पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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पशु सम्बन्धी कहावतें
Posted on 24 Mar, 2010 10:02 AM
अमहा जबहा जोतहु जाए।
भीख माँगि के जाहु बिलाए।।


भावार्थ- यदि किसान ने अमहा और जबहा नस्ल वाले बैलों से खेत की जुताई की तो उसे भीख ही माँगनी पड़ेगी और अन्त में बर्बाद हो जायेगा।

सावन सूखे धान
Posted on 24 Mar, 2010 09:21 AM
सावन सूखे धान,
फागुन सूखे गोहूँ।


भावार्थ- यदि सावन में सूखा पड़ जाये तो धान हो सकता है और फागुन में सूखा पड़ जाये तो गेहूँ की पैदावार हो सकती है।

बैसाख सुदी प्रथमै दिवस
Posted on 24 Mar, 2010 09:15 AM
बैसाख सुदी प्रथमै दिवस, बादर बिज्जु करेइ।
दामा बिना बिसाहिजै, पूरा साख भरेइ।।


भावार्थ- यदि वैशाख शुक्ल प्रतिपदा को आसमान में बादल हों और बिजली चमक रही हो तो उस वर्ष ऐसी पैदावार होगी कि अन्न खरीदने वाला कोई नहीं मिलेगा।

गेहूँ बाहे चना दलाये
Posted on 24 Mar, 2010 09:13 AM
गेहूँ बाहे चना दलाये।
धान बिगाहे मक्की निराये।।
ऊख कसाये।


भावार्थ- गेहूँ के खेत को कई बार जोतने से, चने को खोंटने से, धान के खेत को बिदाहने से (धान के उग जाने पर फिर जुतवा देने से), मक्के को निराने से और ईख को बोने से पहले पानी में छोड़ देने से पैदावार अच्छी होती है।

कुही अमावस मूल बिन
Posted on 24 Mar, 2010 09:10 AM
कुही अमावस मूल बिन, बिन रोहिनि अखतीज।
स्रवन बिना हो स्रावनी, आधा उपजै बीज।।


शब्दार्थ- स्रावनी-सावन की पूर्णिमा।

भावार्थ- यदि अमावस मूल नक्षत्र में न पड़े, अक्षय तृतीया को रोहिणी न हो और श्रावण पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र न पड़े तो बीज आधा उगेगा अर्थात् पैदावार कम होगी।

ईख तिस्मा
Posted on 24 Mar, 2010 09:07 AM
ईख तिस्मा।
गोहूँ बिस्मा।।


भावार्थ- ईख की पैदावार तीस गुनी और गेहूँ की बीस गुनी होती है।

आधे चित्रा फूटा धान
Posted on 24 Mar, 2010 09:05 AM
आधे चित्रा फूटा धान।
विधि का लिखा न होवै आन।।


शब्दार्थ- फूटा-बालें निकलना।

भावार्थ- यदि चित्रा नक्षत्र के आधा निकल जाने पर धान फूटा हो, अर्थात् उसमें बालें निकलती हैं तो उसको पैदावार विधाता के ही हाथ में है।

पैदावार सम्बन्धी कहावतें
Posted on 24 Mar, 2010 09:03 AM
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवै संजूत।
तो भाखै यों भड्डरी, निपजै नाज बहूत।।


भावार्थ- भड्डरी कहते हैं कि वैशाख में अक्षय तृतीया के दिन यदि गुरुवार हो तो अन्न अधिक पैदा होगा।

पछिवाँ हवा ओसावै जोई
Posted on 24 Mar, 2010 09:01 AM
पछिवाँ हवा ओसावै जोई।
घाघ कहै घुन कबहुँ न होई।।


भावार्थ- यदि पछुवा हवा में अनाज को ओसाया जाय तो घाघ के अनुसार उसमें कभी भी घुन नहीं लगेगा।

दो दिन पछुवाँ छः पुरवाई
Posted on 24 Mar, 2010 09:00 AM
दो दिन पछुवाँ छः पुरवाई। गेहूँ जव को लेव दँवाई।।
ताको बाद ओसावै सोई। भूसा दाना अलगै होई।।


भावार्थ- पछुवा हवा में दो दिन और पुरवा में छः दिन गेहूँ एवं जौ की मड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद मड़ाई करने के बाद ओसाने से उसका भूसा और दाना अलग होता है।

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