सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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बदली जिले की तकदीर
Posted on 22 Nov, 2010 07:30 AM

जलाभिषेक अभियान का ब्रांड एम्बेसडर बना देवास जिला

हजारों भागीरथ बनाए कलेक्टर उमराव ने

बूंद-बूंद पानी
Posted on 20 Nov, 2010 07:30 AM उत्तराखंड के चंपावत जिले से 45 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है, तोली। जौलाड़ी ग्रामसभा के इस गांव में करीब 24 परिवारों का बसेरा है। आज से दो दशक पहले यहां पानी की बहुत किल्लत थी। लोगों को बहुत दूर से पानी ढोना पड़ता था। लेकिन आज ऐसा नहीं है। अब हर आंगन में पानी पहुंच चुका है। गांव वालों को यह सुविधा किसी सरकारी योजना से नहीं, बल्कि इसी गांव के निवासी कृष्णानंद गहतोड़ी और पीतांबर गहतोड़ी की सूझबूझ औ
सहारनपुर की टेम्स
Posted on 20 Sep, 2010 10:12 AM
माना जाता है कि देश की राजधानी दिल्ली में समाज का जागरूक तबका रहता है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने जब पहली बार दिल्ली की कमान संभाली थी, तो कहा था कि हम यमुना को टेम्स बना देंगे। मगर अपने तीसरे कार्यकाल में वे यमुना को टेम्स तो क्या, रजवाहे तक में परिणित नहीं करा सकीं। ऐसे में सहारनपुर की पांवधोई नदी दिल्ली ही नहीं पूरे देशवासियों केलिए नसीहत बनकर कल-कल बह रही है। डीएम आलोक कुमार की पहल पर म
फूलों की खेती से महका जीवन
Posted on 13 Sep, 2010 02:43 PM
झारखंड की उपराजधानी के किसान सोनोत हांसदा ने किसान के रूप में अपनी एक अलग पहचान बना ली है।

हांसदा के जीवन में अचानक परिवर्तन आया और वे मिट्टी से सोना पैदा करने की लगन में आज किसानों के आदर्श बन गए। बी.ए. तक शिक्षित हांसदा को चार साल पूर्व कृषि में कोई रूचि नहीं थी। भूतपूर्व सैनिक के पुत्र होने के कारण एवं जमीन की बहुतायत से उन्हें रोजी रोटी की कोई समस्या नहीं थी।
गुजरात के एक गांव की कमाई है 5 करोड़ रुपए
Posted on 01 Sep, 2010 09:31 AM (गुजरात चुनावों में मैं सौराष्ट्र इलाके में करीब हफ्ते भर था। गुजरात के गांवों में विकास कितना हुआ है। ये जानने के लिए मैं राजकोट के नजदीक के एक गांव में गया। और, मुझे वहां जिस तरह का विकास और विकास का जो तरीका दिखा वो, शायद पूरे देश के लिए आदर्श बन सकता है।)

गुजरात में राजकोट से 22 किलोमीटर दूर एक गांव की सालाना कमाई है करीब पांच करोड़ रुपए। इस गांव के ज्यादा लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन खेती ही है। कपास और मूंगफली प्रमुख फसलें हैं। गांव में 350 परिवार हैं जिनके कुल सदस्यों की संख्या है करीब 1800।

छोटे-मोटे शहरों की लाइफस्टाइल को मात देने वाले राजसमढियाला गांव की कई ऐसी खासियत हैं जिसके बाद शहर में रहने वाले भी इनके सामने पानी भरते नजर आएं। 2003 में ही इस गांव की सारी सड़कें कंक्रीट की बन गईं। 350 परिवारों के गांव में करीब 30 कारें हैं तो, 400 मोटरसाइकिल।
गिरजाघर का तरल आशीष
Posted on 27 Aug, 2010 03:12 PM
अपने पड़ोसी को प्यार करो। कर्नाटक में एक गिरजाघर ने ईसा मसीह की इस उक्ति को बड़े ही अच्छे तरीके से व्यवहार में उतारा है, खारे पानी के इस इलाके में मीठा पानी उतार कर। अपने लिए नहीं अपने पड़ोसियों के लिए। कुंदायू के पास राष्ट्रीय राजमार्ग-17 से लगे समुद्र किनारे के गांव तल्लूर में बने सेंट फ्रांसिस असीसी नामक इस चर्च ने अपने पड़ोस के पांच सूखे पड़े कुओं को फिर से जीवंत बना दिया है। वर्षों पहले
एक बाली में छिपी क्रांति
Posted on 26 Aug, 2010 11:09 AM
कोई 250 बरस पहले अंग्रेजी लेखक जॉनाथन स्विफ्ट ने एक कहानी लिखी थी ‘गुलिवर्स ट्रेवल्स’। तब से अब तक इसके अनगिनत अनुवाद हुए हैं। इस सुंदर कथा के एक प्रसंग में एक ऐसे साधारण आदमी को बड़े से बड़े राजा, महाराजा से भी बड़ा बताया गया है जो फसल की एक बाली को, घास के एक तिनके को दो बालियों, दो तिनकों में बदल दे। लगता है बाद में कृषि वैज्ञानिकों ने इसी कहानी को पढ़कर सभी तरह की फसलें दुगुनी करने के
नवदर्शनम् : एक गृहस्थ की ऋषि खेती
Posted on 16 Aug, 2010 04:18 PM

