अनार्यों का सफाई कामगार में परिवर्तन

संजीव खुदशाह

आर्यों के आगमन से पूर्व यहाँ के मूल निवासी, जिन्हें दानव, सुर. असुर, चाण्डाल, नाग, द्रविड़, दैत्य कहा गया, रहते थे। इनके साथ आर्यों के आगमन पश्चात हमले होते थे। आर्यों ने इनके धर्म ग्रन्थ नष्ट कर दिए और, चूँकि ये आधुनिक हथियारों से लैस थे, इन्होंने यहाँ के मूल निवासियों को जंगलों में खदेड़ दिया। जो लोग बन्दी बना लिए गए, उनसे नीच कार्य करवाया जाने लगा। भागे हुए मूल भारतीय (अनार्य) जो कबीले में रहते थे एकत्र होकर इनके (आर्यों के) कार्यों में व्यवधान करते थे। इनके यज्ञ, धार्मिक संस्कारों को भंग करते थे। इसीलिए इन्हें भंगी कहा गया (भंगी का शाब्दिक अर्थ भंग करने वाला है न कि सफाई करने वाला)। चूँकि ये विरोधी थे, इसलिए आर्यों द्वारा इन्हें प्रत्येक क्षेत्र में कुचला गया और इन्हें सुर, असुर, नाग, दैत्य आदि कई नामों से पुकारा गया। अनार्य तन-मन-धन से कमजोर होते गए। पेट की ज्वाला बुझाने के लिए जो भी काम मिला, उसे करते गए और भूल गए कि उनका गौरवमय इतिहास क्या है। वे वर्तमान को ही अपनी नियति मानने लगे। बाद में इन्हें सफाई पेशे को अपनाना पड़ा।

धम्म पद उद्धरण- “राजगृह में एक सुणीत नाम का भंगी (पुष्प छड्डक) रहता था। गृहस्थों द्वारा सड़क पर फेंका गया कूड़ा-कचरा साफ करना ही उसकी जीविका का साधन था। यह उसका परम्परागत नीच पेशा था {सुणीत थेरो, द्वादस निपोतो (थेर गाथा)}।”

“जब उस समय सुणीत कूड़ा-कचरा इकट्ठा करके ढेर लगा रहा था, जिसे वह बाद में टोकरी से गाड़ी में डालने वाला था और उस गाड़ी को खींचकर ले जाने वाला था (पृष्ठ 146 धम्मपद द्वितीय भाग)।”  

धम्म पद में भंगी सुणीत को बौद्ध दीक्षा दिए जाने का विवरण है। इन्हें दीक्षा भगवान बुद्ध द्वारा दी गई थी। उक्त उद्धरण से स्पष्ट होता है कि -

1. उसका निवास स्थान ग्राम के बाहर नहीं था। वह शहर, ग्राम या राजगृह में रहता रहा होगा। यानी समाज की मुख्यधारा से जुड़ा रहा होगा।

2. गृहस्थों द्वारा सड़क में कचरा फेंका जाता रहा है जिसकी सफाई वे स्वयं नहीं करते थे क्योंकि बौद्ध विहार आदि में साफ-सफाई स्वयं भिक्षु करते थे। किन्तु नगरीय क्षेत्र में भंगी का काम कूड़ा-कचरा साफ करना था न कि पैखाना साफ करना। सम्भव हे कि उस समय पैखाना नहीं रहा होगा।

साभार : सफाई कामगार प्रारम्भ की परिकल्पना, प्रकार, भंगी का अभिप्राय एवं वर्गीकरण

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