पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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छत्तीसगढ़ी बोली में पानी पर काव्य रचनाएं
Posted on 20 Jan, 2012 04:57 PM डॉ. पीसी लाल यादव द्वारा रचित “पानी” कविता छत्तीसगढ़ बोली में पानी के विभिन्न रंगों को उकेरती है। आज हमारे जीवन में पानी का कितना महत्व है तथा हमारे पूर्वज कैसे तालाब, कुआं, ताल तलैया आदि खुदवा कर पानी को संरक्षित करते थे आदि इस कविता में बहुत सरल तरीके से बताया गया है। कविता हमें यह भी बताती है कि अपने शहर गांव में रेनवाटर हार्वेस्टिंग, तालाब, कुआं आदि का निर्माण कर पानी को संरक्षित करें।
शौचालय के विकल्प
Posted on 03 Jan, 2012 01:00 PM वर्तमान में सेनिटेशन अपने आप में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। लाखों लोगों को सेनिटेशन की बेसिक सुविधाए तक उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं जिसके चलते हवा-पानी और पर्यावरण सब कुछ प्रदूषित हो रहा है। स्थानीय जरूरतों के अनुसार कम से कम लागत में शौचालय कैसे बनाएं यही बताने का प्रयास प्रस्तुत पुस्तिका में किया गया है.....
शौचालय के विकल्प
आज भी खरे हैं तालाब (मराठी)
Posted on 04 Nov, 2011 04:50 PM

आज भी खरे हैं तालाब (मराठी)अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।

भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं। अनुपम जी का यह कार्य, देश भर में काली छाया की तरह फ़ैल रहे भीषण जलसंकट से निपटने और समस्या को अच्छी तरह समझने में एक “गाइड” का काम करता है। अनुपम जी ने पर्यावरण और जल-प्रबन्धन के क्षेत्र में वर्षों तक काम किया है और वर्तमान में वे गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के साथ कार्य कर रहे हैं। उनकी पुस्तकें, खासकर “आज भी खरे हैं तालाब” तथा “राजस्थान की रजत बूंदें”, पानी के विषय पर प्रकाशित पुस्तकों में मील के पत्थर के समान हैं, और आज भी इन पुस्तकों की विषयवस्तु से कई समाजसेवियों, वाटर हार्वेस्टिंग के इच्छुकों और जल तकनीकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा और सहायता मिलती

आज भी खरे हैं तालाब (मराठी)
તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)
Posted on 25 Oct, 2011 04:34 PM તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)તેમના પુસ્તક 'તળાવ ઉપર હજુ પણ છે' ભારત તરફ, શ્રી અનુપમ જી તળાવો, પાણી - પાક સિસ્ટમો, પાણી - ઘણા ભવ્ય પરંપરા ની સમજણ વ્યવસ્થા તળાવો, અને પાણી, તત્વજ્ઞાન અને સંશોધન દસ્તાવેજીકૃત છે.

ભારત પરંપરાગત જળાશયોમાં, આજે ગામો અને નગરો હજારો જીવાદોરી સમાન છે. આઅનન્ય જીવંત ક્રિયા છે, જે સમગ્ર દેશમાં ફેલાય શેડો જેવા ગંભીર જળ કટોકટી સાથે વ્યવહારકરવામાં આવે છે અને સમસ્યાને 'માર્ગદર્શન' કામ કરે છે સમજો. અનન્ય વસવાટ કરો છોપર્યાવરણ અને પાણી - વર્ષ માટે વ્યવસ્થાપન ક્ષેત્રમાં કામ કર્યું છે અને હાલમાં ગાંધી પીસફાઉન્ડેશન, નવી દિલ્હી સાથે કામ કરે છે. તેમના પુસ્તકો, ખાસ કરીને અને 'સિલ્વરટચરાજસ્થાનના ટીપાં' માં, લક્ષ્યો પાણી વિષય પર પ્રકાશિત
તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)
آج آج بھی کھرے ہیں تالاب आज भी खरे हैं तालाब उर्दू
Posted on 04 Oct, 2011 12:00 PM

آج بھی کھرے ہیں تالابآج بھی کھرے ہیں تالاباپنی کتاب 'آج بھی کھرے ہیں تالاب' میں جناب انوپم مشر صاحب نےپورے ہندوستان کے تالابوں، ماضی میںپانی محفوظ کرینےکےطریقوں،پانی کے بیہترانتظام،جھیلوں،تالابوں اورپانی کی کئی شاندار روایات کی سمجھ ، فلسفہ اور تحقیق کواس کتاب میں انتہاءی سلیقے اور آسان زبان میں تحقیق کے ساتھ درج کیا ہے۔

