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जैविक खेती की ओर बढ़ता रुझान
Posted on 05 Mar, 2018 03:32 PM
जैविक खेती तेजी से बढ़ता सेक्टर है। जैविक खेती उन क्षेत्रों के लिये सही विकल्
भूजल परिदृश्य, सोच और हकीकत
Posted on 04 Mar, 2018 06:19 PM

केन्द्रीय भूजल परिषद द्वारा हर साल भूजल पर वार्षिक पत्रिका प्रकाशित की जाती है। इस पत्रिका में भूजल से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारियों के साथ-साथ भूजल का प्राकृतिक पुनर्भरण, भूजल दोहन का मौजूदा प्रतिशत और भविष्य में खेती, पेयजल और उद्योगों में उपयोग में लाई जा सकने वाली सम्भावित मात्रा के आवंटन को दर्शाया जाता है।

Groundwater Scenario
नदियों के सूखने के कारण
Posted on 16 Feb, 2018 12:21 PM


बीसवीं सदी के पहले कालखण्ड तक भारत की अधिकांश नदियाँ बारहमासी थीं। हिमालय से निकलने वाली नदियों को बर्फ के पिघलने से अतिरिक्त पानी मिलता था। पानी की पूर्ति बनी रहती थी इस कारण उनके सूखने की गति अपेक्षाकृत कम थी। नदी के कछार के प्रतिकूल भूगोल तथा भूजल के कम रीचार्ज या विपरीत कुदरती परिस्थितियों के कारण, उस कालखण्ड में भी भारतीय प्रायद्वीप की कुछ छोटी-छोटी नदियाँ सूखती थीं। इस सब के बावजूद भारतीय नदियों का सूखना मुख्य धारा में नहीं था।

सूखती नदियाँ
प्रकृति के कायदों की अनदेखी करती खेती के परिणाम
Posted on 07 Jan, 2018 11:36 AM


भारत में कृषि पद्धति के दो अध्याय हैं- पहले अध्याय के अन्तर्गत आती है प्रकृति के कायदे-कानूनों को ध्यान में रखती परम्परागत खेती और दूसरे अध्याय में सम्मिलित है कुदरत के कायदे-कानूनों की अनदेखी करती परावलम्बी रासायनिक खर्चीली खेती। पहली खेती के बारे में बूँदों की संस्कृति (पेज 274) में उल्लेख है कि जब अंग्रेज भारत आये तो उन्होंने पाया कि यह जगह बहुत समृद्ध है, लोग सभ्य और शिक्षित हैं, कला, शिल्प और साहित्य का स्तर बहुत ऊँचा है।

भूजल दोहन
प्राकृतिक जलचक्र (Natural hydrologic cycle)
Posted on 21 Dec, 2017 10:14 AM


प्राकृतिक जलचक्र, पृथ्वी पर पानी की सतत यात्रा का लेखाजोखा है। अपनी यात्रा के दौरान वह समुद्र, वायुमण्डल और धरती से गुजरता है। पानी से भाप बनने की प्रक्रिया दर्शाती है कि वह चाहे जितना भी प्रदूषित हो, पर जब वह भाप में बदलता है तो पूरी तरह शुद्ध हो जाता है। वह जब धरती पर बरसता है तब भी शुद्ध रहता है। धरती पर उसकी शुद्धता खंडित होती है।

प्राकृतिक जलचक्र
वाटरशेड प्रबन्ध और पर्यावरणी खतरे (Watershed Management and Environmental Hazards)
Posted on 04 Dec, 2017 04:48 PM


प्राकृतिक घटकों के ह्रास से निजात पाने के लिये भारत में बहुत सारी योजनाओं पर काम हुआ है। उन योजनाओं के घोषित लक्ष्य और उपचारित इलाके भले ही अलग-अलग रहे हैं पर उन सबके अन्तर्गत किये जाने वाले कामों का केन्द्र बिन्दु मौटे तौर पर पानी और मिट्टी की बिगड़ती हालत को ठीक करना ही रहा है।

प्राकृतिक जलचक्र
पर्यावरणी प्रवाह - जीवन का अधिकार माँगती नदियाँ (Environmental flow- Rivers waiting for Rights of living entity)
Posted on 11 Nov, 2017 12:49 PM


न्यूनतम पर्यावरणी प्रवाह, प्रत्येक स्वस्थ नदी का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार, प्रकृति ने, नदी तंत्र को अपने कछार की साफ-सफाई और जलीय जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों के निरापद जीवन को आधार प्रदान करने के लिये सौंपा है। इस विशेषाधिकार के कारण कछार सहित नदी तंत्र में असंख्य जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों का जीवन पलता है और वह अपने कुदरती दायित्वों को बिना किसी रुकावट के पूरा करती है।

रावी नदी
टिकाऊ विकास के लिये नदी विज्ञान को समझना आवश्यक है
Posted on 18 Oct, 2017 01:52 PM


भारत की अधिकांश नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह में कमी अनुभव हो रही है। यह कमी हिमालय से निकलने वाली नदियों में थोड़ा कम तथा भारतीय प्रायद्वीप की नदियों में अधिक है। सूखे दिनों के प्रवाह में हो रही कमी को समग्रता में समझने के लिये नदी विज्ञान को जानना आवश्यक है। बायोडाइवर्सिटी की सुरक्षा के लिये उसे जानना आवश्यक है।

नदी
नदी परिचय - आइए नदी को जानें (Let's know the river)
Posted on 10 Oct, 2017 04:39 PM


प्रकृति द्वारा विकसित एवं लगातार परिमार्जित मार्ग पर बहते पानी की अविरल धारा ही नदी है। बरसात उसे जन्म देती है। वह सामान्यतः ग्लेशियर, पहाड़ अथवा झरने से निकलकर सागर अथवा झील में समा जाती है। इस यात्रा में उसे अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं। नदी और उसकी सहायक नदियाँ मिलकर नदी तंत्र बनाती है। जिस इलाके का सारा पानी नदी तंत्र को मिलता है, वह इलाका जल निकास घाटी (वाटरशेड) कहलाता है। नदी, जल निकास घाटी पर बरसे पानी को इकट्ठा करती है। उसे प्रवाह में शामिल कर आगे बढ़ती है। वही उसके पानी की समृद्धि का आधार होता है।

नदी
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