भारत 2022 तक खुले में शौच से मुक्त होगा

जनक सिंह एवं ए.के.सेनगुप्ता

 

नई दिल्ली लोधी रोड-स्थित स्कोप सभागार में 15 फरवरी, 2012 को केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता-मन्त्रालय-द्वारा ग्रामीण स्वच्छता प्रवर्धन-हेतु राष्ट्रीय परामर्श का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य मुद्दा शौचालय था। चर्चा में हिस्सा लेने वाले प्रमुख गैर-सरकारी संगठनों ने बहुत विस्तार से इस मुद्दे पर बातचीत की कि भारत की निरन्तर बढ़ती मलिन बस्तियों और ताल-तलैयों में बैक्टीरिया के बढ़ने से अनेक बीमारियाँ पैदा होती हैं और देशभर में ग्रामीण इलाके के लोग उससे प्रभावित होते हैं।

भारत और विदेश के अधिकारिगण, स्वास्थ्य-विशेषज्ञ और वे सभी लोग, जो स्वास्थ्य-सम्बन्धी समस्याओं को बहुत नजदीक से जानते हैं, उसके समाधान के तरीके बनाने और कारगर कदम उठाने की बात कही, ताकि ग्रामीण भारत की तस्वीर बदली जा सके, उसे वह प्राचीन गौरव मिल सके, जो भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी, पूर्व से पश्चिम तक पूरे देश का रहा है। जनसंख्या वृद्धि ने ग्रामीण भारत के उन आयामों का बदलना प्रारम्भ किया, जिनकी भव्यता का वर्णन बीते वर्षों में पुस्तकों और पत्रिकाओं में किया गया था।

दिनभर चले इस कार्यक्रम में रचनात्मक चर्चा हुई, जो भारत के ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता-विभाग के माननीय मन्त्री श्री जयराम रमेश के इस कथन  से स्पष्ट था, ‘खुले में शौच की प्रथा निश्चय ही सन 2022 तक समाप्त कर दी जाएगी, चाहे उसके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े। यह देश के दूर-दराज के इलाकों से भी हटाई जाएगी। केन्द्र-सरकार इसको लेकर अत्यधिक चिन्तित है।’ ग्रामीण भारत की तस्वीर को बदलने की तीव्र इच्छा श्री रमेश की थी, वह समारोह मंे पूरे समय बैठे रहे। गैर-सरकारी संगठनों तथा दूसरे प्रतिभागियों ने ग्रामीण स्वच्छता की जिन समस्याओं की बात की, उन्हें लेकर माननीय मन्त्री महोदय की गहरी चिन्ता स्पष्ट थी।

श्री जे.एस. माथुर (संयुक्त सचिवः स्वच्छता) ने सम्मेलन में उपस्थित सम्माननीय प्रतिभागियों का स्वागत किया।

सम्मेलन में उपस्थित विशिष्ट लोगों को सम्बोधित करते हुए पेयजल और स्वच्छता-विभाग की सचिव सुश्री विलासिनी रामचन्द्रन ने कहा, ‘स्वच्छता का सीधा सम्बन्ध स्वास्थ्य से है। स्वच्छ जल और स्वच्छता के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है। हम सन 1980 के आरम्भिक दशक से ग्रामीण स्वच्छता के कार्यक्रम चला रहे हैं, लेकिन उसकी प्रगति बहुत धीमी है। सन 2008 में किए गए राष्ट्रीय सैंपल सर्वे आॅफिस के सर्वेक्षण के अनुसार, आबादी के केवल 34 प्रतिशत लोगों को उसकी सुविधा मिली है। गैर-सरकारी संगठनों के बीच अर्थपूर्ण प्रतिभागिता की जरूरत है। आज हम 12वीं पंचवर्षीय योजना के द्वार पर हैं। यही सर्वोत्तम समय है सोचने का कि दृष्टिकोण और कार्यान्वयन में किस तरह के निर्देशात्मक बदलाव लाए जाएँ।’

