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उत्तरकाशी जिला
आपदा और पर्यावरण रक्षक
Posted on 30 Jun, 2013 03:15 PM विकास के साथ-साथ हो सकती है पर्यावरण रक्षा। इस बात की हजारों मिसालशीशा पत्थर पर दे मारना
Posted on 30 Jun, 2013 02:39 PMबस जरा सी गफलत होती है और जंगल,आदमी की गिरफ्त से छूटकर,
दीवारों की कवायद में शामिल
हो जाता है!
धूमिल
उत्तराखंड पर कुदरत के कहर का अर्थ
Posted on 29 Jun, 2013 01:22 PMविकास और पर्यटन के नाम पर नदी, पहाड़, जंगल के अंधाधुंध दोहन ने प्रलय के दरवाजे खोले।हिमालय की परंपराओं को भुलाने का दंड
Posted on 29 Jun, 2013 10:03 AMपहाड़ों के पर्यटन का केंद्र बनने से मैदानी संस्कृति की विकृतियों ने पर्यावरण संतुलन को अस्त-व्यस्त किया।प्रलय का शिलालेख
Posted on 24 Jun, 2013 09:09 PMअबकी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में भीषण तबाही हुई है। पर बादल, बारिश, बाढ़ और भूस्खलन आदि को तबाही का कारण मानना कितना सही होगा? इन इलाकों में पीछे हुई घटनाओं से क्या हम कुछ समझना चाहते हैं या नहीं। इन अप्राकृतिक घटनाओं में प्राकृतिक होने की वजहों की छानबीन की ही जानी चाहिए। उत्तराखंड में हिमालय और उसकी नदियों के तांडव का आकार-प्रकार अब धीरे-धीरे बढ़ने और दिखने लगा है। लेकिन क्या सचमुच में मौसमी बाढ़ इस इलाके में नई है? सन् 1977 में अनुपम मिश्र का लिखा एक यात्रा वृतांत।
सन् 1977 की जुलाई का तीसरा हफ्ता। उत्तरप्रदेश के चमोली जिले की बिरही घाटी में आज एक अजीब-सी खामोशी है। यों तीन दिन से लगातार पानी बरस रहा है और इस कारण अलकनंदा की सहायक नदी बिरही का जल स्तर बढ़ता जा रहा है। उफनती पहाड़ी नदी की तेज आवाज पूरी घाटी में टकरा कर गूंज भी रही है। फिर भी चमोली-बदरीनाथ मोटर सड़क से बाईं तरफ लगभग 22 किलोमीटर दूर 6,500 फुट की ऊंचाई पर बनी इस घाटी के 13 गांवों के लोगों को आज सब कुछ शांत-सा लग रहा है।
आज से सिर्फ सात बरस पहले ये लोग प्रलय की गर्जना सुन चुके थे, देख चुके थे। इनके घर, खेत व ढोर उस प्रलय में बह चुके थे। उस प्रलय की तुलना में आज बिरही नदी का शोर इन्हें डरा नहीं रहा था। कोई एक मील चौड़ी और पांच मील लंबी इस घाटी में चारों तरफ बड़ी-बड़ी शिलाएं, पत्थर, रेत और मलबा भरा हुआ है, इस सब के बीच से किसी तरह रास्ता बना कर बह रही बिरही नदी सचमुच बड़ी गहरी लगती है।