बदनावर के 89 ग्राम पंचायतों में से 83 को निर्मल ग्राम पुरस्कार

प्रेम विजय पाटिल

धार। मध्य प्रदेश का आदिवासी बहुल जिला धार एक ऐसी उपलब्धि के बहुत नजदीक है जिसके लिए लंबे समय से प्रयास जारी है। 2007 में पहली बार बदनावर विकासखंड की ग्राम पंचायत जाबड़ा को निर्मल ग्राम पुरस्कार मिला था। इसके बाद तो बदनावर में मानो हर ग्राम को निर्मल ग्राम बनाने की होड़ चल पड़ी हो। इस विकासखंड की कुल 89 ग्राम पंचायतों में से अब तक 83 ग्राम पंचायतें एनजीपी यानी निर्मल ग्राम पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है। यह अपने आपमें एक बड़ी उपलब्धि है। केवल छह ग्राम पंचायतें शेष हैं। इनमें से तीन ग्राम पंचायतों का भी मूल्यांकन हो चुका है और वे पुरस्कार की प्राप्ति के बेहद करीब हैं। केवल नतीजे का इंतजार है।

निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना के तहत आदिवासी बहुल धार जिले में इस विशेष कवायद को शुरू करने का बीड़ा वर्ष 2007 में बदनावर जनपद पंचायत के तत्कालीन सीईओ राजेशकुमार शाक्य ने उठाया था। वैसे तो प्रयास पूरे जिले में हुए थे। किंतु श्री शाक्य द्वारा किए गए विशेष और व्यक्तिगत प्रयासों का नतीजा यह रहा कि सबसे पहले ग्राम पंचायत जाबड़ा को यह पुरस्कार मिला और उसके बाद तो मध्य प्रदेश में धार जिला ऐसा अग्रणी जिला हो गया जहां कि एक ही विकासखंड में इतनी बड़ी संख्या में पंचायत निर्मल ग्राम की श्रेणी में आ रही हैं। 2007 से लेकर अब तक कुल 89 ग्राम पंचायत में से 83 ग्राम पंचायतों को अलग-अलग वर्षों में कठोर से कठोर मूल्यांकन के बाद भी यह पुरस्कार मिला। जबकि प्रदेशभर में महज कुछ ही पंचायत को इस श्रेणी में लिया गया तब भी बदनावर की कुछ पंचायतें चयनित हुईं। इस तरह हर स्तर पर सफलता मिलती गई और यह सिलसिला जारी रहा।

अब क्या है दिक्कत

दरअसल जिले में बदनावर विकासखंड को पूर्ण रूप से निर्मल बनाने के जो प्रयास चल रहे हैं उसमें मुख्य रूप से छह ग्राम पंचायतों का छूट जाना परेशानी का कारण है। इनमें हनुमंत्या, सांघवी, काछीबड़ौदा, पलवाड़ा, नौगांव व कुसावदा शामिल है। इनमें से दो गांव ऐसे हैं जहां पर दिक्कत ज्यादा है। इसलिए वहां पर अभी परेशानी बनी हुई है।

पलवाड़ा, नौगांव और कुसावदा ये तीनों ही ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जहां पर खुले में शौचालय से मुक्ति मिल चुकी है। 90 प्रतिशत लोगों की आदत में बदलाव आया है। इन तीनों ही ग्राम पंचायतों का पुरस्कार के लिए संबंधित एजेंसी द्वारा निरीक्षण हो भी चुका है। शासन द्वारा लंबे समय से इस पुरस्कार की घोषणा नहीं की गई है। माना जा रहा है कि यदि पुरस्कार घोषित होता है तो इन तीनों के निर्मल पुरस्कार की श्रेणी में आने में कोई दिक्कत नहीं रहेगी।

जबकि काछी बड़ौदा में अभी स्थानीय स्तर का कुछ मुद्दा है। वहीं पलवाड़ा, नौगांव और कुसावदा ये तीनों ही ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जहां पर खुले में शौचालय से मुक्ति मिल चुकी है। 90 प्रतिशत लोगों की आदत में बदलाव आया है। इन तीनों ही ग्राम पंचायतों का पुरस्कार के लिए संबंधित एजेंसी द्वारा निरीक्षण हो भी चुका है। शासन द्वारा लंबे समय से इस पुरस्कार की घोषणा नहीं की गई है। माना जा रहा है कि यदि पुरस्कार घोषित होता है तो इन तीनों के निर्मल पुरस्कार की श्रेणी में आने में कोई दिक्कत नहीं रहेगी।

बड़ी चुनौतियां

दरअसल तत्कालीन जनपद पंचायत सीईओ राजेश शाक्य का तबादला हुआ और वे अन्य जिले में पदस्थ हो गए। हाल ही में फिर से वे जिला पंचायत में पदोन्नत होकर सहायक जिला मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर तैनात हुए हैं। ऐसे में उम्मीद बनी है कि जो समस्याएं इस गांव में है उनको लेकर जल्द ही कोई बड़ी कवायद शुरू होगी। हनुमंत्या, सांघवी व काछीबड़ौदा - इन तीनों ही ग्राम पंचायतों की दिक्कत को चुनौती के तौर पर लेना होगा।

बायोटायलेट है विकल्प

हनुमंत्या और सांघवी ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जहां के अधिकांश घरों में शौचालय का निर्माण हो चुका है। इनके लिए सारी कवायदें हो चुकी हैं। लेकिन इन दोनों ही ग्राम पंचायतों में कई परिवार ऐसे हैं जिनको टायलेट बनाकर नहीं दिए जा सके हैं। वजह यह है कि उनके घरों के आसपास मजबूत चट्टानें हैं जिन्हें ब्लास्ट करके भी गड्ढा नहीं किया जा सकता। इस वजह से यहां पर कोई आगामी गतिविधि नहीं हो पा रही है। जानकारों का कहना है कि यहां पर केवल बायो टायलेट या सामुदायिक टायलेट ही विकल्प का रूप ले सकते हैं। इस काम में सबसे बड़ी जो चुनौती है वह बायो टायलेट को बनाने के लिए तकनीकी ज्ञान और अन्य स्तर पर मदद की है।

निर्मल ग्राम पुरस्कार

 

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