भारत में स्वच्छता सुधार

डॉ. ललित कुमार

 

भारत सरकार के रक्षा मन्त्रालय के लेखा महानियन्त्रक श्री अरविन्द कौशल के आमन्त्रण पर सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने 5 दिसम्बर, 2014 को बरार स्कवॉयर, दिल्ली छावनी के भारतीय रक्षा लेखा सेवा के अधिकारियों को उनके प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान सम्बोधित किया। व्याख्यान का विषय था, ‘तकनीकी अन्वेषणों से अस्पृश्यों की जीवन दशा में परिवर्तन एवं भारत के स्वच्छता में सुधार’, जिसे अधिकारियों एवं शिक्षकों ने काफी पसन्द किया।

रक्षा लेखा के संयुक्त महानियन्त्रक श्री एन.आर. दास ने डॉ. पाठक का परिचय स्वच्छता के क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ एवं नवप्रवर्तक के तौर पर किया, जिन्होंने स्वयं में एक समाज वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रशासक और संस्था निर्माता की विशेषज्ञता समावेशित की है। यह उल्लेखनीय तथ्य है कि उन्होंने इन दक्षताओं का उपयोग शोषित वर्गों को समृद्ध एवं सशक्त बनाने, सामाजिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और पर्यावरण में सुधार के लिए किया। स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान तथा स्कैवेंजरों को मुक्त कर समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए उन्हें राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर के कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

डॉ. पाठक ने टू पिट पोर फ्लश कम्पोस्ट शौचालय तकनीक की जानकारी दी, जो जनसाधारण को उनकी आर्थिक स्थिति के अनुकूल शौचालय सुविधा उपलब्ध कराने और सर पर मैला ढोने जैसे घृणित कार्य में लिप्त स्कैवेंजरों को मुक्त करने में सहायक सिद्ध हुई। डॉ. पाठक ने बताया कि सुलभ शौचालय में दो गड्ढे होते हैं, एक बार में एक ही गड्ढे का उपयोग होता है। जब पहला गड्ढा भर जाता है तो उसे बन्द कर दिया जाता है और अपशिष्ट को दूसरे गड्ढे की ओर मोड़ दिया जाता है। पहले पिट का मल लगभग दो वर्षों में सूखकर उत्तम खाद बन जाता है, जो नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम से युक्त जैव उर्वरक के तौर पर फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सुलभ शौचालय पानी की बचत करने में भी सहायक है, जो देश के लिए आवश्यक है। सुलभ शौचालयों में फ्लश के लिए सिर्फ 1-1.5 लीटर जल की आवश्यकता होती है, जबकि पारम्परिक शौचालयों में 8-10 लीटर जल की आवश्यकता होती है। इन गड्ढों की सफाई कोई भी व्यक्ति कर सकता है। चूंकि सुलभ शौचालय की सफाई में स्कैवेंजर की आवश्यकता नहीं होती है। एतदर्थ यह सामाजिक परिवर्तन का एक माध्यम बन गया है।

डॉ. पाठक ने कहा कि सुलभ शौचालय तकनीक ने समाज को बड़े पैमाने पर लाभान्वित किया है और यह स्वच्छता के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ है, जिसने मानव मल के निपटान की केन्द्रित प्रणाली (सीवर व्यवस्था) का विकेन्द्रीकरण किया। यह तकनीक सरल एवं सुगम है, इसे आसानी से निर्मित किया जा सकता है और यह सामाजिक रूप से स्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा आविष्कृत एवं विकसित सुलभ तकनीक को बी.बी.सी होराइजन्स ने आधुनिक काल में दुनिया के पाँच अद्वितीय आविष्कारों में से एक स्वीकार किया है। संयुक्त राष्ट्र ने भी इसे कम लागत वाली उत्तम तकनीक माना है।

डॉ. पाठक ने श्रोताओं को बताया कि एक ओर सुलभ तकनीक ने लोगों में यह व्यवहारजन्य परिवर्तन देखा कि खुले में शौच करने की बजाय सुलभ शौचालय का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे बाल्टीनुमा शौचालय फ्लश शौचालय में परिवर्तित हो रहे हैं और इन स्वच्छ शौचालय का इस्तेमाल सुरक्षा और सम्मान के साथ किया जा रहा है और दूसरी तरफ तथातथित अस्पृश्य स्कैवेंजरों को सर पर मैला ढोने के अमानवीय कार्यों से मुक्ति मिली, जिसका चलन लगभग 5,000 वर्षों से था। इन शौचालयों में उत्पन्न गैस मिट्टी द्वारा सोख ली जाती है, जो ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को कम करती है और जलवायु परिवर्तन को सुरक्षित रखने में मदद करती है।

अभी तक अकेले सुलभ ने 1.3 लाख बाल्टीनुमा शौचालयों को सुलभ फ्लश शौचालयों में परिवर्तित किया है और लाखों स्कैवेंजरों को मानव मल की सफाई एवं अस्पृश्यता की बेड़ियों से मुक्त कर उन्हें कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान कर पुनर्वासित किया है। सुलभ ने देशभर के नगरों, महानगरों एवं धार्मिक स्थलों के सार्वजनिक स्थानों में 8,500 से अधिक सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया है। 1.5 करोड़ से अधिक लोग प्रतिदिन इन शौचालयों का उपयोग करते हैं। बिहार के एक छोटे शहर आरा से आरम्भ होकर आज यह संगठन देशभर के 26 राज्यों के 516 जिलों और 1,599 शहरों तथा चार केन्द्र शासित प्रदेशों में कार्यरत है। सुलभ ने अफगानिस्तान और भूटान में  भी शौचालयों का निर्माण किया है और 15 अफ्रिकी देशों के सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया है।

साभार : सुलभ इण्डिया दिसम्बर 2014  

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