बजट के आईने में महिला उत्थान

सुभाष सेतिया

 

हर वर्ष फरवरी के अन्तिम दिन संसद में पेश होने वाला बजट यों तो अगले वित्तीय वर्ष के आय-व्यय का लेखा-जोखा होता है किन्तु उसमें देश के विकास के लिए सरकार की दृष्टि और नीति की स्पष्ट रूपरेखा भी मौजूद रहती है। 2015-16 का बजट इस हिसाब से सामान्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार का पहला पूर्ण बजट है। इसके महत्व का अन्य कारण यह है कि लगभग दो दशक के बाद किसी राजनीतिक दल की अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है जो गठबन्धन के दबाव अथवा समझौते से मुक्त होकर अपनी नीतियों का निर्धारण एवं क्रियान्वयन कर सकती है। साथ ही चुनाव से पहले पार्टी और उसके नेताओं ने देश की जनता से कई बड़े वादे किए थे जिसके फलस्वरूप इस सरकार के प्रति आम लोगों की अपेक्षाओं का स्तर काफी ऊँचा है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में सरकार के इस पहले पूर्ण बजट से जनता को काफी उम्मीदें थीं। सरकार ने पिछले 9 महीने के अपने कार्यकाल में आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में अनेक कार्यक्रमों की घोषणा की है किन्तु उन सबके लिए आर्थिक प्रावधान तथा उनके क्रियान्वयन की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों का खाका इस बजट में ही दिखाई दिया है। सरकार की प्राथमिकताओं में महिला सुरक्षा तथा समाज में महिलाओं को सम्मानजनक स्थान दिलाने के प्रयासों का अहम स्थान है।

 

वित्त मन्त्री ने 2015-16 के बजट में महिला सुरक्षा को मजबूत बनाने तथा इस सम्बन्ध में समाज में जागरूकता लाने के लिए 16 दिसम्बर 2012 की घटना के बाद पिछली सरकार द्वारा बनाए गए निर्भया कोष में 1,000 करोड़ रुपये की और अतिरिक्त राशि आवंटित की है। इस राशि का कुछ हिस्सा दिल्ली पुलिस भी महिला सुरक्षा के उपायों पर खर्च कर सकेगी। इसी तरह रेलमन्त्री ने भी 26 फरवरी को अपने बजट में महिला रेल यात्रियों की सुरक्षा के लिए निर्भया कोष का इस्तेमाल करने का संकेत दिया था। इसके अलावा उन्होंने महिला रेल डिब्बों में महिलाओं की निजता को बनाए रखते हुए सीसीटीवी कैमरे लगाने की भी घोषणा की। इस दिशा में एक अन्य उपाय के रूप में रेल मन्त्री ने महिलाओं के लिए एक अलग हेल्पलाइन नम्बर 182 शुरू करने की बात भी कही। रेल मन्त्री ने आरक्षित डिब्बों में मिडिल बे महिलाओं के लिए सुरक्षित करने का भी संकेत दिया।

 

महिला सुरक्षा और महिलाओं के लिए बराबरी के अवसर इन दिनों राजनीतिक बहस के प्रश्न बन चुके हैं और गाहे-बगाहे चुनावों के मुद्दे भी इनके इर्द-गिर्द केन्द्रित हो जाते हैं। ऐसे में यह देखना जरूरी हो जाता है कि जमीनी स्तर पर क्या कुछ किया जा रहा है। आम बजट जो सरकारी नीतियों का आईना माना जाता है, उसके आईने में नारी जगत से सम्बन्धित प्रावधानों की समीक्षा से तस्वीर बहुत कुछ साफ हो सकती है। इतना स्पष्ट है कि इस बार कतिपय बजटीय प्रावधान इस मोर्चे पर सरकार की साफ नीयत को बयां कर रहे हैं लेकिन आवंटित राशि की अपर्याप्तता हमेशा की तरह एक चुनौती है।  

 

आम तथा रेल बजट में शामिल किए गए ये सभी निर्णय अत्यन्त महत्वपूर्ण और सामयिक हैं क्योंकि महिलाओं के प्रति अन्याय तथा उत्पीड़न के आँकड़े बताते हैं कि स्थिति बहुत भयावह है। महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव एवं अन्याय का मूल कारण है हमारी सामाजिक सोच जिसके अन्तर्गत लड़की को लड़के की तुलना में हेय और कमजोर माना जाता है। यही कारण है कि देश की 2011 की जनगणना के अनुसार 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात केवल 943 है, जबकि बाल लिंग अनुपात केवल 918 है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में तो यह अनुपात 900 से भी कम है। इसी भेदभाव के दृष्टिकोण का नतीजा है कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। यही नहीं, हर साल 10 लाख बच्चियाँ गर्भ में ही मार दी जाती हैं। देश की राजधानी दिल्ली के आँकड़े चौंकाते भी हैं और डराते भी हैं।

