सरयू (सरजू)

Term Path Alias

/regions/sarayu-sarju

नदियाँ गुस्से में हैं
Posted on 20 Nov, 2009 08:06 AM गोण्डा तथा बहराइच में सरयू तथा घाघरा नदियों के धारा बदलने से दर्जनों गावों के अस्तित्व पर संकट है। नदियों के धारा बदलने का काम प्राय: मानवीय हस्तक्षेप का ही परिणाम होता है। नदियों के रास्ते में रुकावट, उनके आगोर के जंगल खत्म होने, उनके ढांड़ को खनन से समाप्त करने आदि नदियों के गुस्सा के कारण होते हैं।
नदियों का कटान
कराहती नदियां
Posted on 31 Jul, 2010 09:53 AM आमी का गंदा जल सोहगौरा के पास राप्ती नदी में मिलता है। सोहगौरा से कपरवार तक राप्ती का जल भी बिल्कुल काला हो गया है। कपरवार के पास राप्ती सरयू नदी में मिलती है। यहां सरयू का जल भी बिल्कुल काला नज़र आता है। बताते हैं कि राप्ती में सर्वाधिक कचरा नेपाल से आता है। उसे रोकने की आज तक कोई पहल नहीं हुई। पिछले दिनों राप्ती एवं सरयू के जल को इंसान के पीने के अयोग्य घोषित किया गया। कभी जीवनदायिनी रहीं हमारी पवित्र नदियां आज कूड़ा घर बन जाने से कराह रही हैं, दम तोड़ रही हैं। गंगा, यमुना, घाघरा, बेतवा, सरयू, गोमती, काली, आमी, राप्ती, केन एवं मंदाकिनी आदि नदियों के सामने ख़ुद का अस्तित्व बरकरार रखने की चिंता उत्पन्न हो गई है। बालू के नाम पर नदियों के तट पर क़ब्ज़ा करके बैठे माफियाओं एवं उद्योगों ने नदियों की सुरम्यता को अशांत कर दिया है। प्रदूषण फैलाने और पर्यावरण को नष्ट करने वाले तत्वों को संरक्षण हासिल है। वे जलस्रोतों को पाट कर दिन-रात लूट के खेल में लगे हुए हैं। केंद्र ने भले ही उत्तर प्रदेश सरकार की सात हज़ार करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी परियोजना अपर गंगा केनाल एक्सप्रेस-वे पर जांच पूरी होने तक तत्काल रोक लगाने के आदेश दे दिए हों, लेकिन नदियों के साथ छेड़छाड़ और अपने स्वार्थों के
गंगा के मायके में प्यासी धरती, प्यासे लोग
Posted on 15 Apr, 2010 10:28 AM

समूचे गंगा के मैदान को पानी उपलब्ध करवाने वाला उत्तराखंड स्वयं प्यासा है। क्रुद्ध पर्वतवासी जन-संस्थान के दफ्तरों और अफसरों का घेराव कर रहे हैं। आंदोलनों से सरकारी मशीनरी अक्सर सक्रिय होती भी है लेकिन उसकी सक्रियता का परिणाम नगरों और कस्बों तक ही सीमित होता है। गांव प्यासे रह जाते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि इस पर्वतीय प्रदेश की 75 प्रतिशत जनसंख्या 15,828 गांवों में निवास करती है। नगरीय इल