

 

द्वारका, नई दिल्ली के सैम इंटरनेशनल स्कूल की शिक्षिका सुश्री रूमा मुखर्जी के अनुसार, ‘द इवोक-2’ से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है और मैं बड़े गर्व के साथ कह सकती हूँ कि हमारे छात्रों ने स्वच्छता का महत्व सीख लिया है।’

 

‘सूचनाओं के प्रसार-प्रचार में बच्चों का बड़ा प्रभाव है। हमारे सदस्य छात्र कविता और लघु नाटकों के जरिए उसे समझाने में मदद करते हैं।’ यह प्रतिक्रिया थी निओ कॉन्वेंट स्कूल, पश्चिम विहार में शिक्षिका सुश्री कल्पना चौहान की।’

 

इस अवसर पर सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब के संरक्षक डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने कहा, ‘मैंने यह महसूस किया कि एक सन्देश को प्रेषित करने और लोगों को साथ लाने में संगीत एक अच्छा माध्यम है। संगीत का अपना एक प्रभाव है। इसलिए हमने सोचा कि हम जो पाना चाहते हैं, उसमें उसे शामिल करना अच्छा होगा।’

 

उनके अनुसार, ‘कलाकारों का उद्देश्य लोगों का सिर्फ मनोरंजन करना नहीं था, बल्कि संगीत का इस्तेमाल समाज को रूपान्तरित करने के प्रयास के लिए किया गया। इसीलिए मैंने इन युवा छात्रों को यह सुझाव दिया है कि वे अपने गीत और नृत्य द्वारा सिर्फ लोगों का मनोरन्जन न करें, बल्कि ऐसी परियोजनाएँ हाथ में लें, जो समाज के लिए लाभकारी हों।’

 

वास्तव में संगीत ज्ञानार्जन का एक सशक्त अस्त्र है, जो बच्चों और किशोरों के समग्र विकास को सुविधाजनक बना सकता है। संगीत और नृत्य का इस्तेमाल एक अस्त्र के रूप में एक उत्प्रेरक की भूमिका भी निभा सकता है। विषय आधारित नृत्यों का इस्तेमाल ऐसी भावनाएँ पैदा कर सकता है, जो शिक्षा प्रसार के एक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और एक साधन के रूप में भी। जल और स्वच्छता जैसे विषयों से जुड़े छात्र भी इससे प्रेरित हो सकते हैं।

 

साभार : सुलभ इण्डिया मई 2014

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