अपने उद्घाटन-भाषण में भारत-सरकार के माननीय ग्रामीण विकास तथा पेयजल एवं स्वच्छता मन्त्री श्री जयराम रमेश ने स्वच्छता-कार्यक्रमों के लिए बजट-प्रावधान में वृद्धि की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि भारत-सरकार-द्वारा समर्थित आवासन तथा जलापूर्ति-कार्यक्रम को उसके साथ जोड़ना चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि स्वच्छ शौचालय-निर्माण की सही लागत पर ध्यान देने की जरूरत है। उसके निर्माण में इस्तेमाल की जानेवाली वस्तुओं और श्रम की बढ़ती लागत को ध्यान में रखना पड़ेगा। जिन लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना है, उनके बारे में वास्तविकतावादी दृष्टिकोण होना चाहिए। जहाँ तक उपयोग की बात है, पूरी उपलब्धि पर ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। सतत चलने वाली तकनीकों को पर्यावरण-सम्बन्धी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए विकसित करने की जरूरत है। उनके अनुसार, स्वच्छता को सामाजिक चुनौती के रूप में देखना चाहिए। हमारा दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि देश के ग्रामीण इलाकों को यानी देश के ढाई लाख ग्राम-पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त किया जाए।

पंचायत और गैर-सरकारी संगठन स्वच्छता-अभियान में शामिल हों: जयराम रमेश

माननीय मन्त्री जी ने सम्पूर्ण स्वच्छता-अभियान के ढाँचे को बड़े पैमाने पर बदलने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर एक व्यापक आन्दोलन शुरू करने की जरूरत है। कारण यह कि दुनिया मंे खुले में शौच के 60 प्रतिशत मामले हमारे यहाँ ही हैं, अतः हमारी नीति में निश्चित रूप से परिवर्तन किया जाना चाहिए, ताकि समस्या का समाधान हो सके। स्वच्छता-सम्बन्धी चुनौती को एक मिशन की तरह लिया जाना चाहिए और उसमें वित्त, तकनीक और नागरिक समाज के आन्दोलन को एक साथ जोड़ना चाहिए, ताकि उद्देश्य की प्राप्ति हो सके। उन्होंने अधिकारियों से यह भी कहा कि गाँवों में प्रति शौचालय आवंटित निधि पर पुनर्विचार किया जाए। वर्तमान में यह राशि 3,000 रुपए है। मन्त्री महोदय का कहना था कि यह रकम वास्तविकता पर आधारित नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र में एक गुणवत्तापूर्ण शौचालय की लागत 7,000 रुपए होगी। उन्होंने  इस बात पर अधिक जोर दिया कि निजी शौचालय-निर्माण-कार्यक्रम के साथ ही निर्मल ग्राम-पंचायत पर बल दिया जाना चाहिए। पंचायत स्वच्छता-कार्यक्रमों  की शुरूआत करने वाली एजेंसी होंगी। इस वक्त सिर्फ 25,000 निर्मल ग्राम-पंचायत हैं। इस योजना के अन्तर्गत एक करोड़ शौचालय बनाए जाएँगे। मन्त्री महोदय का कहना था कि स्वच्छता का उनका माॅडल है पब्लिक निधि, लेकिन निजी प्रबन्धन। यह एक सामाजिक कार्यक्रम होना चाहिए, न कि मात्र एक सरकारी कार्यक्रम। इस क्षेत्र में निवेश की कमी पर दुःख व्यक्त करते हुए उन्होंने 12वीं पंचवर्षीय योजना के बजट में पर्याप्त वृद्धि का आश्वासन दिया। वह वृद्धि 40 से 60 प्रतिशत तक होगी, केन्द्र का पेयजल और स्वच्छता पर वर्तमान कुल खर्च 10,000 करोड़ रुपए है। बहरहाल, मन्त्री महोदय ने इस बात पर जोर दिया कि कार्यक्रम की सफलता के लिए समुदाय की अधिक से अधिक प्रतिभागिता हो। मन्त्रालय निधि की व्यवस्था कर सकता है, मोटे तौर पर दिशा-संकेत दे सकता है।

मन्त्री महोदय ने इस बात पर चिन्ता व्यक्त की कि सरकार के सम्पूर्ण स्वच्छता-अभियान को एक ‘सांकेतिक स्वच्छता-अभियान’ के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के स्वयं-सहायता समूहों को शौचालय-कार्यक्रम से जोड़ना चाहिए, जो  अभी अपना समय जीविकोपार्जन वाली गतिविधियों के लिए लगा रही हैं। लगभग 8 लाख ‘आशा’ कार्यकत्री स्वास्थ्य के क्षेत्र मंे कार्य कर रहीहैं, उन्हें स्वच्छता को लेकर जागरूकता पैदा करने के अभियान से सम्बद्ध करना होगा। आँगनवाड़ी-केन्द्रों और स्कूलों को शौचालय और जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए।

