बुनियादी सुविधाओं के बिना सफाई की जंग

कल्पतरु समाचार सेवा मैनपुरी। क्या बुनियादी सुविधाओं और संसाधनों की बजाय सिर्फ हौंसले की उड़ान से भारत को स्वच्छ बनाया जा सकता है। किसी भी काम को अन्जाम तक पहुँचाने के लिये बेशक हौसला जरूरी है मगर उतने ही आवश्यक हैं संसाधन।

 

संसाधन रूपी हथियारों के बिना गन्दगी के खिलाफ छेड़ी गयी स्वच्छ भारत अभियान की मुहिम अन्जाम तक पहुँच सकेगी इसमें सन्देह है। जनसंख्या विस्फोट से आबादी में तेजी के साथ इजाफा हुआ है मगर सफाई कर्मियों की संख्या जस की तस बनी हुई है। बची खुची कसर ठेकेदारी प्रथा ने पूरी कर दी है। इस प्रथा ने गरीब सफाई कर्मियों को राहत कम और दर्द ज्यादा दिया है। बच्चे शिक्षा से वंचित हैं तो जिम्मेदारी के बोझ तले दबे जवान उम्र से पहले ही बूढ़े नजर आने लगे हैं।

 

जनसंख्या में विस्फोट पर नहीं बढ़ी सफाई कर्मियों की संख्या

 

राष्ट्रव्यापी स्वच्छ भारत अभियान की जमीनी हकीकत देखें तो सफाईकर्मियों की समस्याएँ उनके कर्तव्यों पर भारी पड़ रही है। नियमित सफाई कर्मियों की संख्या कम होने से संविदा और ठेके पर सफाई कर्मियों की नियुक्ति की जाती है। बढ़ती जा रही आबादी के अनुरूप सफाई कर्मी नहीं हैं। लापरवाही और संख्या बल कम होने की वजह से चारों ओर गन्दगी के ढेर नजर आते हैं।

 

नव विकसित कालोनियों ने तो काम का बोझ और भी अधिक बढ़ा दिया है। सफाईकर्मियों को सुविधा के नाम पर जो मिलता है वह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीने वाला यह वर्ग शिक्षा के क्षेत्र में भी पिछड़ा हुआ है। वर्ण व्यवस्था का असर भी इस समाज के लोगों पर साफ नजर आता है।

 

आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण अधिकांश परिवारों के बच्चे प्राथमिक शिक्षा पाने के बाद ही घर बैठ जाते हैं। उच्च शिक्षा पाना उनके लिए केवल एक सपना है। सरकार द्वारा सर्व शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये का खर्चा भी समाज के इस वर्ग को कोई लाभ नहीं पहुँचा सका है। कई परिवारों के बच्चे तो प्राथमिक शिक्षा भी नहीं पा सके हैं। नियमित सफाई कर्मियों की लम्बे समय से नियुक्ति नहीं हुई है। संविदा और ठेके पर सफाई का कार्य कराया जा रहा है। ठेकेदार के साथ काम करने वाले सफाईकर्मी शोषण और उत्पीड़न का शिकार होते हैं।

 

सरकार द्वारा सर्व शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये का खर्चा भी समाज के इस वर्ग को कोई लाभ नहीं पहुँचा सका है। कई परिवारों के बच्चे तो प्राथमिक शिक्षा भी नहीं पा सके हैं।

 

ग्रामीण क्षेत्र के सफाई कर्मी करते मनमानी

 

ग्रामीण क्षेत्र में सफाई के लिए जिले में वर्ष 2008 के दौरान सफाई कर्मियों की भर्ती की गई थी। 725 सफाईकर्मी नियुक्त किए गए थे। शासन की मंशा थी कि गाँव की गलियों में भी गन्दगी नजर न आए। देहात में नियुक्त किए गए सफाईकर्मी अपनी डयूटी नहीं कर रहे हैं। कुछ ने प्रधानों से साठगांठ करके ड्यूटी से मुक्ति पा ली है तो कुछ ने मामूली सी धनराशि देकर नियम विरूद्ध किसी और को अपनी जगह तैनात कर रखा है। हकीकत यह है कि 725 सफाईकर्मियों में से मात्र 200 सफाई कर्मी ही वाल्मीकी समाज के हैं। सफाई कर्मियों की नियुक्ति पाने वाले उच्च समाज के लोग सफाई करने में अपनी तौहीन समझते हैं।

 

सफाई कर्मियों की फौज, कर रही मौज

 

नगर में 25 वार्ड हैं। इन वार्डो में सफाई के लिए 398 सफाई कर्मचारी तैनात हैं। इनमें से 127 स्थायी हैं तो 271 संविदा और ठेके पर काम कर रहे हैं। 16 वाहन चालक के पद भी संविदा के आधार पर ही भरे गए हैं। नगर में मात्र एक डलावघर है जो आबादी के हिसाब से अपर्याप्त है। सरकार द्वारा स्थायी कर्मचारियों के लिए दो करोड़ 13 लाख 36 हजार रुपये वार्षिक वेतन पर व्यय किया जाता है। संविदा और ठेके के सफाई कर्मियों के लिए वर्ष में 36 लाख 58 हजार 400 रुपये का भुगतान किया जाता है। वाहन चालकों के लिए एक वर्ष में आठ लाख छ: हजार 400 रुपये वेतन दिया जाता है। सफाई के नाम पर नगर पालिका द्वारा नाला सफाई के लिए 12 लाख रुपये वार्षिक खर्च किए जाते हैं। वाहन खर्चा के नाम पर प्रतिवर्ष नगरीय क्षेत्र में पाँच लाख रुपये और डीजल खर्च के नाम पर 36 लाख रुपये का भुगतान किया जाता है। इतने सब के बाबजूद नगर में गन्दगी के ढेर साफ नजर आते हैं।

 

मानक के अनुरूप नहीं मिलते उपकरण

 

सफाईकर्मियों को सफाई के लिए झाड़ू, फावड़ा, लोहे की तसला उपलब्ध कराया जाता है। अब झाड़ू के लिए सफाई कर्मियों के लिए भत्ता मिलता है। निर्धारित धनराशि से झाड़ू का खर्चा अधिक आता है। सफाईकर्मियों को मिलने वाली वर्दी भी मानक के अनुरूप नहीं होती है। फावड़ा और लोहे का तसला निकाय द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। सफाईकर्मी अनोखेलाल, राजकुमार, विमल, सुरेन्द्र, नरेन्द्र, मनमोहन, मनोज, विमला आदि का कहना है कि सफाई करने के लिए जो सुविधाएँ मिलती हैं वह पर्याप्त नहीं हैं। तसला और फावड़ा भी मानक के अनुरूप नहीं दिए।

 

साभार : कल्पतरु एक्सप्रेस 26 अप्रैल 2015

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