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रियो+20 दस्तावेज: थोथा चना बाजे घना!
Posted on 29 Jun, 2012 05:01 PM

दस्तावेज में इस बात को स्वीकार किया गया है कि 1992 में पृथ्वी सम्मेलन के बाद से दुनिया में प्रगति का पथ डांवांडोल वाला रहा है इसलिये पूर्व में की गयी प्रतिबद्धताओं को पूरा करना जरूरी है। यहां यह कहना भी जरूरी है कि आज भी धरती पर हर पांचवां व्यक्ति या एक अरब की आबादी घनघोर गरीबी में जीने को बाध्य है और हर सातवां व्यक्ति या 14 फीसद आबादी कुपोषण की शिकार है। जलवायु परिवर्तन के कारण तमाम देशों और खासकर गरीब मुल्कों पर बुरा प्रभाव पड़ा है और टिकाऊ विकास के लक्ष्यों तक पहुंचना कठिन रहा है।

ब्राजील में क्रिस्तो रिदेंतोर (क्राइस्ट द रिडीमर) के शहर रियो द जनीरो में संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास या पृथ्वी सम्मेलन (13 से 19 जून तक आरम्भिक और 20 से 22 जून तक फाइनल) के दौरान घाना के एक प्रतिनिधि से बातचीत में हमने चुटकी ली कि राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों के इस सम्मेलन में क्या चल रहा है तो उन्होंने जवाब दिया: ‘टॉक, टॉक, टॉक ...’ हिंदी में कहें तो ‘थोथा चना बाजे घना’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी, अर्थात बातें तो बहुत पर सार्थक कुछ नहीं। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित अनेक देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने 283 बिंदुओं वाले जिस दस्तावेज को अंगीकार किया है उसमें टिकाऊ विकास तथा आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्तरों पर प्रतिबद्धता जताने की बात कही गयी है पर टिकाऊ विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिये गरीबी उन्मूलन की सबसे बड़ी चुनौती से निपटने की कारगर विधि नहीं बताई गयी है।
संयुक्त राष्ट्र का रियो+20 सम्मेलन क्या ‘पैराडाइम शिफ्ट’ के लिये याद किया जायेगा?
Posted on 28 Jun, 2012 12:58 PM

प्रतिनिधियों ने कहा कि धरती पर संसाधन सीमित हैं, इसलिये उपभोक्तावाद पर अंकुश लगाना होगा। उपभोक्तावाद ने पारिस्थितिकी पर ही असर नहीं डाला है बल्कि मानवाधिकारों पर भी बुरा प्रभाव डाला है। पूंजीवादी व्यवस्था धरती के 80 फीसद संसाधनों को डकार जाती है। ऐसी व्यवस्था वाले देश स्वयं को ‘विकसित’ बताते हैं। धरती के लोगों को ग्रीन उपनिवेशवाद से बचाते हुये ग्रीन इकॉनमी अपने हिसाब से चलानी होगी।

दुनिया की पूरी आबादी की उम्मीद बना संयुक्त राष्ट्र का ऐतिहासिक रियो+20 पृथ्वी शिखर सम्मेलन उसे सुरक्षित, संरक्षित और खुशहाल भविष्य का ठोस भरोसा दिलाये बिना 22 जून को समाप्त हो गया। विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने ‘“द फ्यूचर वी वांट’ नामक दस्तावेज को कुछ देशों के ‘रिजरवेशन’ के बावजूद स्वीकार कर लिया। कुछ बिंदुओं को लेकर अमेरिका, कनाडा, निकारागुआ, बोलीविआ, इत्यादि ने ‘रिजरवेशन’ व्यक्त किये हैं। सिविल सोसाइटी तो इस दस्तावेज को पूरी तरह पहले ही नकार चुकी है। छोटी-छोटी पहाड़ियों, विशाल चट्टानों, बड़ी झीलों, लम्बी सुरंगों, लगूनों और जंगलों से भरे इस खूबसूरत शहर रियो द जेनेरो में अब बस कहानियां रह जायेंगी कि यहां 1992 और 2012 में धरती को बचाने के लिये विश्व के नेताओं ने सामूहिक स्क्रिप्ट लिखी थीं पर वे न तो धरती और न इस पर रहने वालों को बचाने के ईमानदार प्रयास कर पाये।
सानंद के साथ बदसलूकी, भरत झुनझुनवाला पर हमला
Posted on 23 Jun, 2012 04:32 PM 22 जून की सुबह जी.डी अग्रवाल के साथ धारी देवी के जाने के दौरान बांध समर्थकों ने बदसलूकी की और उनकी गाड़ी का पीछा किया और पथराव किया। फिर बाद में प्रसिद्ध लेखक भरत झुनझुनवाला के घर पर तोड़फोड़ की।