ऐसा नहीं कि जैविक खेती में कोई परेशानियां नहीं होतीं। इनसे बचने के जैविक खेती के अपने तरीके हैं, जो आश्चर्यकारक ढंग से कारगर हैं। उनमें भी अहिंसा भाव है। नहीं तो क्या यह संभव है कि जहां सामान्य खेती में कीट-खरपतवारनाशक हैं, जैविक खेती में यही काम करने वाले पदार्थ को जीवामृत कहा जाए?

अब उनके हाथ-पैर में खेत की मिट्टी लगी रहती है। अभी कुछ ही बरस पहले तक वे अमेरिका की कंप्यूटर कंपनियों में तरह-तरह के यंत्रों से घिरे रहते थे। नाम है इनका टी.एस. अनंतू। देश के सबसे ऊंचे माने गए तकनीक संस्थान आई.आई.टी. से कंप्यूटर का पूरा व्यवहार और दर्शन पढ़कर वे निकले थे। कोई 30 बरस पुरानी बात होगी यह। उन दिनों देश में कंप्यूटर की कोई खास जगह थी नहीं। इक्के-दुक्के कंप्यूटर एक अजूबे की तरह कुछ गिनी-चुनी जगहों पर रहे होंगे। ऐसे में अनंतूजी यहां
सथ्यः चौपाल का अमृत
Posted on 16 Aug, 2010 11:48 AM

अपनी जड़ों से कट कर सब चेतन-अचेतन मुरझा जाते हैं। मूल से कट कर मूल्य भी कहां बचाए जा सके हैं। सभ्यताएं, समाज भी हरे-भरे पेड़ों की तरह ही होते हैं। उन्हें भी अच्छे विचारों की खाद, मन-जल की नमी, ममता की आंच, प्रेम सी सरलता और प्रकृति के उपकारों के प्रति आजीवन मन में रहने वाला कारसेवक-सा भाव ही टिका के रख सकता है। इन सब तत्वों के बगैर समाज के भीतर उदासी घर करने लगती है।

बीते सभी जमाने इस बात की गवाही देते रहे हैं कि अपनी जड़ों से कट कर सब चेतन-अचेतन मुरझा जाते हैं। मूल से कट कर मूल्य भी कहां बचाए जा सके हैं। सभ्यताएं, समाज भी हरे-भरे पेड़ों की तरह ही होते हैं। उन्हें भी अच्छे विचारों की खाद, मन-जल की नमी, ममता की आंच, प्रेम-सी सरलता और प्रकृति के उपकारों के प्रति आजीवन मन में रहने वाला कारसेवक-सा भाव ही टिका के रख सकता है। इन सब तत्वों के बगैर समाज के भीतर उदासी घर करने लगती है। जब भी कोई समाज अपने इतिहास-पुराण से कट कर अपना भविष्य संवारने निकलता है तो उसमें अपनेपन की बजाय परायापन झांकने लगता है और फिर पराएपन को बनावटीपन में बदलते देर भी नहीं लगती। परायापन एक बेहद गंभीर समस्या होती है। फिर परायापन घर को हो या समाज का, उससे सबकी कमर झुकने लगती है।
एक उद्यमी किसान ऐसा भी
Posted on 12 Aug, 2010 09:16 AM किसानों की समस्याएं और सामाजिक कार्यों के चलते 1977 में निर्विरोध वार्ड पंच चुन लिया गया और 1978 में पंचायत के सभी किसानों की भूमि की पैमाइश कराई। पूरे गांव की जमीन को एकत्रित कराकर जमीन की चकबंदी कराई और जमीन के टुकड़ों की समस्या को सदा के लिए दूर कर दिया।

मैंने होश संभाला तब पिताजी लाव-चरस से खेती करते थे। साठ बीघा जमीन थी लेकिन दो बीघा जमीन पर भी मुश्किल से खेती होती थी। ‘भारतीय कृषि मानसून का जूआ है।’ यह उन दिनों बिल्कुल सटीक बैठती थी। सातवीं कक्षा में ही बालक कैलाश के हाथ से कागज कलम छूट गये और हल फावड़े ने उसकी जगह ले ली। वक्त हाथ में कैद मिट्टी के कणों की तरह धीरे-धीरे फिसलता रहा।
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