जनक सिंह
इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री जयराम रमेश ने कहा कि श्रीमती अनीता बाई के पति दूर-दराज के गांव में एक मजदूर हैं, लेकिन अपनी जीवटता और अदम्य इच्छा व साहस के बल पर आज अनीता देश के पुनरुत्थान का चेहरा बन चुकी हैं। आज उसने सुलभ-पुरस्कार पाया है। इस साधारण आदिवासी महिला का लक्ष्य जीवन में अनेक पुरस्कार पाने का है, उसकी इच्छा-शक्ति एवं दृढ़ संकल्प का कोई सानी नहीं। मैं चाहता हूं कि अनीता सरीखे लोग शुचिता के दूत बनें।
यह एक साधारण महिला का विलक्षण व्यवहार ही नहीं है, जो अपनी ओर ध्यान आकर्षित करता है। अनीता ने जो किया, वह एक जागरण, एक जुनून है, यह व्यवहार भारत के ग्रामीण घरों में शौचालय न बनाने के विरुद्ध विद्रोह-अभियान की चिनगारी भड़काएगा। यह कहते हुए दुःख होता है कि हमारे देश में शौचालय और शुचिता की अवस्था दयनीय है। 2.5 लाख ग्राम-पंचायतों में केवल 25 हजार पंचायत निर्मल ग्राम-पंचायतें हैं तथा वहां लोग खुले में शौच नहीं करते। अर्थात् वहां घरों, स्कूलों और आंगनबाडि़यों में शौचालय की व्यवस्था है।
भारत के गांवों के 60 प्रतिशत लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। बाहर शौच जाने पर विशेष कर महिलाओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, यथा-सांप का काटना तथा अपने को असामाजिक तत्त्वों से बचाना आदि। वास्तव में, अनीता बाई नर्रे ने इस संदर्भ में एक दीया जलाया है, जो भारत के गांवों के घरों में विस्फोटक का कार्य करेगी। आज रतनपुर के 157 घरों में से 100 घरों में शौचालय बन चुके हैं।
माननीय मंत्री महोदय ने कहा, ‘उसने जो किया है, वह सचमुच महान् है। इसी कारण भारत सरकार ने 21 मार्च को विज्ञान-भवन में उसे सम्मानित करने का निर्णय लिया है। महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल, वहां उसे एक प्रशस्तिपत्र और पहचान पत्र देंगी। आज का यह पुरस्कार उसे शौचालय के विकास के क्षेत्र में उठाए गए प्रभावशाली कदम के लिए दिया गया है। भारत-सरकार शौचालय एवं स्वच्छता से संबंधित समस्या के प्रति गंभीर है। यह तथ्य संसद में दिए वित्त-मंत्री के एक भाषण से प्रतिबिंबित होता है, जब माननीय वित्त-मंत्री जी ने शौचालयों की समस्या की चर्चा तीन बार की। मेरे संसदीय भाषणों में भी इस समस्या पर जोर दिया गया है।’
19 मार्च को दोपहर-सत्र में संसद में उपस्थित होने की तत्परता के कारण श्री जयराम रमेश शौचालय-समस्या पर अधिक न बोल पाए, लेकिन प्रस्थान से पूर्व उन्होंने कहा कि वह पेरिस के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेकर आई उषा चैमड़ से जो कि सुलभ की अध्यक्ष पद पर प्रतिष्ठित हैं और डॉ. बिन्देश्वर पाठक के साथ वहां से हो आई हैं, अवश्य बात करेंगे और उनके अनुभवों का आदान-प्रदान करेंगे। माननीय मंत्री महोदय ने अपने भाषण को संक्षिप्त करते हुए विदा ली, क्योंकि उन्हें संसद-सत्र में प्रधानमंत्री के भाषण से पूर्व उपस्थित होना था।
‘शौचालय नहीं बनवाओगे तो मायके चली जाऊंगी’
पुरस्कार प्राप्तकर्ता श्रीमती अनीता बाई नर्रे ने आपबीती सुनाती हुई लोगों से कहा, जब झीटूढाना में मेरी शादी हुई तो वहां जाकर मुझे पता चला कि मेरे नए घर में शौचालय नहीं है। मैं दो दिन अपनी ससुराल में रही तो मुझे शौचालय के लिए अपने घर से लगभग दो किलोमीटर दूर जाना पड़ा। इससे मुझे काफी शर्मिंदगी महसूस हुई। उसी समय मैंने निश्चय किया कि जब-तक यहां नहीं आऊंगी। मुझे मजबूरन पति के सामने यह शर्त रखनी पड़ी कि जब-तक आप घर में शौचालय नहीं बनाएंगे। मैं आपके साथ नहीं रह सकती। हम दिनभर भूखे तो रह सकते हैं, किंतु यदि शौच आ जाए तो उसे दिनभर दबाकर नहीं रखा जा सकता। इसलिए मैं दो दिनों बाद ही मायके वापस आ गई। मैंने यह बात अपने मायके वालों को