पुलिस स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद को अपनी गाड़ी में बैठाकर धारी देवी मंदिर से निकली तो बांध समर्थक भी बाइक और कारों में सवार होकर पीछे हो लिए। उन्होंने लछमोली तक पुलिस वाहन का पीछा किया। रास्ते में ढामक, चमधार, श्रीनगर, कीर्तिनगर और जुयालगढ़ में पुलिस वाहन रोकने का भी प्रयास किया गया। इस दौरान उन्होंने वाहन पर पथराव कर सानंद पर स्याही डालने की कोशिश भी की। यहां पहुंचे बांध समर्थकों का अगला निशाना सानंद के मित्र डॉ. झुनझुनवाला बने। लछमोली में उनके आवास पर धावा बोलकर तोड़फोड़ की गई। बांध समर्थकों ने उनके चेहरे पर स्याही उड़ेली और उनकी पत्नी के साथ मारपीट की।

22 जून 2012 जागरण टीम, श्रीनगर / हरिद्वार। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना बंद होने की चर्चा के बीच पहली बार धारी देवी मंदिर पहुंचे स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद (प्रो.जीडी अग्रवाल), जल पुरुष राजेंद्र सिंह और वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक को परियोजना समर्थकों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। हालात की गंभीरता को देखते हुए पुलिस सुरक्षा में उन्हें वहां से निकाला गया, लेकिन गुस्साए लोगों ने उनका 19 किलोमीटर दूर लछमोली तक पीछा किया। उग्र रूप ले चुके प्रदर्शनकारियों ने यहां भी जमकर बवाल काटा। इन लोगों ने स्वामी सानंद के मित्र वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.भरत झुनझुनवाला के घर पर जमकर तोड़फोड की। आक्रोशित प्रदर्शनकारियों ने डॉ. झुनझुनवाला के चेहरे पर स्याही उड़ेल दी और पत्‍‌नी के साथ मारपीट की। उधर, सानंद और उनके साथियों को पुलिस ऋषिकेश होते हुए हरिद्वार ले गई। दोपहर बाद सानंद को पुलिस सुरक्षा में मुजफ्फरनगर के लिए रवाना कर दिया गया।
देश की पहली नदी-तालाब जोड़ो परियोजना बुंदेलखंड में
Posted on 22 Jun, 2012 01:19 PM भोपाल, देश में पहली बार नदी-तालाब जोड़ों परियोजना टीकमगढ़ जिले में क्रियान्वित की जा रही है। बुंदेलखंड पैकेज में हरपुरा सिंचाई और नदी-तालाब जोड़ो परियोजना का काम शुरू किया गया है। इस परियोजना से 1980 हेक्टेयर में अतिरिक्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने के साथ-साथ एक हजार साल पुराने ऐतिहासिक चंदेल कालीन तालाबों को भी नया जीवन मिलेगा। बुंदेलखंड अंचल की टीकमगढ़ जिला धसान और जामनी नदी के बीच बसा है। यहां अ
प्रदूषित गंगा किनारे स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की अनूठी पहल
Posted on 21 Jun, 2012 10:38 AM गंगा की निर्मलता व अविरलता के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के बीच वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर श्रद्धालुओं को निःशुल्क स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए अनूठी पहल की गई है। इसके तहत वाराणसी के धर्मनिष्ठ प्रमुख कपड़ा व्यवसायी केशव जालान ने अपने व्यवसायी मित्र मनविंदर सिंह बग्गा के सहयोग से घाट के ऊपर ही एक आरओ प्लांट स्थापित कर दिया है। इसके सहारे श्रद्धालु अब गंगा का पानी बिना किसी भय के भी पी सकते हैं और
वैकल्पिक ऊर्जा का बेहतर स्रोत पवन चक्की (विंडमिल)
Posted on 16 Jun, 2012 10:32 AM पवन चक्की (विंडमिल)पवन चक्की (विंडमिल) वैकल्पिक ऊर्जा का बेहतर स्रोत है, लेकिन इसका सीधा लाभ आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। वजह है कि पवन चक्की बनाने वाली कंपनियों के हाथों में ही इसका संचालन रह गया है। कंपनियां पठारी इलाकों में पवन चक्की स्थापित कर बिजली तैयार कर रही हैं और इसे बेचकर लाभ
पवन चक्की (विंडमिल)
गंदे पेयजल की बीमारियों से दूर भगाए नींबू + सूर्य किरण
Posted on 14 Jun, 2012 03:25 PM आज भी पीने का स्वच्छ पानी न मिल पाने से दुनिया की बहुत बड़ी आबादी गैस्ट्रो-एंटेराइटिस, डायरिया, अमीबायसिस, हैजा, टायफाइड, वाइरल हैपेटाइटिस आदि बीमारियों से घिरी हुई है। कुछ अनुमानों के अनुसार दुनियाभर के अस्पतालों में भर्ती 50 फीसदी से अधिक रोगी जल-संक्रमण से उपजी बीमारियों से ग्रस्त हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहिम छेड़ी जाए तो विश्व समुदाय इस भयानक साये से मुक्त हो सकता है। आवश्यकता जनजागरूक
पानी की आत्मकथा
Posted on 14 Jun, 2012 12:22 PM जल ही जीवन है यह एक वैज्ञानिक सत्य है। आज कल की परिस्थिति यह हो गयी है की पानी के लिए हर जगह त्राहिमाम मचा हुआ है गर्मी में खाना मिले या न मिले पर पानी जरुर चाहिए। पानी की समस्या सिर्फ शहरों या महानगरों में ही नहीं अब तो गाँवो में भी पीने का पानी सही ढंग से नई मिल पा रहा है। हम पानी की समस्या से इतने जूझ रहे हैं फिर भी हम पानी का सही इस्तेमाल कैसे करें या पानी को कैसे ज्यादा से ज्यादा बचाएं इसक
साफ माथे का पानी
Posted on 01 Jun, 2012 11:32 AM