 

दिल्ली की नई आम आदमी पार्टी सरकार ने राजधानी में विशेष महिला सुरक्षा दल गठित करने तथा यौन उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनाने का फैसला किया है। दिल्ली पुलिस ने ‘हिम्मत’ नाम से एप सेवा प्रारम्भ की है जिससे संकट की स्थिति में महिलाएँ विशेष बटन दबाकर अपनी लोकेशन की सूचना तत्काल पुलिस को दे सकती हैं। ऐसे कदमों का समावेश केन्द्रीय बजट में भी किया जा सकता था।

 

महिलाओं का सामाजिक तथा आर्थिक स्तर ऊँचा उठाने में महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का काफी योगदान है। अगले वित्त वर्ष के बजट में महिला कल्याण की योजनाओं के लिए 79,258 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। किन्तु बाल एवं महिला कल्याण मन्त्रालय के लिए 2015-16 में 10,382 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है जो मौजूदा वित्त वर्ष के संशोधित आवंटन से लगभग आधा है। इसका कारण यह बताया गया है कि वित्त आयोग की सिफारिश पर करों से प्राप्त राशि में राज्यों के हिस्से में 10 प्रतिशत की वृद्धि कर दिए जाने से राज्यों के पास इन योजनाओं के लिए पहले से अधिक धन उपलब्ध होगा। इसलिए शिक्षा, स्वास्थ्य तथा कुछ अन्य मन्त्रालयों के आवंटन में भी कमी की गई है।

 

सरकारी योजनाओं में महिलाओं के लिए धन का प्रावधान सुधारने की दृष्टि से 2005 में लिंग आधारित बजट व्यवस्था यानी जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग शुरू की गई। इसके अनुसार सरकार के सभी विभागों के खर्च में महिलाओं के उत्थान के लिए किए जाने वाले खर्च का अलग से स्पष्ट निर्धारण होना चाहिए ताकि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जा सके तथा पुरुषों व महिलाओं में असमानता की खाई को पाटा जा सके। अभी तक 57 केन्द्रीय मन्त्रालयों/ विभागों में यह व्यवस्था अपनाई गई है किन्तु जमीनी स्तर पर अधिक सफलता नहीं मिली। चिन्ता की बात यह है कि बजट का केवल 5 प्रतिशत महिलाओं पर खर्च हो पाता है और बाकी धन मन्त्रालय के अन्य विभागों पर व्यय हो जाता है।

 

सरकारी योजनाओं में महिलाओं के लिए धन का प्रावधान सुधारने की दृष्टि से 2005 में लिंग आधारित बजट व्यवस्था यानी जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग शुरू की गई। इसके अनुसार सरकार के सभी विभागों के खर्च में महिलाओं के उत्थान के लिए किए जाने वाले खर्च का अलग से स्पष्ट निर्धारण होना चाहिए ताकि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जा सके तथा पुरुषों व महिलाओं में असमानता की खाई को पाटा जा सके।

 

लड़कियों की शिक्षा तथा स्वास्थ्य आदि की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा चलाई गई अभिनव योजना सुकन्या समृद्धि योजना में जमा किए गए धन को अगले वित्त वर्ष से आयकर से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है। इससे इस योजना के लिए आम लोगों से भी मदद मिल सकेगी। इस जमा पर मिलने वाला ब्याज भी कर से मुक्त होगा। बजट में सरकार के एक प्रमुख कार्यक्रम ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना के लिए आवंटन बढ़ाकर 97 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसमें अगले दो ढाई वर्षों तक 200 करोड़ के निवेश का लक्ष्य है। जैसा कि हम जानते हैं प्रधानमन्त्री ने 22 जनवरी को जनसंख्या में लड़कियों का अनुपात बढ़ाने तथा शिक्षा के माध्यम से उन्हें आत्म-सम्मान के साथ जीवन बिताने लायक बनाने के उद्देश्य से इस क्रान्तिकारी कार्यक्रम का शुम्भारभ किया था। इस कार्यक्रम की शुरुआत हरियाणा के शहर पानीपत से की गई क्योंकि हरियाणा में लड़कों के मुकाबले लड़कियों का अनुपात देश में सबसे कम है। हरियाणा में 1,000 लड़कों पर केवल 834 लड़कियाँ हैं। यह योजना इस मायने में अनूठी है कि इसमें लड़कियों की संख्या में सन्तुलन लाने के साथ-साथ उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। शुरू में इसे देश के ऐसे 100 जिलों में लागू किया जा रहा है, जो लिंग अनुपात के मामले में अपेक्षाकृत अधिक पिछड़े हुए हैं। इस अवसर पर प्रधानमन्त्री ने बहुत सार्थक तर्क दिया कि लोग बेटी को तो पढ़ाते नहीं और बहू पढ़ी-लिखी चाहते हैं। जब बेटी नहीं पढ़ेगी तो बहू शिक्षित कहाँ से आएगी। इस कार्यक्रम में कुपोषण की समस्या पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा क्योंकि देश में 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जिनमें से 70 प्रतिशत लड़कियाँ हैं। आज भी 18 प्रतिशत लड़कियाँ प्राथमिक शिक्षा तक प्राप्त करने में अक्षम हैं। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम का सन्देश जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को इसका ब्राण्ड एम्बेसडर बनाया गया है। योजना के शुभारम्भ के लिए आयोजित समारोह में महिला तथा बाल विकास मन्त्री मेनका गाँधी ने घोषणा की कि जो गाँव अपने यहाँ लड़कों और लड़कियों की संख्या समान करने का लक्ष्य प्राप्त करेंगे उन्हें एक करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा।

