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घोषणापत्रों का अन्वेषण
Posted on 26 Apr, 2014 12:32 PM प्रत्येक दल ने जलसंवर्धन को लेकर विकेंद्रीयकरण की बात कही है, लेकिन किसी ने भी यह नहीं कहा है कि इसे महाकाय परियोजनाओं की बनिस्बत प्राथमिकता दी जाएगी। सभी घोषणापत्रों में रिन्युवेबल ऊर्जा की बात की गई है। आप के घोषणापत्र में इस तरह स्रोतो को स्थानीय हाथों में सौंपने की बात है। सभी निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं। लेकिन बढ़ते शर्मनाक उपभोक्तावाद, खासकर अमीरों द्वारा एवं अनैतिक विज्ञापन पर सभी मौन हैं। किसी ने भी यह उल्लेख नहीं किया है कि खतरनाक प्लास्टिक और इलेक्ट्रानिक अपशिष्ट से कैसे मुक्ति पाई जाएगी। चुनावी घोषणापत्र इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सत्ता में आने पर राजनीतिक दल क्या करना चाहते हैं। यह जरूरी नहीं है कि सत्ता में आने पर वे इस पर अमल करें, लेकिन इससे दल की मनस्थिति का भान होता है कि किस तरह जनता के हितों की रक्षा की जाएगी। इस लिहाज से आम आदमी पार्टी का घोषणापत्र कांग्रेस और भाजपा से कहीं आगे है, वैसे इसके कई बिंदुओं से निराशा भी होती है। इस वक्त भारत के सामने तीन प्रमुख चुनौतियां हैं, जिम्मेदार एवं जवाबदेह राजनीतिक शासन को हासिल करना, आर्थिक और सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करना (विशेषकर ऐसे व्यापक वर्ग हेतु जो कि अभी भी गरीब है) और बिना पारिस्थितिकीय विध्वंस किए जीवन को जीने लायक बनाना। विकास के कई दशक पुराने मॉडल जिसमें कि पिछले दो दशकों का वैश्विक संस्करण भी शामिल है, इसे प्राप्त नहीं कर पाया है और इसने भारत को कमजोर ही किया है।

शासन के स्तर पर भ्रष्टाचार एवं सार्वजनिक क्षेत्र में अकर्मण्यता अभी भी व्याप्त है, लोगों को सशक्त बनाने वाली स्वशासी संस्थाएं
भूजल के गिरते स्तर पर पार्टियां खामोश
Posted on 25 Apr, 2014 03:34 PM गांवों से तालाबों, कुओं, झीलों और बावड़ियों के खत्म होने या सरकारी
चुनावों में नदियों का मुद्दा नदारद है
Posted on 25 Apr, 2014 03:26 PM अपने अस्तित्व के लिए जूझती छोटी-बड़ी नदियां तमाम कोशिशों के बावजूद चुनावी मुद्दा नहीं बन सकी हैं। नदियों की निर्मलता और अविरलता का दावा करने वाले वे लोग भी नदारद हैं, जो समय-समय पर खुद को भगीरथ बताते हुए अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करते हैं। नदियों की सुरक्षा के लिए उसकी जमीन को चिन्हित करने, रीवर-सीवर को अलग रखने, अविरल प्रवाह सुनिश्चित करने, अवैध उत्खनन और अतिक्रमण को लेकर किसी भी ठोस योजना का उल्लेख न करने पर कोई सवाल नहीं उठ रहे हैं। कुछ ही पार्टियों ने जीवनरेखा कही जाने वाली नदियों को अपने घोषणापत्रों में जिक्र करके कर्तव्य की इतिश्री की और कुछ ने इतना करने की जरूरत भी नहीं समझी है। कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों ने भले ही अपने घोषणापत्रों में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और नदियों को जोड़ने की बात कही है लेकिन किसी ने भी नदियों के पुनर्जीवन की कारगर रणनीति का विस्तार से उल्लेख करना जरूरी नहीं समझा है।

इन दोनों बड़ी पार्टियों के नेता भी नदियों के प्रदूषण पर चुनावी मंच से बोलना उचित नहीं समझ रहे हैं। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के सदस्य बी.डी. त्रिपाठी के मुताबिक, नदियों के प्रदूषण का मसला एक वोट बैंक में तब्दील नहीं हो सका है, इसलिए कोई बई राजनीतिक दल इसे प्रमुखता से अपने घोषणापत्र में जगह नहीं देना चाहता है। 1986 में बनारस के राजेंद्र प्रसाद घाट पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण का उद्घाटन किया था।
जल के बिना जीवन असंभव
Posted on 17 Apr, 2014 03:11 PM

जल प्रदूषण की बढ़ती मात्रा भविष्य में उत्पन्न होने वाल खतरे की घंटी साबित हो सकती है। आज

जल चिकित्सा एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति
Posted on 17 Apr, 2014 01:26 PM
संसार में जितनी भी चिकित्सा पद्धतियां हैं उनमें जल चिकित्सा स
जल संरक्षण
Posted on 16 Apr, 2014 03:08 PM संसार में उपलब्ध जल की मात्रा का मात्र 3 प्रतिशत ही पीने योग्य है त
जल संरक्षण गतिविधियां 2013
Posted on 16 Apr, 2014 02:49 PM जल संसाधन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जल संरक्षण संबंधी सूचना, शिक्षा एवं प्रसार हेतु वर्ष 2013 को जल संरक्षण वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। मध्य प्रदेश में जल संरक्षण कार्यों हेतु नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को नोडल एजेंसी बनाया है। अन्य केंद्रीय सरकार के कार्यालय केंद्रीय जल आयोग, राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी तथा वॉपकोस आदि सहयोगी संस्थान है।
पानी से रिश्ता
Posted on 15 Apr, 2014 11:15 AM

हमारे प्रतिदिन के जीवन में जल की महत्ता को भारतीय संस्कृति में अलग नजरिए से देखा है। जल क

रिश्तों पर सवा सेर पानी
Posted on 15 Apr, 2014 11:05 AM
प्रकृति ने दिल खोलकर, उदारतापूर्वक हमें पानी का वरदान दिया है
चण्डीप्रसाद भट्ट को अंतरराष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार
Posted on 12 Apr, 2014 01:26 PM प्रख्यात समाजसेवी और पर्यावरण्विद् श्री चण्डीप्रसाद भट्ट (81 वर्षीय) को वर्ष 2013 के अंतरराष्ट्रीय गांधी शान्ति पुरस्कार के लिए चुना गया है। श्री भट्ट चिपको आंदोलन के प्रणेता तथा सामाजिक सुधार के विभिन्न आंदोलन के अगुआ रहे हैं तथा पिछले पांच दशकों से उत्तरांचल के चमोली जिले में वनों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के कार्यों में अविरल रूप से जुटे हुए हैं।
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