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नीर फाउंडेशन को मिलेगा 2012 का अंतरराष्ट्रीय ग्रीन एप्पल अवार्ड
Posted on 22 Aug, 2012 03:39 PM आगामी 12 नवम्बर को लंदन की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स में दिया जाएगा यह अवार्ड
वर्षाजल संचयन के साथ ही जलस्रोतों का भी बचाया जाना जरूरी है
Posted on 27 Jul, 2012 10:41 AM अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ‘सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरनमेंट’ (सीएसई) की मुखिया हैं। लगभग चालीस सालों से सीएसई जल संचय के परंपरागत तरीकों और लगभग 30 सालों से वाटर हार्वेस्टिंग के नये तरीकों पर काम कर रहा है। 1980 में ही सीएसई ने रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग की संकल्पना रखी, जिसकी तरफ सरकारों का भी ध्यान गया। देश के कई शहरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किया गया।
वर्षाजल संचय से ही समाज का उद्धार
Posted on 27 Jul, 2012 10:08 AM फोर्स नाम के एक गैर सरकारी संगठन की अध्यक्षा हैं ज्योति शर्मा। दिल्ली आधारित उनका संगठन जल संरक्षण के लिए काम करता है। उनका मानना है कि शहरी पानी को बचाने के लिए तीन सूत्री कार्यक्रम पर ध्यान देना होगा। पहला, शहरों के तालाबों को पुनः जीवनदान देना होगा; दूसरा, शहर के साफ पानी के नालों पर चेकडैम बनाना; तीसरा, सभी घरों में वर्षाजल संचयन की व्यवस्था करना।
दिल्ली के पानी के समाधान के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए
Posted on 27 Jul, 2012 09:42 AM दिल्ली में पानी के समाधान के लिए लोगों को दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। दिल्लीवासीयों को पानी के समस्या से निबटने के लिए अपने घरों के छतों पर रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना होगा। जिससे पानी की कुछ चिंता खत्म हो सके। वीके जैन तपस संगठन से जुड़े हुए हैं। यमुना जो दिल्ली की लाइफलाइन है साथ ही दिल्ली की झीलों तालाबों को बचाने के लिए वीके जैन और उनका संगठन न्यायालय से लेकर सड़क तक संघर्ष कर रहा है
मौत के मुहाने पर पहुंच गया है शम्शी तालाब
Posted on 26 Jul, 2012 01:52 PM दिल्ली सरकार और प्रशासन की लापरवाही के चलते महरौली में एक हजार साल पुराना ऐतिहासिक शम्शी तालाब लगातार धीमी मौत मर रहा है। किसी समय यही तालाब यहां के दर्जनों गांवों के लोगों की पानी संबंधी जरूरतों को पूरा करता था। मवेशियों की प्यास बुझाता था और जमीन के जल स्तर को दुरुस्त रखता था, लेकिन यहां सक्रिय भूमाफियाओं की कारगुजारियों के चलते यह तालाब लगातार सूखता और सिकुड़ता जा रहा है। महरौली का सारा इलाका अ
उपेक्षा का शिकार शम्शी तालाब
वनाधिकार पर आयोजित सम्मेलन
Posted on 24 Jul, 2012 12:36 PM अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वनसमुदाय (वनाधिकारों को मान्यता) कानून 2006 के प्रभावी क्रियान्वन के लिए वनाश्रित समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ राजनैतिक पहल करने के लिए राज्य सभा व लोकसभा के सांसदों के साथ एक वार्ता 23 जुलाई 2012, डिप्टी स्पीकर हाल, कांस्टीटयुशन कल्ब, नई दिल्ली, सांय 4 से 7 बजे में राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच द्वारा आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में राज्य सभा के सदस्य जनता दल
वनाधिकार पर आयोजित सम्मेलन में भाग लेते प्रबुद्धजन
कुछ लाख रसोइये चाहिए
Posted on 10 Jul, 2012 05:02 PM सौंदर्य केवल लघु होने से नहीं आता। लघुता का पाठ पढ़ाने वाले हमारे पर्यावरण वाले भूल जाते हैं कि प्रकृति लघु नहीं, अति सूक्ष्म रचना भी करती है और विशालकाय जीव भी बनाती है। छोटे-बड़े का यह संबंध भुला देना मनुष्य जाति की आफत बन गई है। दुनिया के जाने-माने जीवविज्ञानी विक्टर स्मेटाचैक इस संबंध के रहस्य को और हमारी परंपराओं को ज्ञान और साधना से जोड़ते हैं। वे विज्ञान और अहिंसा, भोजन और भजन की एक नई परिभाषा, हमारे नए जमाने के लिए गढ़ते हुए एक आश्चर्यजनक मांग कर रहे हैं: कुछ लाख रसोइये ले आओ जरा!