ہندوستان میں پانی کی حفاظت کے یہ روایتی طریقے،آج بھی ہزاروں گاؤں اور قصبوں کے لئے لایف لاین کے مساوی ہیں.انوپم جی کا یہ کام ، ملک بھر میں سیاہ سایہ کی طرح پھیل رہی پانی کی شدید قلت سے نمٹنے اور مسائل کو اچھی طرح سمجھنے میں ایک 'گائیڈ' کا کام کرتا ہے.انوپم جی نے ماحولیات اورواٹر منیجمینٹ کے میدان میں برسوں تک کام کیا ہے، فی الحال وہ گاندھی امن فاؤنڈیشن ، نئی دہلی کے ساتھ کام کر رہے ہیں. ان کی کتابیں ، خاص طور پر 'آج بھی کھرے ہیں تالاب' اور 'راجستھان کی نقرئی بوندیں' ، پانی کے موضوع پر شائع کتابوں میں میل کے پتھر کی مانند ہیں ، آج بھی ان کتابوں کے مندرجات سماجی کارکُنوں، واٹر هاروےسٹنگ میں دلچسپی

urdu cover aaj bhi khare hain talab
ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬ
Posted on 02 Oct, 2011 01:47 PM


आज भी खरे हैं तालाब (पंजाबी)

ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ “ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬ” ਵਿੱਚ ਸ਼੍ਰੀ ਅਨੁਪਮ ਜੀ ਨੇ ਸਮੁੱਚੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਤਾਲਾਬੋਂ , ਪਾਣੀ - ਇਕੱਤਰੀਕਰਨ ਪੱਧਤੀਯੋਂ , ਪਾਣੀ - ਪ੍ਰਬੰਧਨ , ਝੀਲਾਂ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਅਨੇਕ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੀ ਸੱਮਝ , ਦਰਸ਼ਨ ਅਤੇ ਜਾਂਚ ਨੂੰ ਲਿਪਿਬੱਧ ਕੀਤਾ ਹੈ ।

ਭਾਰਤ ਦੀ ਇਹ ਹਿਕਾਇਤੀ ਪਾਣੀ ਸੰਰਚਨਾਵਾਂ , ਅੱਜ ਵੀ ਹਜਾਰਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਅਤੇ ਕਸਬੀਆਂ ਲਈ ਜੀਵਨਰੇਖਾ ਦੇ ਸਮਾਨ ਹਨ । ਅਨੁਪਮ ਜੀ ਦਾ ਇਹ ਕਾਰਜ , ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕਾਲੀ ਛਾਇਆ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫੈਲ ਰਹੇ ਭੀਸ਼ਨ ਜਲਸੰਕਟ ਵਲੋਂ ਨਿੱਬੜਨ ਅਤੇ ਸਮੱਸਿਆ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੱਮਝਣ ਵਿੱਚ ਇੱਕ “ਗਾਇਡ” ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਅਨੁਪਮ ਜੀ ਨੇ ਪਰਿਆਵਰਣ ਅਤੇ ਪਾਣੀ - ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਸਾਲਾਂ ਤੱਕ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਵਰਤਮਾਨ ਵਿੱਚ ਉਹ ਗਾਂਧੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਠਾਨ , ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਨਾਲ ਕਾਰਜ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਿਤਾਬਾਂ , ਖਾਸਕਰ “ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬ” ਅਤੇ “ਰਾਜਸਥਾਨ ਦੀ ਰਜਤ ਬੂੰਦਾਂ” , ਪਾਣੀ ਦੇ ਵਿਸ਼ਾ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਕਿਤਾਬਾਂ ਵਿੱਚ ਮੀਲ ਦੇ ਪੱਥਰ ਦੇ ਸਮਾਨ ਹੈ ,

आज भी खरे हैं तालाब (पंजाबी)
झेलम घाटी में
Posted on 28 Sep, 2011 04:23 PM
“गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन सन्निधं कुरू।।”

खेजड़ी का पेड़
Posted on 16 Sep, 2011 11:55 AM

जहां रूठ गया पानी
जहां उखड़ गए पेड़ों के पांव,
जहां चंद बूंदों की भीख को
रोते सूख गए पौधे।
वहां जम गया
रम गया
अकेला खेजड़ी।

खेजड़ी में देखता है मरुथल
कि कैसे होते हैं पेड़।
कितनी मीठी होती है छांव,
ठन्डे पत्ते और नर्म स्पर्श
और उनसे फूटती हवा।
क्या होता है,
जलते-तपते में वीरान में जीना।

जल ही जीवन है
Posted on 16 Sep, 2011 11:35 AM गगन समीर अनल जल धरनी,
यह सृष्टि इन तत्वों की करनी।
दो तिहाई तन में है जल,
इससे ही सब पातें है बल।

वैंकट जल से पृथ्वी लाए,
जिससे हम नवजीवन पाए।
जल मंथन से अमृत पाया,
इसको कहते हरि की माया।

जल का पूजन हम हैं करते,
सब पापों को जो हैं हरते।
जल ही जीवन का आधार,
जिस पर हो रहे अत्याचार।

उसकी रक्षा का हम पर भार,
बिन पानी सब सून
Posted on 23 Aug, 2011 10:36 AM

'यहां तक आते-आते कई नदियां सूख जाती हैं, हमें मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा, कवि ने राजनैतिक भेदभाव की तुलना नदियों से कर डाली। ठहरा हुआ पानी सड़ती हुई व्यवस्था का प्रतीक है। जल हमें ताजगी देता है, हमें साफ रखता है तथा सदियों से हमारी प्यास बुझाता आ रहा है। यही जल एक जगह ठहर जाए तो सड़ने लगता है। जल परिवर्तन का दूसरा रूप है।' आदमी ने समूचे सौरमंडल को खंगाल डाला, उसे कहीं जल की छोटी-सी धारा न

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