बायोमास आधारित गैसिफायर

कृषि तकनीक के धनी राय सिंह दहिया (36) ने बायोमास यानी जैव ईंधन वाला एक गैसिफायर विकसित किया है। इंजन के पारंपरिक डिजाइन में परिवर्तन करके उन्होंने यह कारनामा कर दिखाया है। विशेष रूप से उन्होंने इंजन के फिल्टर और कूलिंग इकाई का रूप बदल कर इसे अधिक सक्षम और सस्ता बना दिया है। इस बदलाव के चलते इंजन अधिक सहज रूप से कार्य करता है और इसका परिचालन खर्च भी कम हो गया है।

राय सिंह मूल रूप से कृषि से जुड़ी मशीनों, पंप और दूसरे यंत्रों की मरम्मत का काम करते हैं। हालांकि इसके लिए उन्होंने किसी तरह का औपचारिक शिक्षण या प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है। उन्होंने तो बस यंत्रों को तोड़ने, खोलने, बंद करने और उनकी मरम्मत करते हुए अर्थात चलते-फिरते हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का ज्ञान हासिल कर लिया है। ज्ञान अर्जन की इस यात्रा में कुछ रेडियों कार्यक्रमों ने भी उनका मार्गदर्शन किया है। राय सिंह का जन्म हरियाणा के पीली मडोरी गांव में जनवरी 1963 में रंजीत राम दहिया और मैनी देवी के घर में हुआ था। उनके जन्म के तत्काल बाद ही उनके पिता ने परिवार के साथ अपना पैतृक घर छोड़ दिया था और राजस्थान के गंगानगर जिले के थलका गांव में जा बसे थे। परिवार का पेट भरने के लिए उनके पिता ने खेती शुरू कर दी और बड़े होते राय सिंह भी अपने पिता का हाथ बंटाने लगे। जब सारे बच्चे स्कूल जाते थे तो राय सिंह खेतों में काम करते हुए और बंजर जमीन को सींचते में व्यस्त रहते थे। यही उस समय की मांग थी। लेकिन औपचारिक शिक्षा से वंचित राय सिंह ने इसकी भरपाई खाली समय में अपने भाई की किताबें पढ़कर की और खुद को साक्षर बना लिया।

आविष्कार की प्रेरणा

जिज्ञासु मन-मस्तिष्क और नैसर्गिक प्रतिभा वाले राय सिंह ने कुछ नया करने की ठानी। पहले उन्होंने एक साउंड अलार्म विकसित करने का प्रयास किया। धमाके की आवाज करने वाला यह अलार्म गंधक विस्फोटक पर आधारित था। इसका मकसद खेतों में प्रवेश करने वाले पशुओं और चिड़ियों को डराना था। विज्ञान में शोध की यह यात्रा उन्होंने अपने भाई द्वारा भेंट की गई घड़ी से शुरू की थी, जिसमें तोड़-मरोड़ करते हुए और कई अन्य तरह के कल-पुर्जें जोड़ते हुए उन्होंने अवयवों और यंत्रों के अपने ज्ञान को और निखारा। वह बचपन से ही बीबीसी रेडियो के ज्ञान-विज्ञान कार्यक्रम के नियमित श्रोता थे, जिसने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उनकी जानकारी को समृद्ध किया। इस कार्यक्रम ने उन्हें नयी परिकल्पनाओं पर विचार करने और नये आविष्कार करने की प्रेरणा दी।

1979 में एक दिन जब वह खेतों में काम कर रहे थे, एक पंप का इंजन टूट गया। किसी मेकेनिक को बुलाने की बजाय उनके भाई ने राय सिंह से ही इसे बनाने को कहा। राय सिंह इसे बनाने में सारा दिन जूझे रहे और आखिरकार उन्होंने इसे फिट कर दिया। इससे न सिर्फ उन्हे एक नया आत्मविश्वास मिला, बल्कि इंजन और उसकी कार्यपद्धति को समझने में भी मदद मिली। उनकी सबसे बड़ी खोज बायोमास आधारित गैसिफायर और इंजन है। उन्होंने पैरों से चलने वाले वाल्व और बैटरी से चलने वाली एसी कार की परिकल्पनाएं भी विकसित की जो पवनचक्की से चार्ज होती हैं।

आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है

1982 में उन्होंने एक ऐसा भट्ठा स्थापित किया जिसमें एक साथ 12,000 ईटें सेंकी जा सकती थीं। इसी दौरान उन्होंने अनुभव किया कि चिमनी में लकड़ी और दूसरे ईंधन के जलने से कुछ गैसों का उत्पादन हो रहा है और ये गैसें अधिक ज्वनलशील हैं। बाद में 1991 में उन्होंने ट्रैक्टर, जीप, ट्रक और दूसरे तरह के इंजनों की मरम्मत का अपना वर्कशॉप स्थापित कर लिया। कृषि के क्षेत्र में डीजल इंजन की बढ़ती मांग और डीजल के दामों में होती बढ़ोतरी को देखते हुए उन्होंने इन इंजनों को एलपीजी इंजन के रूप में परिष्कृत किया। डीजल की तुलना में एलपीजी सस्ती है। इस प्रयोग की सफलता ने उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया कि एलपीजी की बजाय इसे जलती लकड़ी से निकलने वाली गैस से संचालित करके देखा जाए। उन्होंने तय किया कि वह एक ऐसा यंत्र विकसित करेंगे जो डीजल या एलपीजी की बजाय लकड़ी की आग से निकलने वाली गैस से इंजन का परिचालन करे।

