पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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बैल मुसरहा जो कोई ले
Posted on 24 Mar, 2010 11:57 AM
बैल मुसरहा जो कोई ले। राजभंग पल में कर दे।।
त्रिया बाल सब कुछ छुट जाय। भीख माँगि के घर खाय।।


भावार्थ- जिस किसान के पास मुसरहा बैल (जिसकी पूँछ के बीच में दूसरे रंग के बालों का गुच्छा) हो, उसके ठाठ-बाट जल्द ही नष्ट हो जाते हैं, स्त्री-पुत्र सब छूट जाते हैं और वह घर-घर भीख माँगने लगता है।

बड़सिंगा जनि लीजौं मोल
Posted on 24 Mar, 2010 11:56 AM
बड़सिंगा जनि लीजौं मोल।
कुएँ में डारों रुपिया खोल।।


भावार्थ- किसान को बड़े सींग वाला बैल कभी नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा बैल खरीदने से अच्छा है कि रुपया कुएँ में डाल दो।

बैल लीजै कजरा
Posted on 24 Mar, 2010 11:54 AM
बैल लीजै कजरा।
दाम दीजै अगरा।।


भावार्थ- यदि काली आँखों वाला बैल मिले, तो अग्रिम या अधिक दाम देकर खरीद लेना चाहिए।

बैल बेसाहन जाओ कंता
Posted on 24 Mar, 2010 11:52 AM
बैल बेसाहन जाओ कंता।
भूरे का मत देखो दन्ता।।


भावार्थ- हे स्वामी! यदि बैल खरीदने जाना तो भूरे रंग का बैल मत लेना।

बरद बेसाहन जाओ कंता
Posted on 24 Mar, 2010 11:50 AM
बरद बेसाहन जाओ कंता।
कबरा का जनि देखो दन्ता।।


भावार्थ- हे स्वामी! बैल खरीदने जाना तो चितकबरे बैल का दांत न देखना अर्थात् न खरीदना।

बाँसड़ औ मुँह धौरा
Posted on 24 Mar, 2010 11:47 AM
बाँसड़ औ मुँह धौरा।
उन्हें देखि चरवाहा रौरा।।


भावार्थ- उभरी हुई रीढ़ वाला और सफेद मुँह वाला बैल अत्यधिक सुस्त होता है इन्हें देख चरवाहा भी चिल्ला उठता है।

बाँधा बछड़ा जाय मठाय
Posted on 24 Mar, 2010 11:45 AM
बाँधा बछड़ा जाय मठाय।
बैठा ज्वान जाय तुँदियाय।।


भावार्थ- यदि बछड़ा बराबर बँधा रहे तो वह सुस्त हो जाता है अर्थात् आलसी हो जाता है और जवान व्यक्ति बराबर बैठा रहे तो उसकी तोंद निकल आती है।

बरद बिसाहन जाओ कंता
Posted on 24 Mar, 2010 11:43 AM
बरद बिसाहन जाओ कंता। खैरा का जनि देखो दंता।।
जहाँ परै खैरा की खुरी। तो कर डारै चापर पुरी।।
जहाँ परै खैरा की लार। बढ़नी लेके बुहारो सार।।

पूँछ झंपा औ छोटे कान
Posted on 24 Mar, 2010 11:40 AM
पूँछ झंपा औ छोटे कान।
ऐसे बरद मेहनती जान।।


भावार्थ- जिस बैल की पूँछ गुच्छेदार हो, कान छोटे हों, उसे अत्यधिक मेहनती समझना चाहिए।

पतली पेंडुली मोटी रान
Posted on 24 Mar, 2010 11:38 AM
पतली पेंडुली मोटी रान। पूँछ होय भुइँ में तरियान।।
जाके होवै ऐसी गोई। वाको तकैं और सब कोई।।


शब्दार्थ- गोई- बैलों की जोड़ी।

भावार्थ- जिस बैल की पेंडुली पतली हो, रान मोटी हो और पूँछ लम्बी तथा भूमि को छूती हुई हो, ऐसे बैल की जोड़ी जिस किसान के पास होगी उसकी ओर सबकी दृष्टि जायेगी।

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