आवश्यकता एक राष्ट्रीय स्वच्छता-नीति की

आज जब सभी राजनीतिक दलों ने स्वयं को स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्ध कर लिया है और अधिक जोर सार्वजनिक शौचालय एवं पेशाबघर बनाने पर दिया जा रहा है, विशेषकर महिलाओं के लिए, तब इस परिस्थिति में हमें विचार करना है कि कैसे इस राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को पूरा किया जाना है। एक सार्वजनिक शौचालय को बनाने से अधिक आसान एवं उसे साफ-सुथरा रखने से अधिक कठिन कुछ नहीं हो सकता, जिसका प्रयोग, एक घरेलू शौचालय को प्रयोग करने से कहीं अधिक लोग करते हैं। शहरों को बसाने में सार्वजनिक शौचालयों को सबसे अधिक अनदेखा किया जाता है। साथ ही यह विषय ऐसा है, जिसकी चर्चा मीडिया में भी अत्यन्त कम की जाती है, जबकि असफल विचारधाराओं अथवा राजनीति की कुछ अनावश्यक बातों पर चर्चा करने के लिए बहुत समय एवं स्थान होता है। आप किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत संचालन करें, किंतु किसी भी अच्छे स्वस्थ एवं खुशहाल समाज की संरचना में शौचालय सदा उसके आधार स्तम्भ के रूप में रहेगा।

 

इस दशा में प्रथम हमें एक राष्ट्रीय स्वच्छता नीति का निर्माण करना चाहिए जिसके अन्तर्गत स्वच्छता परियोजनाओं को एक व्यवस्थित ढाँचे के अन्तर्गत लाया जाना चाहिए, जो अभी विभिन्न अभियन्ताओं, नगरीय संस्थाओं इत्यादि द्वारा बनाई जाती हैं। न तो कोई एक समान नीति है और न ही कोई राष्ट्रीय प्रतिबद्धता, न ही कोई व्यवहारिक एवं कार्यांवित होने योग्य परियोजनाएँ हैं, जो हमें अपनी संस्कृति, अर्थव्यवस्था, व्यवहारों, एवं तकनीक से जोड़ सके। राष्ट्रीय स्वच्छता नीति में अंग्रेजों से मिली सीवर व्यवस्था, जो महँगी. जल अपव्ययी एवं सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त नहीं है, से भी निजात मिल सकेगी। यह स्वच्छता नीति विशेष तौर से गठित राष्ट्रीय स्वच्छता नीति बोर्ड द्वारा बनाई जानी चाहिए, जिसमें विभिन्न अभियन्तागण, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सेवा प्रदाताओं एवं स्वयंसेवी संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए। इनके अलावा कुछ ऐसे स्त्रियों एवं पुरुषों को भी इसी बोर्ड में शामिल किया जाना चाहिए, जो स्वच्छता कि आवश्यक सुविधाओं के चलते प्रभावित हैं।

 

इतिहास स्वयं को दोहराता है-कभी एक त्रासदी के रूप में तो कभी प्रहसन के रूप में। स्वच्छता न होने के क्या प्रभाव हो सकते हैं, इस पर पूरी जानकारी दी जा चुकी है, किन्तु भारत में ही नहीं, बल्की विदेशो में भी नीति निर्धारक इसे पूर्णत: नजरअन्दाज करते आए हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हम एक अस्वच्छ एवं अस्वस्थ समाज में जी रहे हैं। विकास के लिए भी स्वच्छता आवश्यक है। एशियन डेवलपमेंट बैंक का कहना है कि यदि भारत स्वच्छता में सुधार ला सके तो वह बहुत लाभ कमा सकता है। इसमें शामिल है शौचालय, सीवर व्यवस्था, तथा हस्त प्रक्षालन। इन सभी की कमियों से रोगाणु, बैक्टीरिया एवं परजीवी मानव-मल से भोजन एवं जल तक पहुँच जाते हैं। इससे संक्रमण होने का खतरा रहता है, यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है। बच्चो में डायरिया सर्वाधिक जानलेवा है। यह एक जल जनित रोग है। जल जनित रोगों से ग्रसित रोगियों में 89 प्रतिशत 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे हैं। अस्वच्छता का कुप्रभाव सबसे अधिक गरीब वर्ग पर पड़ता है। इस प्रकार बेहतर स्वच्छता एक विकल्प नहीं, आवश्यकता है। इससे प्राप्त होने वाले लाभ अत्यधिक हैं। एशियन डेवलेपमेंट बैंक के अनुसार, कुल सकल घरेलू उत्पाद 4 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

 

इसके अलावा स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले व्यय, जो गरीब वर्ग की आय का एक बड़ा भाग होता है, में भी कमी आएगी। पाइप द्वारा पहुँचाए गए स्वच्छ जल से महिलाओं के दूर जाकर जल लाने में लगे घंटे बच सकते हैं। इससे विद्यालयों तक एवं कार्य-स्थलों तक उनकी पहुँच हो सकेगी। सम्भ्रान्त घरों के लोग बोतल वाले जल एवं जल शोधक संयंत्रों पर कम व्यय करेंगे।

 

एशियन डेवलेपमेंट बैंक के अनुसार, यदि भारत अपने यहाँ अधिक शौचालयों का निर्माण कर पाता है तो शौचालय, ड्रेन पाइप, साबुन एवं ऐसे ही अन्य उत्पादों के बाजार में भी वृद्धि होगी। अभी बाजार 6.6 बिलियन डॉलर का है। सन 2020 तक यह 15 बिलियन डॉलर तक पहुँचाया जा सकता है, यदि सरकार स्वच्छता के मापदण्डों को बढ़ावा देती है। स्वच्छता से केवल मृत्यु दर में अथवा बीमार होने की दर में कमी आएगी। इतना ही नहीं, बेहतर स्वच्छता से मिलने वाले परिणाम उम्मीद से बेहतर भी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि भारत स्वच्छ एवं बेहतर होता है तो पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। केवल इतना ही नहीं, स्वच्छता की कमी के चलते परिवार में बीमारी एवं अप्रसन्नता रहती है, विशेषकर गरीब वर्ग के परिवारों मे इससे स्पष्ट है कि इतिहास स्वयं को दोहरा रहा है इस बार अनकही त्रासदी के रूप में।

 

अत: नए नेतृत्व के लिए यह समय है कि राष्ट्रीय स्वच्छता नीति की घोषणा मैग्ना कार्टा की परम्परा में की जाए, जैसे सन 1215 में किंग जॉन से स्वतन्त्रता प्राप्त की गई थी। हमें चाहिए कि हम न्यायालयों से स्वच्छता की अपने मौलिक अधिकार के रूप में माँग करें, तभी देश स्वच्छ तथा लोग अधिक स्वस्थ होंगे।

साभार :सुलभ इण्डिया मार्च 2014

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