आज का विज्ञान और तकनीकी की बात करने वाला नदियों से अलग-थलग पड़ा यह समाज जल-चक्र को ही नकार रहा है। इस नई सोच का मानना है कि नदियां व्यर्थ में ही पानी समुद्र में बहा रही हैं। ये लोग भूल रहे हैं कि समुद्र में पानी बहाना भी जल-चक्र का एक बड़ा हिस्सा है। नदी जोड़ परियोजना पर्यावरण भी नष्ट करेगी और भूगोल भी। नदियों को मोड़-मोड़ कर उल्टा बहाने की कोशिश की गई तो आने वाली पीढ़ियां शायद ही हमें माफ कर पाएंगी।

दृष्टि, दृष्टिकोण, दर्शन, विचार और उसकी धारा में पानी खो रहा है। पानी के अकाल से पहले माथे का अकाल हो चुका है; अच्छे कामों और विचारों का अकाल हो चुका है। नदी समाजों से खुद को जोड़ने की बजाय सरकारें समाज को नदियों से दूर करना चाहती है। आजादी से अब तक की सरकारी योजनाओं में सबसे खतरनाक और अव्यावहारिक नदी-जोड़ योजना की कोशिश हो रही है। भूगोल को कुछ लोग ‘ठीक’ करना चाहते हैं। कानून से पर्यावरण बचाना और पेड़ लगाना चाहते हैं। बड़े-बड़े बांध बांधकर लोगों की प्यास बुझाना चाहते हैं। कहना ना होगा कि ये बड़े- बड़े विचार लोगों की प्यास तो बिल्कुल नहीं बुझा पा रहे हैं। उदाहरणों के लिये इतिहास में ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। अभी पिछले साल ही मध्य प्रदेश के कई शहरों में पानी के वितरण के लिए सीआरपीएफ लगानी पड़ी। नदी की बाढ़ से ज्यादा माथे की बाढ़ दुखदायी बन गई है।
जनभागीदारी से होगा जल संरक्षण
Posted on 09 May, 2012 11:29 AM नदियों की सामाजिक व पर्यावरणीय भूमिका निभाने के लिए व आसपास के रिचार्ज के लिए जितना जल जरूरी है, कम से कम उतना जल नदियों में बहाना ही होगा। यही हमारे देश के भूजल संकट को दूर करने का मुख्य आधार है। हमारे देश के कानून में नदियों, झीलों व अन्य सब जल स्रोतों की रक्षा को भी शामिल करना चाहिए। इन्हीं जल संग्रहण व सरंक्षण के जनभागीदारी के बारे में बताते भारत डोगरा
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