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सफलता की कहानियां और केस स्टडी
माओवाद नहीं मणिग्राम को भी देखिए
Posted on 29 Sep, 2008 10:40 AMअमन नम्र
आजकल हम नेपाल की चर्चा सिर्फ माओवाद के संदर्भ में ही करते हैं. लेकिन नेपाल की तराई में बसे मणिग्राम दूसरे कारणों से हमें अपनी ओर बरबस आकर्षित करता है.
मैं अपनी नेपाल यात्रा के दौरान हुए ऐसे अनुभव को बांटना चाहता हूं जो समस्या पर बात करने से ज्यादा समस्या के समाधान के मौके तलाशने का अवसर देता है। हमारे यहां पानी के बंटवारे को लेकर अक्सर नल-टंटों से लेकर गांव-शहरों और राज्यों के बीच तक झगड़े होते रहते हैं। कई बार तो गली-मोहल्लों या खेतों में इसी वजह से लोगों की जान भी चली जाती है। लेकिन हमारे पड़ोसी देश नेपाल में पानी के बंटवारे को लेकर पिछले डेढ़ सौ सालों से एक ऐसी परंपरा चली आ रही है
जब पूरा गांव ही बन गया भगीरथ
Posted on 23 Sep, 2008 04:54 PMसामूहिक प्रयास कैसे बियाबान में फूल खिला सकते हैं, यह देखना है तो आपको एक बार कन्नौज के उदैतापुर गांव जाना पड़ेगा। राजा भगीरथ गंगा को धरती पर लाए, तो उनका प्रयास मुहावरा बन गया। अब पूरे गांव ने मिलकर पानी का संकट दूर किया, टंकी खड़ी की और घरों तक पाइपलाइन डाल दी। वह भी सरकार से एक पैसा लिये बिना। छोटा-सा यह गांव उन लोगों को रोशनी दिखाता है, जो खुद कुछ करने के बजाय भगवान या सरकार भरोसे बैठे रहते
क्लिनिक, जो सुधारेगा धरती की सेहत
Posted on 22 Sep, 2008 11:09 AMएनबीटीः ऐसे दौर में जबकि प्रदूषण, ग्लोबल वॉर्मिन्ग और दूसरी समस्याएं हमारे लिए परेशानी का सबब बनती जा रही हैं, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में एक इन्वाइरन्मंट हेल्थ क्लिनिक खोला गया है। इस क्लिनिक में आप अपने आसपास और पर्यावरण से जुड़ी किसी भी समस्या पर बात कर सकते हैं और उसके लिए समाधान भी मांग सकते हैं। और तो और आपको मिलने वाले सुझाव भी उसी तर्ज और उतने ही अहम होंगे, जितने कि डॉक्टर से मिली दवा।भारत-बंग्लादेश समस्या जैसी जल समस्या
Posted on 21 Sep, 2008 05:44 PMखीरी संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधि, समाजवादी पार्टी के सांसद देश के सुलझे हुये विचारवान सांसदों में से हैं। वे नेपाल की नदियों से होने वाले संभावित खतरे के प्रति न सिर्फ सतर्क हैं बल्कि संसद को भी आगाह करते रहे हैं। उनके नजरिये से भारत के पाकिस्तान समस्या मूलत: जल समस्या है।
बिहार की बाढ़
Posted on 21 Sep, 2008 05:20 PMबाढ़ से पूर्ण मुक्ति के लिये ''नदी मुक्ति आंदोलन'' शुरु किया है, परंतु राजनेता व तटबंध ठेकेदारों द्वारा निरंतर रोढ़े डाले जाने की वजह से यह बहुत अधिक सफल नहीं हो पाया है। नदी मुक्ति आंदोलन सभी तटबंधों को हटाने व नदी को 1954 पूर्व की अवस्था पर लाने की माँग करता है। हम शोधकर्ता, नीति निर्माता व सरकार को इस मुद्दे से अवगत कराते हैं और आम जनता को शिक्षित करते हैं कि तटबंध बाढ़ समस्या का समाधान नहीं
भागीदारी से हल हुई पानी की समस्या
Posted on 14 Sep, 2008 06:54 PMगुजरात के सुप्रसिद्ध लोक साहित्यकार स्वर्गीय झवेरचंद मेघाणी ने आजादी के कुछ ही वर्ष पूर्व सौराष्ट्र की लोक कथाओं में अनेक नदियों में आई बाढ़ का उल्लेख किया है। आज वही सौराष्ट्र पिछले कुछ समय से अकाल ग्रस्त और सूखा ग्रस्त क्षेत्र घोषित होने लगा है। आजादी के 50 वर्ष में ही गुजरात की छोटी-बड़ी सभी नदियां सूख गईं और कृषि प्रधान गुजरात अब सूखाग्रस्त गुजरात बन गया। कभी 'सागर' के नाम से प्रसिध्द माही
इस्राइल के जल प्रबंधन पर केसस्टडीज
Posted on 14 Sep, 2008 03:28 PMपानी की स्थिति /मध्य पूर्व के देशों को पानी के मामले में दो भागों में बांटा जा सकता है। एक तरफ वे देश हैं, जिनके पास जरूरत से ज्यादा पानी है। मसलन तुर्की, इरान और लेबनान। दूसरी तरफ वे देश हैं, जिनके यहां पानी की कमी है। जैसे जॉर्डन और इस्राइल के साथ–साथ फिलीस्तीनी अथॉरिटी। चूंकि इज़राइल में तेजी से शहरीकरण हो रहा है, सो यहां के प्राकृतिक जल संसाधनों का जोरदार दोहन किया जा रहा हैं। शहरीकर
विनाश के मुहाने पर दुनिया
Posted on 11 Sep, 2008 05:53 PMबान की मून/ हम सभी आज सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन वास्तव में हो रहा है और हम ही इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। इसके बावजूद चंद लोग ही इस खतरे की गंभीरता को समझ पा रहे हैं। मैं भी इसे गंभीरता से नहीं लेता था। आंखें खोल देने वाले `इको टूर' के बाद मैंने इस खतरे की भयावहता को समझा। यूं मैंने ग्लोबल वार्मिंग को हमेशा ही सर्वोच्च् प्राथमिकता दी है, लेकिन अब तो मैं मानता हूं कि हम विनाश
तालाबों ने किया सिंगारी गांव का कायाकल्प
Posted on 11 Sep, 2008 05:21 PMसुधीर पाल, भारतीय पक्ष/उन्हें नहीं पता कि देशभर की नदियों को जोड़ने की योजना बनाई जा चुकी है। इस योजना से होने वाले नफा-नुकसान से भी उनका कोई सरोकार नहीं है। उनके पास तो नदियां हैं ही नहीं, बस तालाब हैं और वे इसे ही जोड़ने की योजना पर काम कर रहे हैं। तालाबों को जोड़ने के लिए उनके पास श्रम की पूंजी है और नतीजे के रूप से चारों ओर लहलहाती फसल। यही वजह है कि झारखंड के इस गांव में अब कोई प्या