प्रयोगों की एक पूरी श्रृंखला के बाद अंत में उन्होंने एक ऐसा यंत्र विकसित कर लिया, जो गैसिफायर पर आधारित था। यह गैसिफायर जैव ईंधन को गैस में परिवर्तित करने का काम करता था। इसे बनाने के लिए पारंपरिक डीजल इंजन को संशोधित किया गया और स्पार्क प्लग और ईंधन पंप के साथ जुड़े उस डीजल इंजेक्टर को हटा लिया गया, जो ईंधन वितरण का काम करता था। यह गैसिफायर संशोधित डीजल इंजन को संचालित कर सकता था, लेकिन बहुत कम अवधि के लिए। राय सिंह ने महसूस किया कि निर्मित गैस की अशुद्धता के कारण इंजन ठीक से काम नहीं कर रहा है। उन्होंने कई तरह की यांत्रिक प्रक्रियाओं और शुद्धता छलनी (फिल्टर) पर काम किया और अंत में एक ऐसा फिल्टर तंत्र विकसित कर लिया, जिससे इंजन तक शुद्ध गैस की आपूर्ति की जा सके।

आरंभ में इस तरह के चार तंत्र विकसित करके गांव में स्थापित किए गए और इन्हें संचालित करने के लिए स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित किया गया। अंत में बने गैसिफायर को बेहद कम खर्च में लगातार 40 घंटों तक चलाया जा सकता है।

बायोमास गैसिफायर

गैसिफायर पर आधारित यह इकाई ऐसी उत्पादक गैसों से चलती है, जिसमें इंजन को चलाने के लिए जैव कचरे और अपशिष्ट का प्रयोग किया जाता है। शंकु आकार वाला यह गैसिफायर डिजाइन में बेहद छोटा और गठा हुआ है और चारों ओर से जल के आवरण से ढका हुआ है। इसमें कई तरह के ईंधन से संचालित होने की क्षमता है।

बायोमास पर आधारित इस गैसिफायर को 20 किलोग्राम जैव कचरे से 30 हॉर्स पॉवर वाले एक इंजन को एक घंटे तक चलाया जा सकता है। यही नहीं गैसिफायर की ईंधन भट्टी को कृषि अवशेष और जैव कचरे की उपलब्धता के आधार पर अलग-अलग क्षमता और आकार का बनाया जा सकता है। मशीन की कीमत जैव कचरे की कीमत और स्थानीय मजदूरी को ध्यान में रखते हुए प्रति यूनिट 4 रुपये बिजली मूल्य की तुलना में इसका खर्च आधे से भी कम होता है।

इस गैसिफायर में कृषि के अवशेष के रूप में निकली लकड़ी या कोयले को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। वायु का प्रवेश द्वार गैसिफायर के निचले हिस्से में लगाया गया है। इसमें से राख, जले अवशेष और तरल रिसाव को बाहर निकालने के लिए दो स्तरों से गुजरना होता है। प्राथमिक फिल्टर यूनिट, कई पंक्तिबद्ध फिल्ट्रेशन यूनिट की श्रृंखलाओं पर आधारित है। इनमें हर एक श्रृंखला लोहे के एक बेंत पर टिकी होती है, जिसके ऊपर छिद्रों से भरे अर्द्धचंद्राकार जाल लगे होते हैं। छिद्रों का यह जाल पहले फिल्ट्रेशन यूनिट से होता हुआ तीसरे फिल्ट्रेशन यूनिट तक घना होता जाता है। यानी फिल्टर के तीसरे यूनिट में छिद्र बेहद छोटे हो जाते हैं। ये फिल्टर साफ करने में बेहद आसान होते हैं, क्योंकि सफाई के लिए छिद्रों वाले जाल से जुड़े लोहे के बेंत को खींच कर आसानी से निकाला जा सकता है। यह पानी के आवरण से घिरा होता है। दूसरा फिल्टर विभिन्न आकार वाली छलनी की परतों से बना होता है। ये छलनी दो इंच से लेकर बेहद बारीक छिद्रों वाली होती है, जिसका स्वच्छता द्वार तली में होता है।