बताई। मेरे कष्ट को देखते हुए उन्होंने भी मेरे निर्णय का समर्थन किया। जब मेरे पति मुझे लेने के लिए आए तो मैंने शौचालय नहीं होने के कारण साफ शब्दों में ससुराल जाने से इनकार कर दिया। मेरे पति अपने घर लौट गए और शौचालय-निर्माण के लिए प्रयास करने लगे। इसके लिए उन्होंने ग्राम-पंचायत से मदद मांगी। ग्राम-पंचायत की सरपंच और सचिव ने बताया कि ‘निर्मल-वाटिका’ तथा ‘संपूर्ण स्वच्छता-अभियान’ के तहत घर में शौचालय बनवाया जा सकता है। पंचायत की आंशिक व्यवस्था तथा अपने पैसे लगाकर मेरे पति ने बिना देर किए शौचालय बनवा डाला।
‘मेरे पति ने मेरा मान रखा और शौचालय बनवाया’
अपनी कहानी को जारी रखती हुई वह बोली, उसके बाद वे मुझे लेने आए और जब उन्होंने शौचालय बना लेने की बात बताई तो मुझे बहुत खुशी हुई कि मेरे पति ने मेरा मान रखा और स्वच्छता के लिए जरूरी शौचालय को महत्त्व दिया।
हमारे देश में शौचालय और शुचिता की अवस्था दयनीय है। 2.5 लाख ग्राम-पंचायतों में केवल 25 हजार पंचायत निर्मल ग्राम-पंचायतें हैं तथा वहां लोग खुले में शौच नहीं करते। अर्थात् वहां घरों, स्कूलों और आंगनबाडि़यों में शौचालय की व्यवस्था है।।
मेरे मायके वालों ने मुझे खुशी-खुशी विदा किया। जब मैं अपनी ससुराल आई तो शौचालय पाकर अत्यंत प्रसन्न हुई। मेरे इस कदम की सराहना करते हुए ग्राम-सभा ने मुझे रु. 501 का नगद पुरस्कार प्रदान किया। जिला-प्रशासन ने मुझे ‘संपूर्ण स्वच्छता-अभियान’ के प्रचार-प्रसार एवं महिलाओं में स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए ब्रांड एम्बैसडर नियुक्त किया है। मुझे पता है कि शौच-हेतु बाहर जाने पर महिलाओं को कितनी परेशानियां होती हैं। उनके साथ आए दिन तरह-तरह की दुर्घटनाएं होती हैं, उन्हें हिंसक पुरुषों का भी सामना करना पड़ता है। मैं उन सभी महिलाओं से, जो शौच के लिए बाहर जाती हैं, यह कहना चाहती हूं कि शौच के लिए बाहर जाना बंद करें, इससे होने वाली बीमारियों से बचें और अपने स्वाभिमान की रक्षा करें।
श्रीमती नर्रे ने कहा, ‘आज आपके द्वारा पांच लाख रुपए का ‘सुलभ-स्वच्छता-सम्मान’ प्राप्त कर, वह भी माननीय मंत्री श्री जयराम रमेश जी के कर-कमलों से, मैं कृतकृत्य हूं। मैं पूरे सुलभ-परिवार और संपूर्ण राष्ट्र को प्रणाम करती हूं। डॉ. बिन्देश्वर पाठक जी के प्रति विशेष कृतज्ञ हूं कि इन्होंने मेरे साहस को पहचाना और मेरे गांव गए, घर की मरम्मत और शौचालय को और अच्छा बनाने के लिए अलग से दो लाख रुपए दिए तथा पूरे गांव को भोजन कराया। यह आपके बड़े सामाजिक व्यक्तित्व और विराट हृदय का परिचायक है। मैं आपको प्रणाम करती हूं।’
पढ़ाई के लिए भी शौचालय जरूरी
अनीता अपनी प्रथम संतान को इसी वर्ष जून में जन्म देने वाली हैं। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने शौचालय-संबंधी ऐसा कठोर निर्णय क्यों लिया, तब वह बोली, ‘मुझे स्वच्छता की शिक्षा अपने घर एवं विद्यालय से मिली। मेरे मां-पिता जी का इसमें बहुत योगदान रहा। पाठशाला में मुझे बताया गया कि खाना खाने से पहले एवं शौच के बाद साबुन से ही हाथ धोना चाहिए। पीने के पानी को ऊंचे स्थान पर और ढककर रखना चाहिए। शौच-हेतु शौचालय का ही प्रयोग करना चाहिए। मैंने इन बातों पर अमल किया। इसका परिणाम यह हुआ कि मैं कभी बीमार नहीं पड़ी। इससे मुझे यह फायदा हुआ कि मैं स्कूल में हमेशा उपस्थित रहती थी, जिससे मेरी पढ़ाई अच्छी तरह से चलती रही।
‘किसी ने मेरे पति को सहानुभूति नहीं दिखाई। पर जो भी हो, हमारे दुःख का अंत हो गया। एक बार जब डॉक्टर पाठक मेरे गांव आए तो ज्यादा-से-ज्यदा पत्रकार मेरे जीवन में आए उतार-चढ़ाव के बारे में विस्तार से जानने के लिए और मुझसे बातें करने के लिए आने लगे।’
मावलंकर-सभागार के मंच की दीवार पर बड़े-बड़ेे सुंदर अक्षरों में लिखा था