तथ्य यह है कि शौचालयों का इस्तेमाल संग्रहण वाले गोदामों की तरह किया जा रहा है। समस्या का एक पक्ष स्वच्छता-कार्यक्रम के लिए उपलब्ध निधि की कमी है। श्री रमेश ने कहा कि हमारा देश विरोधाभासों की धरती रहा है, यहाँ रहने वाले अधिक-से-अधिक लोग खुले में शौच करते हैं।

मन्त्री महोदय ने कहा कि सम्पूर्ण स्वच्छता-अभियान में जो धन खर्च किया जा रहा है, वह काफी नहीं है। आवश्यकता है जल तथा स्वच्छता के मुद्दों के वित्तीय पक्ष को बढ़ाने और उन पर एकीकृत ढंग से विचार करने की।

सम्पूर्ण स्वच्छता-अभियान एक व्यापक कार्यक्रम है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता-सुविधाओं (शौचालय) को सुनिश्चित करने का मुख्य उद्देश्य खुले में शौच करने की प्रवृत्ति को खत्म करना और स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करना है। यह अभियान सन 1999 में शुरू किया गया था, जिसे देश के 607 जिलों के लिए स्वीकृत किया गया। संप्रति देश में कुल 640 जिले हैं।

मन्त्री महोदय का कहना था कि खुले में शौच से कुछ सांस्कृतिक मानक जुड़े हुए हैं। उनमें परिवर्तन की जरूरत है। उसके लिए जरूरत है प्रयास की, समुदाय के लोगों के नेतृत्व की, ताकि आदतें बदली जा सकें।

सिक्किम खुले में शौच की प्रथा से मुक्त है। हिमाचल-प्रदेश की भी स्थिति वही होने वाली है। ओडिशा में एक संगठन है ग्राम-विकास, जो आवासन, जलापूर्ति और स्वच्छता को साथ जोड़ने का अद्भुद कार्य कर रहा है। हरियाणा, महाराष्ट्र और केरल में भी अच्छा कार्य हो रहा है। यदि सामाजिक आधारभूत ढाँचे को खड़ा करने के लिए बैंकों की संबद्धता स्थापित हो तो ग्रामीण स्वच्छता में प्रगति होगी।

केन्द्र की योजना है गरीबी-रेखा के नीचे और इससे ऊपर के भेद को समाप्त करने और सभी जरूरतमंदों को सम्पूर्ण स्वच्छता-अभियान के अंतर्गत लाने की। योजना को एक नया नाम दिया जाएगा ‘निर्मल भारत-अभियान,’ ताकि यह सन्देश लोगों तक पहुँचे कि उसका कार्यान्वयन एक सरकारी कार्यक्रम की जगह जन-आंदोलन के रूप में होगा। नई योजना ढाँचागत परिवर्तन का एक भाग होगी, जिसका प्रारम्भ अप्रैल 2012 से होगा।

दृष्टिकोण में परिवर्तन की घोषणा करते हुए मंत्री महोदय ने कहा, ‘सरकार की पंचायतों को स्वच्छता-कार्यक्रम की आधारशिला बनाने की योजना है, निजी शौचालयों के निर्माण से दृष्टि हटाकर ग्राम-पंचायतों पर ध्यान केन्द्रित करना और उन्हें इसकी जिम्मेदारी देना और ग्राम-पंचायतों को खुले में शौच से उबारकर एक टिकाऊ समाधान सामने लाना, जिसे हम 12वीं पंचवर्षीय योजना की एक नीति के रूप में आगे बढ़ाएँगे।’ उन्होंने कार्यक्रम के लिए बजट उपबन्ध में वृद्धि की आशा बताई। वह एक बता का संकेत होगा कि हम नई प्राथमिकताएँ सामने ला रहे हैं।’