सहज संचालन की प्रक्रिया से लैस

इस गैसिफायर की संचालन प्रक्रिया सरल है। सबसे पहले गैसिफायर के ऊपरी हिस्से में जैव कचरा भर दिया जाता है। यह इकाई भट्टी के रूप में काम करती है, जो 200 डिग्री सेंटीग्रेड के ताप पर गैस का उत्पादन करती है। गैसिफायर में शुरुआती तीस मिनट तक लगातार ईंधन भरा जाता रहता है, और उस पर नजर रखी जाती है। इसके बाद ही इसका वायु शोषक, उत्पादक गैसों को खींचने के लिए तैयार हो जाता है और तब तक खींचता है, जब तक आग की लौ न दिखाई देने लगे। बाद में सतह से वायु की आपूर्ति कट जाती है। इसके बाद उत्पादक गैस, वायु के पहले चक्रवात से होकर गुजरती है, जहां पानी से इसे ठंडा किया जाता है। यहां गैस ठंडी हो जाती है, और साथ ही आंशिक रूप से शुद्ध भी हो जाती है। इसके बाद गैस दूसरे चक्रवात से होकर गुजरती है, जहां कार्बन और राख पर आधारित अवशेष हटा दिए जाते हैं। इसके बाद गैस को फिल्ट्रेशन यूनिट से गुजरना होता है, जो लोहे की छलनी और कपड़े पर आधारित होता है। यह गैस को पूरी तरह साफ कर देता है।

साफ होने के बाद, गैस को मिक्सर यूनिट में डाला जाता है। यह यूनिट गैस को हवा के साथ ईंधन और वायु के उचित अनुपात में मिश्रित कर देती है, जो इंजन और उत्पादक ऊर्जा के लिए सुनिश्चित है। राय सिंह ने गैसिफायर के लिए सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्कृष्ट निर्धारित कर दिया है लेकिन उपयोगकर्ता इसे अधिक क्षमता के साथ इस्तेमाल कर सकता है और ऊर्जा का अपना सीमांकन स्वयं निर्धारित कर सकता है। वैकल्पिक रूप से सर्वोत्कृष्ट अनुपात के साथ परिवर्तित होने वाली ध्वनी को वायु मिश्रण अनुपात निर्धारित करने के लिए संकेत के रूप में लिया जा सकता है। इसके बाद ईंधन मिश्रक से निकला मिश्रण, इंजन के वायु ईंधन मिश्रण वाले तंत्र तक पहुंचता है और इस शुद्ध स्वच्छ ईंधन से इंजन संचालित होता है।

बायोमास पर आधारित इस गैसिफायर को 20 किलोग्राम जैव कचरे से 30 हॉर्स पॉवर वाले एक इंजन को एक घंटे तक चलाया जा सकता है। यही नहीं गैसिफायर की ईंधन भट्टी को कृषि अवशेष और जैव कचरे की उपलब्धता के आधार पर अलग-अलग क्षमता और आकार का बनाया जा सकता है। मशीन की कीमत जैव कचरे की कीमत और स्थानीय मजदूरी को ध्यान में रखते हुए प्रति यूनिट 4 रुपये बिजली मूल्य की तुलना में इसका खर्च आधे से भी कम होता है।

जैव कचरे के गैसीकरण की अवधारणा, गैसीकरण का प्रारूप, चक्रवाती फिल्टर से शुद्धता और स्क्रबर इस इंजन के प्रमुख प्रयोग है। हालांकि इससे मिलते-जुलते प्रयोग पहले भी हुए हैं, लेकिन जल आवरण से ढका और दो चरणों वाले फिल्टर वाला कोई छोटा गैसिफायर इस कौशल विद्या में कहीं उपलब्ध नहीं है। इसलिए एनआईएफ ने राय सिंह के नाम से इसे पेटेंट कराने का आवेदन दिया है।

उत्पाद उपयोग और प्रकीर्णन बायोमास आधारित गैसिफायर को दूरदराज के क्षेत्रों में पंप सेट चलाने, घरों में पानी पहुंचाने और आटा चक्की, आरा मशीने जैसी बुनियादी मशीने चलाने के काम में लाया जा सकता है। इससे वैकल्पिक यंत्र चार्ज करके बिजली उत्पादन भी किया जा सकता है। हालांकि विभिन्न विन्यास वाले समानरूपी तंत्र उपयोग में हैं, लेकिन भारत सरकार ने इसके विकास और स्थापना के लिए बायोमास आधारित नवीकरणीय योजना समर्पित की है।

राय सिंह दहिया के इस गैसिफायर के ईंधन की खपत प्रति एक किलोवाट ऊर्जा के लिए एक किलो कचरा आंकी गई है। यह खपत अन्य उपलब्ध मशीनों की ईंधन खपत से तीस से चालीस प्रतिशत तक कम है। राय सिंह को जीआईएएन नॉर्थ, जयपुर के माध्यम से नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के माइक्रो वेंचर इनोवेशन पंफड से सहयोग दिया गया। इसके परिणामस्वरूप वह अपनी खोज वाली इस मशीन की अलग-अलग क्षमताओं वाली कई इकाइयां निर्मित करने और उन्हें किसानों और आरा-आटा चक्की वाले व्यवसायियों के हाथों बेचने में सफल रहे। राय सिंह को उनके काम के लिए 2002 में ग्राम पंचायत की तरफ से और 2004 में जिला अधिकारी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। 2009 में उन्होंने नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन की पांचवीं राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता है।

साभार : योजना फरवरी 2013

Path Alias

/articles/baayaomaasa-adhaaraita-gaaisaiphaayara

Post By: iwpsuperadmin
×