 

स्त्री-पुरुष असमानता की सबसे चिन्ताजनक स्थिति रोजगार के क्षेत्र में देखने को मिलती है। यों तो समूचे विश्व में यह असमानता मौजूद है किन्तु भारत में रोजगार के मामले में स्त्रियों की दशा अत्यन्त सोचनीय है। देश में सकल श्रम बल में स्त्रियों का हिस्सा केवल 24 प्रतिशत है, इनमें भी अधिकतर महिलाएँ असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं जहाँ वेतन और काम की शर्तों के लिए कानूनी व्यवस्थाएँ न के बराबर हैं। स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में समान कार्य के लिए कम मजदूरी दी जाती है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के आँकड़ों के अनुसार देश में 86 प्रतिशत महिलाओं के श्रम का कोई मूल्यांकन ही नहीं किया जाता, इस कारण वे वित्तीय दृष्टि से पुरुषों पर निर्भर हैं। सबसे अधिक महिला कामगार कृषि क्षेत्र में हैं। किन्तु कृषि के सिकुड़ते दायरे के कारण गाँवों में रोजगार के अवसर पिछले अनेक वर्षों से कम होते जा रहे हैं जिसके फलस्वरूप शहरों की ओर पलायन विकराल रूप लेता जा रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए यूपीए सरकार ने गाँवो में रोजगार की गारन्टी का कार्यक्रम मनरेगा शुरू किया था। इस बजट में मनरेगा के लिए आवंटन बढ़ाकर 34,699 करोड़ रुपये कर दिया है। इसके साथ ही वित्तमन्त्री ने आश्वासन दिया कि वित्तीय स्थिति के मूल्यांकन के बाद इस कार्यक्रम के लिए 5,000 करोड़ रुपये और दिए जा सकते हैं। महिला रोजगार की दृष्टि से यह उपाय अत्यन्त लाभदायक है क्योंकि मनरेगा में 50 प्रतिशत काम महिलाओं को दिए जाने का नियम है। इसके अलावा मनरेगा की गतिविधियों का भी विस्तार किया जा रहा है जिससे और अधिक ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिल सकेगा।

 

महिला सशक्तिकरण की दिशा में पिछले दिनों अनेक प्रत्यक्ष तथा परोक्ष कदम उठाए गए। अनेक प्रत्यक्ष तथा परोक्ष कदम उठाए गए। इसमें स्कूलों, गाँवों तथा अन्य स्थानों पर महिला शौचालयों के निर्माण पर विशेष बल दिया जा रहा है। 15 अगस्त 2015 तक सभी स्कूलों में लड़कों-लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया है। यह महिला सशक्तिकरण तथा उन्हें स्वाभिमान एवं सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में बहुत बड़ा कदम है। इससे उन्हें न केवल शारीरिक तथा सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध होगी बल्कि यौन शोषण कम करने में भी मदद मिलेगी। वित्तमन्त्री ने अपने बजट भाषण में बताया कि 2014-15 में देश में 50 लाख शौचालय बन जाएंगे। उन्होंने आश्वासन दिया कि देश में कुल 6 करोड़ शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य भी प्राप्त कर लिया जाएगा। उन्होंने स्वच्छ भारत कार्यक्रम के लिए अतिरिक्त धन जुटाने के लिए 2 प्रतिशत स्वच्छ भारत उपकर लगाने की भी घोषणा की। 5 वर्षों में इस कार्यक्रम पर 2 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। अगले वित्त वर्ष के लिए इसमें 6,244 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस कार्यक्रम की सफलता की महिला कल्याण में अत्यन्त उपयोगी भूमिका है क्योंकि शौचालयों की कमी का सबसे अधिक दुष्परिणाम महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है।

