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मानसून की भविष्यवाणी और उसकी विविध आयामी हकीकत
Posted on 22 Jun, 2015 01:30 PM


भारतीय मौसम विभाग का अनुमान है कि सन् 2015 में भारत में सामान्य से लगभग 12 प्रतिशत पानी कम बरसेगा। मानसून की कमी का असर खेती पर होगा और उसका प्रतिकूल असर अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलेगा। मानसून की कमी की सम्भावना को ध्यान में रख सरकार द्वारा आवश्यक इन्तज़ाम किये जा रहे हैं। जहाँ तक खाद्यान्नों का प्रश्न है तो देश में अनाज का पर्याप्त भण्डार उपलब्ध है इसलिये नागरिकों द्वारा अन्न की कमी महसूस नहीं की जाएगी।

मौसम विभाग द्वारा लम्बी अवधि की सालाना बरसात की मात्रा के आधार पर औसत वर्षा का निर्धारण किया जाता है। इसे सामान्य (Normal) वर्षा कहते हैं। आधुनिक युग में मौसम विभाग द्वारा हर साल वर्षा का पूर्वानुमान घोषित किया जाता है। बरसात के दिनों में वर्षा की दैनिक स्थिति की सम्भावना पर बुलेटिन जारी की जाती है।

मानसून
शिक्षा: कितना सर्जन, कितना विसर्जन
Posted on 10 Jan, 2015 01:27 PM
.कोई एक सौ पचासी बरस पहले की बात है। सन् 1829 की। कोलकाता के शोभाबाजार नाम की एक जगह में एक पाठशाला क
forest
नदीजोड़ के मुद्दे पर बिहार मुख्यमन्त्री जीतनराम मांझी का पत्र प्रधानमन्त्री को
Posted on 03 Jan, 2015 11:57 AM 6 नवम्बर 2014
श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी
. आप अवगत् हैं कि बिहार राज्य के 81 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण, एक तरफ राज्य का उत्तरी भाग देश का सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र है और प्रत्येक बर्ष बाढ़ की चपेट में रहता है, तो वहीं दक्षिणी भाग सूखा की मार से त्रस्त रहता है। बिहार में कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 6880 लाख हेक्टेयर है जो भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 73 प्रतिशत तथा देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र (400 लाख हेक्टेयर) का (17.20 प्रतिशत है। उत्तर बिहार के सभी प्रमुख नदियों (बुढ़ी गण्डक का छोड़कर) का उद्गम स्थल नेपाल एवं तिब्बत में स्थित है तथा इन नदियों का तीन चौथई जलग्रहण क्षेत्र नेपाल एवं तिब्बत में ही पड़ता है। बाढ़ के शमन हेतु दीर्घकालीन स्थायी निदान के उपाय में अन्तरराष्ट्रीय पहलू निहित है क्योंकि बाढ़ शमन हेतु जलाशय का निर्माण नेपाल में ही सम्भव है। सूखा प्रवण दक्षिण बिहार क्षेत्र में सिंचाई उपलब्ध कराने एवं बाढ़ प्रवण उत्तर बिहार की जनता को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान
प्रभावित क्षेत्रों में काम करना किसी चुनौती से कम नहीं : उपराष्ट्रपति
Posted on 09 Dec, 2014 03:51 PM उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे दूर-दराज़ क्षेत्रों और झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम करना किसी चुनौती से कम नहीं है, ऐसी चुनौती को स्वीकार कर चरखा का कार्य सराहनीय है।
बातें सब की ठीक, पर खूँटा वहीं गड़ेगा
Posted on 26 Nov, 2014 01:36 PM 2015-16 जल संरक्षण वर्ष होगा। इस वर्ष के दौरान “हमारा जिला : हमारा जल’’ के नारे को लेकर जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्रालय, हर जिले में पहुंचेगा। भारत के प्रत्येक जिले में पानी की दृष्टि से एक संकटग्रस्त गांव को ‘जलग्राम’ के रूप में चुनकर जल संकट से मुक्त किया जाएगा। भारत जल सप्ताह के सालाना आयोजन की अगली तारीखें 13-17 जनवरी, 2015 तय की गईं हैं।

