उत्तरकाशी जिला

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अनियोजित विकास की मार प्राकृतिक आपदा
Posted on 11 Jun, 2016 04:18 PM


उत्तराखण्ड में इस साल मौसम ने फिर से करवट ली है। बेतरतीब बरसात और तूफान ने जहाँ लोगों के आवासीय भवनों की छतें उड़ाकर लील ली वहीं अत्यधिक वर्षा के कारण बादल फटने और बाढ़ के प्रकोप से लोगों की जानें खतरे में पड़ गई है। मौसम इतना डरावना है कि प्रातः ठीक-ठाक दिखेगा और सायं ढलते ही मौसम का विद्रुप चेहरा बनने लगता है।

विरासत में मिली पर्यावरण प्रेम की सीख
Posted on 05 May, 2016 03:49 PM
निरन्तर खुद के कठिन प्रयासों से वृक्षारोपण करने, पेड़ों को जी
सर गाँव के सात जलधारे
Posted on 03 May, 2016 02:01 PM
A village of 7 Water-Springs
खाली होने की कगार पर पहुँच गया वाटर टैंक
Posted on 28 Mar, 2016 12:19 PM


अब यह सपने जैसा लगने लग रहा है कि क्या वाकई उत्तराखण्ड कभी ‘वाटर टैंक’ होगा। यह पंक्ति ठीक वैसे ही लग रही है जैसे हम लोग गाये-बगाहे कहते हैं कि हमारा देश सोने की चिड़िया है। पानी की किल्लत से गाँव के गाँव पहाड़ से नदियों के किनारे और शहरों में पलायन कर रहे हैं। राज्य में पलायन की समस्या कुछ और भी है, परन्तु मौजूदा समय में पानी की समस्या राज्य के लोगों के सामने मुँहबाये खड़ी है।

गोविन्द वन्य जीव एवं पशु विहार भी तस्करों के निशाने पर
Posted on 21 Feb, 2016 12:29 PM


सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगा हुआ गोविन्द वन्य जीव पशु विहार में जंगली पशुओं की तस्करी जारी है। बताया जा रहा है कि यहाँ पर अन्तरराष्ट्रीय वन्य जीव तस्करों का गिरोह कई वर्षों से अपनी पैठ बनाए हुए हैं। हालांकि विभागीय अधिकारी खानापूर्ती के लिये गिरफ्तारी तो कर देते हैं, वनस्पति वन्य जीव तस्करी बदस्तूर जारी है।

पुनर्वास व विस्थापन की कोई नीति नहीं
Posted on 20 Feb, 2016 04:19 PM

1. बिना जन सुनवाई के जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण कार्य आरम्भ।
2. निर्माण कर रही कम्पनीयों की कालोनियाँ तक स्थापित।
3. अब तक सिर्फ चार लोगों को निर्माण कम्पनी ने रोजगार के नाम पर बनाया पेटी ठेकेदार।


प्रकृति विदोहन के साथ-साथ मानवाधिकारों का हनन
Posted on 10 Dec, 2015 04:15 PM

विश्व मानवाधिकार दिवस, 10 दिसम्बर पर विशेष


मनुष्य और प्रकृति का वैसे तो चोली दामन का साथ है पर वर्तमान में मनुष्य प्रकृति के साथ अपने स्वार्थवश क्रूर हो गया है। कारण इसके मानवकृत आपदाएँ सर्वाधिक बढ़ रही है। अर्थात् विश्व मानव अधिकार दिवस की महत्ता तभी साबित होगी जब मनुष्य फिर से प्रकृति प्रेमी बनेगा। ऐसा अधिकांश लोगों का मानना है।
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