पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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‘जल’ की नित्यता पर विचार
Posted on 23 Jan, 2010 03:39 PM


पुराणों में ‘जल’के सम्बन्ध मे, उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में या उसकी ‘नित्यता’ (सदैव विद्यमान रहने) के सम्बन्ध में निम्नलिखित अवधारणाएँ दी हुई हैं, जो अनेक परस्पर विरोधी विचारों या शंकाओं को जन्म देती हैं। इनका क्या रहस्य है? क्या ये मिथ्या कल्पनाएँ हैं? इन पर विचार किया जाना आवश्यक है-

पञ्चम सूक्त
Posted on 23 Jan, 2010 03:34 PM

पञ्चम सूक्त


अपांभेषज (जल चिकित्सा), मन्त्रदृष्टा – सिन्धु द्वीप ऋषि। देवता – अपांनपात्, सोम, और आपः। छन्दः 1-2-3 गायत्री, 4 वर्धमान गायत्री।
मन्त्र
आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन।
महे रणाय चक्षसे।।1।।

हे आपः। आप प्राणीमात्र को सुख देने वाले हैं। सुखोपभोग एवं संसार में रमण करते हुए, हमें उत्तम दृष्टि की प्राप्ति हेतु पुष्ट करें।

अथर्ववेद
Posted on 23 Jan, 2010 10:15 AM

‘अथर्ववेद’ में ‘आपो देवता’ से सम्बन्धित तीन सूक्त हैं। ये तीनों सूक्त ‘अपां भेषज’ अर्थात् जल चिकित्सा से सम्बन्ध रखते हैं। पाठकों के लाभार्थ उक्त तीनों सूक्त प्रस्तुत हैं-अथर्ववेद प्रथम काण्ड/चतुर्थ सूक्तमंत्रदृष्टाः सिंधुद्वीप ऋषि। देवताः अपांनपात्-सोम-और ‘आपः’। छन्दः 1-2-3 गायत्री, 4 पुरस्तातबृहती। मन्त्रअम्बयो यन्त्यध्वमिर्जामयो अध्वरीयताम्।
पृञ्चतीर्मधुना पयः।।1।।

सामवेद में आपो देवता
Posted on 22 Jan, 2010 01:45 PM

‘सामदेव’ में ‘आपो देवता’ से सम्बधित केवल तीन ‘साम’ (सामवेदीय मंत्र) उपलब्ध हैं। इन ‘सामों’ के मंत्रदृष्टा ऋषिः त्रिशिरात्वाष्ट्र अथवा सिन्धु द्वीप आम्बरीष हैं। इनका छन्दः गायत्री है। ये ‘साम’ उत्तरार्चिक के बीसवें अध्याय के सप्तम खण्ड में है। किन्तु ‘अथर्ववेद’ (1-सू-5) में भी उपलब्ध है।

(1837) आपो ही ष्ठा मयो भुवस्ता न ऊर्जे दधातन।
महे रणाय चक्षसे।।4।।

यजुर्वेद में आपो देवता
Posted on 22 Jan, 2010 01:42 PM

यजुर्वेद संहिता के दूसरे अध्याय के मन्त्र 34 – ‘आपो देवता’ के ऋषि प्रजापति और छन्दः भुरिक् उष्णिक् है।

मन्त्रः
(65) ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिस्त्रुतम्।
स्वधा स्थ तर्पयत मे पितृन।।34।।

यजुर्वेद संहिता में ‘आपो देवता’
Posted on 22 Jan, 2010 01:34 PM

(यजुर्वेद संहिता प्रथमोSध्यायः) मन्त्रदृष्टा ऋषिः – परमेष्ठी प्रजापति देवता – लिंगोक्त आपः (12) छन्दः – भुरिक् अत्यष्टि।

मन्त्रः
(12)पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसवः उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
देवीरापो अग्रेगुवो अग्रेपुवो ग्रS इममद्य यज्ञं नयताग्रे यज्ञपति सुधातुं यज्ञपतिं देवयुवम्।।2।।

वेदों में जल-सूक्त
Posted on 19 Jan, 2010 09:59 AM सभी जानते हैं कि ‘वेद’ मानव जाति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। इनकी भाषा और छन्द भी कल्पनातीत-पुरातन है। वैदिक मन्त्रदृष्टा ऋषियों ने ‘जल’ का किस रूप में अनुभव किया और उसके मन्त्रों का किन-किन कार्यों में ‘विनियोग’ किया – यह जाने बिना हमारा जल सम्बन्धी-ज्ञान अपूर्ण रहेगा। अतः पाठकों के लाभार्थ वेदों से संकलित कुछ जल-सम्बंधी-मन्त्र दिये जा रहे हैं जिन्हें ‘आपो देवता-सूक्त’ के नाम से जाना जाता है।
जल की उत्पत्ति
Posted on 18 Jan, 2010 06:00 PM ‘जल’ की उत्पत्ति कैसे हुई? इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें ‘पुराणों’ का मंथन करना पड़ेगा। पुराणों का इसलिए क्योंकि ‘पुराण’ ही वे ग्रन्थ हैं जिनमें जगत् की सृष्टि-विषयक प्रश्न पर विशद रूप से विचार किया गया है। लगभग सभी पुराण इस मत पर स्थिर हैं कि जगत् की सृष्टि इस क्रम में हुई है-

(1) प्रधान (प्रकृति) और पुरुष के संयोग के कारण सर्वप्रथम ‘महत्तत्त्व’ उत्पन्न हुआ।
जल के पर्यायवाची
Posted on 18 Jan, 2010 05:44 PM वेदों में प्रयुक्त ‘पद-समूह’ (सार्थक शब्दों के समुच्चय) का प्राचीन संग्रह ‘निघण्टु’ कहलाता है। इस ‘निघण्टु’ के प्रथम अध्याय में जल के पूरे एक सौ पर्यायवाची दिए गए हैं। अर्थात् चारों वेदों में इन शब्दों का जल के अर्थ में प्रयोग हुआ है-
जल की भारतीय अवधारणा
Posted on 18 Jan, 2010 05:41 PM ‘जल’ का सामान्य अर्थ पानीय अथवा पानी है। वह पानी जिसे पीकर हम अपनी प्यास बुझाते हैं। जिसके द्वारा हम नहाते और अपने कपड़े धोते हैं। जिसके द्वारा हम अपने दूषित-अंगों को स्वच्छ करते हैं। जिसके द्वारा अपने बर्तन साफ करते हैं। जिसके द्वारा हम अपने घर के पेड़-पौधों की सिंचाई करते हैं। जिसके द्वारा हम जल में घुलनशील पदार्थों का पतला या तरल करते हैं। जिसकी हमारे शरीर में कमी हो जाने पर हम ‘डिहाइड्रेशन’ के
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