इन तारीखों तक मंत्रालय, जलग्राम की सूची तैयार कर लेगा। प्रत्येक जिले की जल संरचनाओं को चिन्हित करने का काम भी इन तारीखों तक पूरा हो जाएगा। मंत्रालय चाहता है कि भारत का कोई प्रखंड ऐसा न छूट जाए, जिसके बारे में यह ज्ञात न हो कि उसमें कितनी जल संरचना, कहां-कहां और किस स्थिति में हैं। इस समूची तैयारी के लिए जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारी, प्रधानमंत्री कार्यालय की रफ्तार में काम कर रहे हैं।
sant seechevaal ke mehanat se saaph huee nadee
नदियों को जोड़ने से सिंचाई सुविधाएं बढ़ेंगी : उमा भारती
Posted on 21 Nov, 2014 11:32 AM उमा भारती ने कहा कि पानी की कोई कमी नहीं है और बारिश के पानी के संच
कविता को कास के फूल जैसा होना चाहिए
Posted on 05 Oct, 2014 04:50 PM क्या कविता कास का वह फूल है, जो सपनों की तरह हर साल उगता है और झर ज
बाढ़ प्रकृति और जीवन का हिस्सा है : अनुपम मिश्र
Posted on 26 Sep, 2014 04:05 PM पर्यावरणविद् व लेखक अनुपम मिश्र से स्वतंत्र मिश्र की बातचीत पर आधारित साक्षात्कार

. बाढ़-सुखाड़ तो अब उद्योग के रूप में पहचाना जा रहा है। क्या कारण है कि इस पर नियंत्रण नहीं किया जा सका है?
यह एक कारण हो सकता है। कुछ लोगों को बाढ़ का इंतजार रहता है। यह बुरी बात है कि जिस कारण से हजारों लोगों की जान जाती है, उसी का इंतजार कुछ नेताओं में से और कुछ अधिकारियों में से लोगों को होता है। इसमें से कुछ समाजसेवी भी हो सकते हैं। उनको अपने एक-दो मकान बनाने के लिए लाखों के घर उजड़ जाने का इंतजार रहता है। यह बहुत शर्म की बात है।

आप जिलाधिकारियों एवं राज्य के अधिकारियों को बाढ़ की पूर्व तैयारी के बाबत कुछ सलाह देना चाहते हैं? वे सलाह क्या हैं?
यह बहुत ही अनौपचारिक है। मेरे मन में यह है कि इन लोगों से कोई संस्था बात कर पाती। अप्रैल, मई, जून में ऐसी योजना बना पाते ताकि खाद्य सामग्री को सस्ते वाहनों से पहुंचाया जा सकता। उनके लिए हेलिकॉप्टर जैसे मंहगे वाहन इस्तेमाल नहीं किए जाते। पिछले साल बिहार में दो करोड़ की पूरी और आलू 52 करोड़ रुपए खर्च करके हेलिकॉप्टर से लोगों तक पहुंचाए गए थे। इस तरह की बेवकूफी का क्या मतलब है? क्या आप हजार नाविक इस काम के लिए तैयार नहीं कर सकते हैं?
Anupam Mishra
तालाबों के कब्रिस्तान पर बनी राजधानी रायपुर
Posted on 20 Sep, 2014 12:00 PM छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, ना कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और ना आंख में। लेकिन अलग राज्य बनते ही ताल-तलैयों की बलि चढ़ने लगी। कोई 181 तालाबों की मौजूदगी वाले शहर में अब बमुश्किल एक दर्जन तालाब बचे हैं और वे भी हांफ रहे हैं अपना अस्तित्व बचाने के लिए। वैसे यहां भी सुप्रीम कोर्ट आदेश दे चुकी है कि तालाबों को उनका समृद्ध अतीत लौटाया जाए, लेकिन लगता है कि वे गुमनामी की उन गलियों में खो चुके हैं जहां से लौटना नामुमकिन होता है। जुलाई के सावन में भी रायपुर में तापमान 40 डिग्री की तरफ लपक रहा है। एक आध बार पानी बरसा तो शहर लबालब हो गया, लेकिन अगली सुबह घरों के नल रीते ही रहे। पानी की किल्लत अब यहां पूरे साल ही रहती है। यहां के रविशंकर विश्वविद्यालय के प्रशासन ने परिसर और उससे सटे डीडी नगर, आमानाक, डडनिया में तेजी से नीचे जा रहे जल स्तर को बचाने के लिए बीस लाख रुपए की लागत से एक तालाब बनाने का फैसला ले लिया है।

चलो यह अच्छा है कि ज्ञान-विज्ञान, तकनीक से सज्जित आज के समाज को नए तालाब खोदने की अनिवार्यता याद तो आई, लेकिन यह याद नहीं आ रहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, ना कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और ना आंख में। लेकिन अलग राज्य क्या बना, शहर को बहुत से दफ्तर, घर, सड़क की जरूरत हुई और देखते-ही-देखते ताल-तलैयों की बलि चढ़ने लगी।
Pond of Raipur
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