सुलभ गांव की ओर
सुलभ स्वच्छता-सम्मान
अनीता बाई नर्रे के सम्मान में
डॉक्टर पाठक विश्व-भर में शुचिता-गुरु के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने अपने स्वागत-भाषण में श्रीमती अनीता बाई नर्रे के साहसिक कदम की प्रशंसा करते हुए कहा कि शौचालय उपलब्ध होने की बात पर विद्रोह पर उतरने वाली इस ग्रामीण महिला ने इस देश के लिए क्रांतिकारी कदम उठाया है, जहां 66 करोड़ की आबादी खुले में शौच करती है, जिससे तमाम बीमारियां पैदा होती हैं।
उन्होंने कहा कि शौचालय के अभाव का सबसे अधिक दंश महिलाओं को ही झेलना पड़ता है, क्योंकि उन्हें शौच के लिए सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद ही जाना पड़ता है। इस बीच यदि महिलाओं को शौच लगती है तो उन्हें इस प्राकृतिक जरूरत को भी नजरअंदाज करना पड़ता है।
डॉक्टर पाठक ने कहा, ‘अनीता बाई नर्रे ने ससुराल छोड़ने का बहुत बड़ा फैसला किया, क्योंकि किसी विवाहिता का ससुराल छोड़कर मायके आ जाना न केवल उसके परिवार, बल्कि गांव और समाज के लिए भी प्रतिष्ठा का विषय होता है। हमने इस घटना की जानकारी मिलने के तुरंत बाद पुरस्कार की घोषणा कर दी थी, क्योंकि देश की लड़कियों को हम अपनी समस्याओं के बारे में बोलने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।’
यह सम्मान अनेक गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में प्रदान किया गया। इस समारोह में अलवर तथा टोंक, राजस्थान से आईं महिला स्वयंसेवियों के साथ सुलभ वोकेशनल ट्रेनिंग एवं सुलभ पब्लिक स्कूल की छात्र-छात्राएं भी उपस्थित थीं।
इस अवसर पर सुलभ की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट श्रीमती अनीता झा ने मानपत्र का वाचन किया, जिसमें उल्लेख था- आपने राष्ट्रीय स्वच्छता-परिदृश्य में दूरगामी छाप डाली है और सामाजिक परिवर्तन के लिए साहस का उदाहरण पेश किया है। इस घटना से देश की महिलाओं में, खासकर ग्रामीण महिलाओं में, इस समस्या से जूझने का एक नया जोश जाग्रत होगा। व्यापक सामाजहित में आपका यह विद्रोही कदम न केवल अपने-आप में पहला क्रांतिकारी कदम है, विश्व-ग्राम बनते जा रहे इस संसार, विशेषतः भारतीय परिप्रेक्ष्य में भी युगांतरकारी है। यह घटना निश्चय ही भावी इतिहास का अनमोल अध्याय बनेगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
इस संदर्भ में मीराबाई, रानी लक्ष्मीबाई और सरोजनी नायडू के योगदान को भी याद किया गया, जिसमें उन्होंने समाज को अनेक बेडि़यों से मुक्त करवाया, ऐसी कहानियां भी बताई गईं कि किस प्रकार वे आनेवाली पीढि़यों के लिए अपूर्व उदाहरण बनीं।
श्रीमती नर्रे के व्यक्तिगत जीवन के संबंध में उल्लेख था-आपका जन्म 07 सितंबर, 1985 ई. को मध्य प्रदेश राज्य के बैतूल-जिला में चिचैली नामक स्थान के जायसवाल कॉलोनी में एक शिक्षक-परिवार में हुआ। आप सुयोग्य पिता की प्रतिभाशालिनी सुपुत्री हैं। आपने मूलताई स्कूल, बैतूल से दसवीं एवं बारहवीं की कक्षाएं पास की हैं। संप्रति आप चिचैली कॉलेज में स्नातक-कला के अंतिम वर्ष की छात्रा हैं। पढ़ने-लिखने के साथ-साथ खो-खो एवं बैडमिंटन-जैसे खेलों में आपकी अभिरुचि बचपन से रही है। इन गुणों ने आपके व्यक्तित्व को और भी उजागर किया है।
आपके द्वारा किए गए शौचालय-निर्माण की मांग स्वच्छता-क्रांति का एक स्वर ही नहीं, बल्कि स्वच्छता-आंदोलन के राष्ट्रीय कार्यक्रम और सुलभ-स्वच्छता-आंदोलन में एक क्रांतिकारी सहभागी भी होगी। इससे जिला बैतूल का गांव झीटूढाना, आपके पिता अध्यापक श्री अम्मूलाल कुमरे, माता श्रीमती सुखवंती कुमरे और पति श्री शिवराम नर्रे ही गौरवान्वित नहीं हुए हैं, हम सुलभ-परिवार के सदस्य भी अपने-आपको धन्य मान रहे हैं।
साभार : सुलभ इंडिया
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