जलवायु परिवर्तन ही प्राणी जगत पर आई प्रलय का कारण नहीं माना जा सकता। अलग-अलग महाद्वीप पर बड़े स्तनपायियों का मिटना समय में थोड़ा अलग है। जैसे आस्ट्रेलिया में ये पहले हुआ, अमेरिका में थोड़ा बाद में। चूंकि बहुत-सा पानी हिमनदों और हिमखंडों में जमा हुआ था इसलिए समुद्र में पानी का स्तर आज की तुलना में कोई 400 फुट नीचे था और महाद्वीपों के बीच कई संकरे जमीनी रास्ते थे जो आज डूब गए हैं। जैसे भारत से आस्ट्रेलिया तक के द्वीप एक दूसरे से जुड़े थे, भारत से लंका तक एक सेतु था।

कोई 15,000 साल पहले तक धरती पर बहुत बड़े स्तनपायी पशुओं की भरमार थी। इनके अवशेषों से पता चलता है कि इनमें से ज्यादातर शाकाहारी थे और आकार में आज के पशुओं से बहुत बड़े थे। उत्तरी अमेरिका और यूरोप-एशिया के उत्तर में सूंड वाले चार प्रकार के भीमकाय जानवर थे, इतने बड़े कि उनके आगे आज के हाथी बौने ही लगेंगे। वैज्ञानिकों ने इनको मैमथ और मास्टोडोन जैसे नाम दिए हैं। फिर घने बाल वाले गैंडे थे, जो आज के गैंडों से बहुत बड़े थे। ऐसे विशाल ऊंट थे जो अमेरिका में विचरते थे और साईबेरिया के रास्ते अभी एशिया तक नहीं पहुंचे थे। आज के हिरणों, भैंसों और घोड़ों से कहीं बड़े हिरण, भैंसे और घोड़े पूरे उत्तरी गोलार्द्ध में घूमते पाए जाते थे, चीन और साईबेरिया से लेकर यूरोप और अमेरिका तक। कुछ बड़े मांसाहारी प्राणी भी थे।
राजा मोरध्वज के किले में रोगों से मुक्ति प्रदान करता प्राचीन कुआं
Posted on 09 Jul, 2012 02:24 PM

इस कुएं के पानी की यह खासियत है कि दाद, खाज, खुजली आदि के रोग इसके स्नान से दूर हो जाते है। क्षेत्रीय लोग एवं दू

उजड़ रहे सिंगरौली के जंगल
Posted on 06 Jul, 2012 12:40 PM सिंगरौली के जंगलों को उजाड़कर जमीन से खनिज निकाल कर, पहाड़ों को खोखला बना कर, हरी-भरी जमीन को बंजर बना कर आगे बढ़ जाना कॉरपोरेट घरानों का काम है। इसमें कोई समस्या आती है तो यह विकास को रोकने की साजिश है। स्थानीय लोगों को इस प्रक्रिया में नजरअंदाज किया जा रहा है। वहां के आदिवासियों को किसान से मजदूर बनाया जा रहा है। यहां आदिवासी को जंगल के जानवरों से कोई खतरा नहीं है लेकिन बाहरी जानवरों से बहुत
पर्यावरण के बिना जीवन असंभव
Posted on 02 Jul, 2012 04:43 PM वर्तमान युग औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण का युग है। जहाँ आज हर काम को सुगम और सरल बनाने के लिए मशीनों का उपयोग होने लगा हैं, वहीं पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। पर्यावरण, ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है, जो संपूर्ण मानव समाज का एकमात्र महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य भौतिक तत्वों- पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि से मिलकर पर्यावरण का निर्माण हुआ हैं। यदि म
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