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सूरज की रोशनी दूर करेगी पानी की किल्लत
Posted on 10 Feb, 2011 03:10 PM अल्ट्रावायलेट किरणों का इस्तेमाल पानी को साफ करने के लिए वाटर-ट्रीटमेंट प्लांट्स में लंबे समय से किया जा रहा है। ऐसे में जब तक कि पानी इतना साफ न हो जाए कि वह अल्ट्रावायलेट किरणों को अवशोषित कर सके पानी को लैंप के सामने रखने से वायरस का डीएनए, बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। अगर पानी को साफ किए बिना पी लिया जाए तो पानी मे मौजूद वायरस और बैक्टीरिया के कारण बीमारियां होने की संभावना काफी अधिक रहतीं हैं
बचाने होंगे हिमाचल के पहाड़ नदियां और कृषि भूमि
Posted on 09 Feb, 2011 03:02 PM

सत्ताधारियों से मिलकर नौकरशाही और दलाल, हालात ही ऐसे बना देते हैं कि किसान अपनी उर्वर कृषि भूमि को बेचने के लिए मजबूर हो जाए…

नोएडा के क्षेत्रों में बढ़ेगा पेयजल का संकट
Posted on 02 Feb, 2011 02:58 PM नोएडा ग्रेटर नोएडा समेत पूरे एनसीआर क्षेत्र में आने वाले समय में लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। वैसे नोएडा में तो पहले ही पेय जल की कमी है। पीने के लिए जो पानी गंगा से मंगाया जा रहा है। उसकी मात्रा भी कम है। नोएडा का पानी कठोर और खारा है। इसके लिए नई तकनीकी को अपनाना होगा। तभी पानी की समस्या से निपटा जा सकता है। यह बात फोंटस वाटर के सीओओ सुब्रमण्यम एच ने एक सर्वे के बाद कही। वे नो
दिमाग साफ तो नदी भी साफ
Posted on 01 Feb, 2011 01:28 PM

मुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन-सा पहाड़ या कौन-सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहाँ से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है- ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए। हम लोग अपने स्कूलों में अक्सर किताबों में देशप्रेम, संविधान, भूगोल जैसे विषय पढ़ते हैं। कुछ समझते हैं और कुछ-कुछ रटते भी हैं, क्योंकि हमें परीक्षा में इन बातों के बारे में कुछ लिखना ही होता है।

लेकिन, मुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन-सा पहाड़ या कौन-सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहाँ से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है- ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए।

कन्याकुमारी से कश्मीर तक, भुज से लेकर त्रिपुरा तक

river
सामुदायिक भागीदारी का बेजोड़ नमूना
Posted on 16 Jan, 2011 01:20 PM

जैसलमेर में सामुदायिक भागीदारी से अनगिनत जलस्रोतों की काया पलट गई। जो जलस्रोत पहले सूखे हुए थे उंहें भी समुदाय ने अथक परिश्रम और सूझबूझ से पानीदार बना दिया। आइए देखते हैं राजस्थान के पारंपरिक जल स्रोतों और समाज की सूझ-बूझ की कुछ झलकियां

 

water
पानी नहीं होगा तो क्या होगा
Posted on 06 Jan, 2011 09:35 AM

क्या आपने कभी सोचा है कि धरती पर से पानी खत्म हो गया तो क्या होगा। लेकिन कुछ ही सालों बाद ऐसा हो जाए तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। भूगर्भीय जल का स्तर तेजी से कम हो रहा है। ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। यही सही समय है कि पानी को लेकर कुछ तो चेतें।

भाई हजारों साल पहले देश में जितना पानी था वो तो बढ़ा नहीं, स्रोत बढ़े नहीं लेकिन जनसंख्या कई गुना बढ़ गई। मांग उससे ज्यादा बढ़ गई। पानी के स्रोत भी अक्षय नहीं हैं, लिहाजा उन्हें भी एक दिन खत्म होना है। विश्व बैंक की रिपोर्ट को लेकर बहुत से नाक-भौं सिकोड़ सकते हैं, क्या आपने कभी सोचा है कि अगर दुनिया में पानी खत्म हो गया तो क्या होगा। कैसा होगा तब हमारा जीवन। आमतौर पर ऐसे सवालों को हम और आप कंधे उचकाकर अनसुना कर देते हैं और ये मान लेते हैं कि ऐसा कभी नहीं होगा। काश हम बुनियादी समस्याओं की आंखों में आंखें डालकर गंभीरता से उसे देख पाएं तो तर्को, तथ्यों और हकीकत के धरातल पर महसूस होने लगेगा वाकई हम खतरनाक हालात की ओर बढ़ रहे हैं।

पानी के लिए कोई नहीं पानी-पानी
Posted on 30 Dec, 2010 01:49 PM

पटना पानी चीज ही अजीब है। पानी चढ़ता है, उतरता है..पानी जमता है। टंकी पर चढ़ने वाला पानी कभी सिर पर भी चढ़ जाता है। पानी से आदमी पानी-पानी भी होता है। लेकिन सूबे में जल संचयन के लिए बने कानून को लागू करने में प्रशासन खुद पानी-पानी है। यही वजह है कि अब तक सख्ती से यह लागू नहीं हो सका है और भूजल-वाटर रिचार्ज के साथ ही रेनवाटर हार्वेस्टिंग का पूरा सिस्टम जमीन पर नहीं उतर पाया है।

water
बूंद बूंद पानी
Posted on 20 Dec, 2010 11:16 AM अतीत बंदरिया के मरे बच्चे की तरह बोझ है और भविष्य भूमंडलीकरण के हाथों में है। अब आवश्यकता की जननी जरूरत-बेजरूरत बारहों माह फल लुटा सकती है। हम कुआं खुदवा कर बूंद-बूंद पानी का भंडारण क्यों, करें, हम तो जरूरत पड़ने पर टैंकरों, रेल-हवाई जहाज से भी पानी मंगाने की औकात रखते हैं। गरमी लगते ही बूंद-बूंद पानी की तलाश शुरू हो जाती है। आसपास के कुएं सूख जाते, मां दस हाथ की रसरी लेकर, टीकाटीक दोपहर में पांच किलोमीटर दूर ‘इमरती’ कुएं से पानी खोजने निकलती। हम बच्चे भी ‘कुआं का पानी कुआं में जाए, ताल का पानी ताल में जाए’ गाते हुए एक-एक बूंद पानी को जलाशयों में फिर विसर्जित कर देते। उपभोग और बचत के बीच चक्रीय व्यवस्था थी और यह व्यवस्था जीवन और संस्कारों में समाई हुई थी। लोक जीवन का प्रथम ‘निष्क्रमण संस्कार’ पानी की तलाश से ही शुरू होता है।

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