पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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माघ पूस की बादरी
Posted on 25 Mar, 2010 11:56 AM
माघ पूस की बादरी, औ कुँवारा घाम।
ये दोनों जो कोइ सहै, करै पराया काम।।


भावार्थ- माघ और पूस महीने की बदली और क्वार की धूप को जो सहन कर ले, वही दूसरे का काम कर सकता है क्योंकि माघ और पूस में ठंडी बहुत होती है और क्वार में धूप अधिक तेज होती है।

भेदिहा सेवक सुन्दरि नारि
Posted on 25 Mar, 2010 11:54 AM
भेदिहा सेवक सुन्दरि नारि,
जीरन पट कुराज दुख चारि।।


भावार्थ- दूसरों को घर का भेद बताने वाला नौकर, रूपवती स्त्री, फटा कपड़ा और दुष्ट राजा ये चारों दुःख के कारण हैं।

बाढ़ै पूत पिता के धर्मे
Posted on 25 Mar, 2010 11:52 AM
बाढ़ै पूत पिता के धर्मे।
खेती उपजै अपने कर्मे।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि पुत्र पिता के धर्म से फलता-फूलता है और खेती अपने कर्म से अच्छी होती है।

बिना माघ घिव खिचड़ी खाय
Posted on 25 Mar, 2010 11:50 AM
बिना माघ घिव खिचड़ी खाय, बिन गौने ससुरारी जाय।
बिन बरखा के पहिरे पउवा, कहै घाघ ये तीनों कउवा।।


शब्दार्थ- पउवा-कठनहीं, हवाई चप्पल की तरह काठ की बनी खड़ाऊँ जिसमें रस्सी की बद्धी लगी होती है।
बाछा बैल
Posted on 25 Mar, 2010 11:48 AM
बाछा बैल, बहुरिया जोय,
ना घर रहै न खेती होय।


भावार्थ- जो किसान नये बछड़ो को बैल बनाकर खेती करता है और जिसकी पत्नी नई-नवेली हो, तो न तो उस किसान की खेती अच्छी हो पाती है और न ही वह घर संभल पाता है।

बनिया क सखरज
Posted on 25 Mar, 2010 11:46 AM
बनिया क सखरज, ठकुर क हीन, वैद क पूत व्याधि नहिं चीन्ह।
पंडित क चुप चुप, बेसवा मइल, कहै घाघ पाँचों घर गइल।।


शब्दार्थ- सखरज-उदार।
बिन बैलन खेती करै
Posted on 25 Mar, 2010 11:44 AM
बिन बैलन खेती करै, बिन भैयन के रार।
बिन मेहरारू घर करै, चौदह साख लबार।।


शब्दार्थ- साख-पीढ़ी या पुश्त।

भावार्थ- घाघ कहते हैं कि जो गृहस्थ यह कहता है कि मैं बिना बैलों के खेती करता हूँ; बिना भाइयों की सहायता के दूसरों से झगड़ा करता हूँ और बिना स्त्री के गृहस्थी चलाता हूँ, वह चौदह पुश्तों का झूठा होता है।

बैल चौंकना जोत में
Posted on 25 Mar, 2010 11:42 AM
बैल चौंकना जोत में, औ चमकीली नार।
ये बैरी हैं जान के, कुसल करैं करतार।।


भावार्थ- वह बैल जो हल जोतते समय चौंकता हो और वह स्त्री जो अधिक चमक-दमक कर चलती हो, ये दोनों जान के दुश्मन हैं, जिसके घर में ये दोनों हो, उसकी रक्षा ईश्वर ही करे।

बाध, बिया, बेकहल
Posted on 25 Mar, 2010 11:38 AM
बाध, बिया, बेकहल, बनिक, बारी, बेटा, बैल।
ब्यौहार, बढ़ई, बन बबुर, बात सुनो यह छैल।।

जो बकार बारह बसैं, सो पूरन गिरहस्त।
औरन को सुख दे सदा, आप रहै अलमस्त।।


शब्दार्थ- बाध-चारपाई बुनने के लिए मूँज की बड़ी पतली रस्सी। बेकहल-पटुए या सन की छाल। बारी-बगीचा। ब्योहार-उधार या सूद पर पैसा देने वाला। बन-कपास।
बैल तरकना टूटी नाव
Posted on 25 Mar, 2010 11:36 AM
बैल तरकना टूटी नाव।
ये काहू दिन दैहें दाँव।।


शब्दार्थ- तरकना-भड़कने वाला।

भावार्थ- भड़क जाने वाला बैल और टूटी हुई नाव कभी भी धोखा दे सकती है।

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