मन्त्री महोदय ने यह भी कहा कि दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष है- तकनीक का, इसमें पर्याप्त विकास नहीं हुआ है। पेयजल-अभियान के सिलसिले में 25 साल पहले उन्होंने पूरे देश की श्री सैम पित्रोदा के साथ यात्रा की थी। वे डाॅ. बिन्देश्वर पाठक से भी मिले थे। उन्होंने स्वच्छता की स्थिति को देखा। उस वक्त जिस तकनीक की शुरूआत हुई थी, वही सही अर्थों में स्वच्छता के आज के परिदृश्य का आधार है। उसके बाद के समय में हमने किफायती स्वच्छता-समाधान के रूप में तकनीक-सम्बन्धी क्रान्तियाँ देखीं। ‘मैं चाहँूगा कि ये कार्यक्रम नागरिक समाज संगठनों द्वारा चलाए जाएँ।’ माननीय मन्त्री महोदय ने कहा, ‘मैं जानता हूँ कि सुलभ ने देश में स्वच्छता के क्षेत्र में क्रान्ति पैदा की, सुलभ को स्वच्छता का मैकडोनाल्ड होना चाहिए, जिससे लागत-प्रभावी व्यवस्था लाई जा सके।’

उद्घाटन के बाद सेंटर फाॅर साइंस फाॅर विलेजेज, इकोसाल्यूशन, इंडियन ग्रीन सर्विस और आई.आई.टी. कानपुर-द्वारा चार तकनीक-प्रबन्ध प्रस्तुत किए गए। सेंटर फाॅर साइंस फाॅर विलेजेज के श्री समीर कर्वे ने अपनी प्रस्तुति में बताया कि किस तरह 110 घरों वाले महाराष्ट्र का एक छोटा-सा गाँव स्वच्छता-सेवाओं से, अपजल-प्रबन्धन, कृषि-कूड़ा-प्रबन्धन और घरेलू अपजल-शोधन-प्रक्रिया से जोड़ दिए जाने के बाद इको-टेक गाँव बन गया।

इंडियन ग्रीन सर्विस के श्री श्रीनिवासन ने यह दिखाया कि किस तरह एक ग्राम-पंचायत ने ठोस कचरा-प्रबन्धन की शुरूआत करके, कचरा संग्रह और उसे सही ढंग से फेंकने की व्यवस्था करके अपनी आमदनी बढ़ाई।

इस प्रस्तुति में हिस्सा लेते हुए सुलभ-स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार-आन्दोलन के संस्थापक डाॅ. बिन्देश्वर पाठक ने बताया कि कैसे स्वच्छता के क्षेत्र में, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में सुलभ-तकनीक अपनाई गई है। उन्होंने यह आग्रह भी किया कि एक गड्ढे वाले शौचालय के सोच का समाप्त करके समुदायों को विभिन्न डिजाइनों के बीच से चुनाव का अवसर दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि सरकारी बैंकों को घरेलू स्वच्छता के लिए कर्ज देने का प्रोत्साहन देना चाहिए। गैर-सरकारी संगठनों को जागरूकता-अभियान चलाने, प्रेरित करने और क्षमता-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। शौचालयों का डिजाइन बनाते समय तकनीक और समुदाय की स्वीकृति को भी ध्यान में रखना चाहिए।

गैर-सरकारी संगठनों वाले सत्र में आठ प्रबन्ध प्रस्तुत किए गए। ग्राम-विकास, ओडिशा के श्री जो. मैडिएथ ने अपनी प्रस्तुति में यह बताया कि किस तरह संगठन ने राज्य में 1200 गाँवों में शौचालय तथा स्नानघर की एक साथ व्यवस्था की। उन्होंने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि शहरी क्षेत्रों में जल-सम्बन्धी असमाानता के चलते एक व्यक्ति को 80 लीटर पानी लेने का अधिकार है, जबकि गाँवों में सिर्फ 40 लीटर। ग्रामीण स्वच्छता के लिए माइक्रोफाइनेंस के जरिए कर्ज की व्यवस्था को सुविधाजनक बनाने के सिलसिले में भी प्रबन्ध प्रस्तुत किए गए। अमुल ग्रुप के डाॅ. पी.के. पाढ़ी ने बताया कि किस प्रकार दुग्ध-सहकारी-समितियों को स्वच्छता के कार्यक्रम में संलग्न किया गया है।

समापन-सत्र में माननीय मन्त्री महोदय ने सुझाव दिया कि भारत में इस साल भी विश्व-शौचालय-शिखर-सम्मेलन आयोजित किया जाए, ताकि नियमित रूप से गैर-सरकारी संगठनों और विशेषज्ञों के साथ ग्रामीण स्वच्छता के मुद्दों पर विचार-विमर्श चलता रहे। उन्होंने प्रतिभागियों को उनके मूल्यवान् सुझावों के लिए धन्यवाद दिया।

साभार : सुलभ इण्डिया मार्च 2012

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