 

स्कूलों, गाँवों तथा अन्य स्थानों पर महिला शौचालयों के निर्माण पर विशेष बल दिया जा रहा है। 15 अगस्त 2015 तक सभी स्कूलों में लड़कों-लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया है। यह महिला सशक्तिकरण तथा उन्हें स्वाभिमान एवं सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में बहुत बड़ा कदम है।

 

इसी तरह वित्त मन्त्री द्वारा बजट भाषण में घोषित 2022 तक गाँवों में 4 करोड़ तथा शहरों में 2 करोड़ मकान बनाने की महत्वकांक्षी योजना से भी महिलाएँ लाभान्वित होंगी क्योंकि एक स्थाई छत हर गृहिणी का सपना होता है। सामाजिक सुरक्षा की अन्य अनेक योजनाएँ विशेषकर बीमा सुरक्षा योजना भी महिलाओं के सशक्तिकरण में सहायक होंगी।

 

बजट में घोषित इन सभी उपायोंं से निश्चय ही महिलाओं के उत्थान में मदद मिलेगी किन्तु यह मानने में संकोच नहीं होना चाहिए कि मीडिया में महिलाओं को लेकर बजट से पहले जो अपेक्षाएँ व्यक्त की जा रही थीं, उनकी तुलना में बजट प्रावधान अपर्याप्त हैं। महिला विकास मन्त्रालय के लिए आवंटन में कटौती और जेंडर बजटिंग में धीमी प्रगति पर अनेक महिला संगठनों ने निराशा व्यक्त की है लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि जो उपाय घोषित किए गए हैं उन पर गम्भीरता और ईमानदारी से अमल किया जाए। महिला सशक्तिकरण से सम्बन्धित एक बुनियादी पहलू की इस बजट में कोई चर्चा नहीं हुई। वह है संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटों का महिलाओं के लिए आरक्षण। यह प्रस्ताव कई वर्षों से विचाराधीन है किन्तु राजनीतिक स्तर पर आम सहमति न बन पाने के कारण संसद इसे पारित नहीं कर पाई। लोकसभा में केवल 11 प्रतिशत महिला सदस्य हैं और राज्यसभा में और भी कम 10.6 प्रतिशत महिला सदस्य हैं। पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के अच्छे परिणाम सामने आए हैं।

 

लड़कियों के प्रति भेदभाव और उन्हें अवसर देने में हिचकिचाहट की जो प्रवृत्ति सामाजिक, आर्थिक व पारिवारिक स्तर पर मौजूद है वही राजनीति में भी परिलक्षित होती है। अभी दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए जिनमें 70 में से 67 सीटें प्राप्त करने वाली आम आदमी पार्टी ने 7 मन्त्रियों में एक भी महिला को सम्मिलित नहीं किया। यह सन्तोष का विषय है कि केन्द्र सरकार में इस बार 7 मन्त्रियों को स्थान मिला है। किन्तु देश के राज्यों में सत्ता और शासन में भागीदारी के मामले में महिलाओं के साथ घोर अन्याय हो रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार देश की सभी विधानसभाओं में विधायकों की कुल संख्या 4120 है जिनमें से केवल 360 महिलाओं को मन्त्री पद दिया गया है। यह कुल संख्या का केवल 9 प्रतिशत है। दिल्ली के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और पंजाब, ऐसे अभागे राज्य हैं जहाँ एक भी महिला मन्त्री नहीं है। दुःख की बात यह है कि पंजाब में महिला विधायकों का प्रतिशत 12 है जबकि तेलंगाना, उत्तर प्रदेश व दिल्ली में महिला विधायकों की संख्या 19 प्रतिशत है। सत्ता और शासन में महिलाओं की यह घोर अनुपस्थिति इस बात की आवश्यकता को रेखांकित करती है कि राजनीतिक, प्रशासनिक और विधायी स्तर पर समुचित भागीदारी को बढ़ाया जाए क्योंकि इसके बिना महिलाओं के उत्थान का लक्ष्य कभी पूरा नहीं हो पाएगा।

 

लेखक आकाशवाणी से अपर महानिदेशक समाचार के पद से सेवानिवृत्त हैं। कहानी, कविता और स्त्री विमर्श पर कई पुस्तकें : भारतीय नारी, कितनी जीती कितनी हारी, स्त्री अस्मिता के प्रश्न, हार में जीत, पानी की लकीर आदि।

 

ईमेल : setia_subhas@yahoo.co.in

 

साभार : योजना मार्च 2015

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