सहरसा जिला

Term Path Alias

/regions/saharsa-district

बिहार बाढ़: मचान बना ठिकाना,  भुने चावल और मक्का से बुझाई पेट की आग
Posted on 22 Aug, 2020 10:55 AM

“एक महीना बहुत तकलीफ में गुजरा। ऊपरका (भगवान) के भरोसे बच गए, यही बहुत है।” 

43 साल के प्रकाश मुखिया जब ये वाक्य कहते हैं, तो उनकी आवाज में दर्द साफ महसूस किया जा सकता है। वह एक महीने से ज्यादा वक्त तक बाढ़ में अपनी फूस की झोपड़ी में फंसे रहे। अब जाकर पानी उतरा है, तो घर में खाना बनना शुरू हुआ है।

सहरससा में बाढ़ का कहर
मजदूरों के पलायन में दिखता बाढ़ का प्रभाव
Posted on 03 Nov, 2017 11:42 AM
सरकारी नौकरी और स्थायी किस्म के काम करने वाले लोग भी होते हैं। उनका आना-जाना
migration
दुधारी नदी का सुख-दुख
Posted on 15 Jan, 2017 02:05 PM
नदियों के साथ बरती गई नासमझी से रूबरू कराती कोसी के संग-संग हफ्ते भर की यात्रा
नदियाँ हमारे जीवन का दर्पण हैं। नदियों की तरह हमें भी तंग नजरिए से मुक्त होकर जीवन के प्रवाह को विस्तार देते रहना चाहिए

कोसी तटबंधों के बीच
Posted on 13 Nov, 2014 07:54 AM 1950 में कोसी के दोनों तटबंधों का निर्माण हुआ जिनके बीच 304 गांवों के करीब एक लाख बानबे हजार लोग शुरू-शुरू में फंस गए थे। इनका पुनर्वास का काम बहुत ही ढीला था और कई गांवों के पुनर्वास की जमीन का अभी तक अधिग्रहण नहीं हुआ है। बाद में तटबंधों की लंबाई बढ़ाए जाने के कारण इन गांवों की संख्या 380 हो गई और आजकल या आबादी बढ़कर 12 लाख के आस पास पहुंच गई है।

बिहार विधानसभा मे इस पर कई बार चर्चा हुई जिसमें परमेश्वर कुंअर का यह बयान (जुलाई, 1964) बहुत ही महत्वपूर्ण है। वो कहते हैं, कोसी तटबंधों के बीच खेती नहीं हो सकती है। वहां तमाम जमीन पर बालू का बुर्ज बना हुआ है। वहां कांस का जंगल है, दलदल है। कृषि विभाग इसको देखता नहीं है की वहां पर किस प्रकार खेती की उन्नति की जा सकती है। जहां कल जंगल था वहां आज गांव है।
<i>कोसी नदी में बाढ़ से विस्थापित लोग</i>
आतंक बनाम आकर्षण
Posted on 06 May, 2013 04:10 PM

नदी बांधने की आकर्षक अनिवार्यता का परिणाम यह है कि आज यह सवाल भी गौण हो गया है कि युद्ध का वही

बदस्तूर जारी बाढ़ से बर्बादी
Posted on 29 Sep, 2012 04:58 PM

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कोसी त्रासदी में 2,36,632 घर ध्वस्त हुए लेकिन सरकार पुनर्वास की उचित व्यवस्था नहीं कर

कोसी: पुरानी कहानी, नया पाठ
Posted on 24 Aug, 2012 12:11 PM

भारत यायावर द्वारा संपादित फणीश्वरनाथ रेणु के चुनिंदा रिपोर्ताज रचनाओं के संग्रह से ‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ रिपोर्ताज लिया गया है। रेणु रिपोर्ताज के काफी बड़े आयाम में बाढ़ फैला हुआ है। बाढ़ उनके जेहन में ऐसे फैला हुआ था कि रेणु घंटों-घंटों संस्मरण सुनाते रह सकते थे। ‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ में रेणु ने कोसी की बाढ़ कथा को रिपोर्ताज के रूप में प्रस्तुत किया है।

बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन–तूफान–उठा!

हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मंडराने लगे। दिशाएं सांस रोके मौन-स्तब्ध!

कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु-गाय, बैल, भैंस-नदी में पानी पीते समय कुछ सूंघकर भड़के, आंतकित हुए। एक बूढ़ी गाय पूंछ उठाकर आर्त-नाद करती हुई भागी। बूढ़े चरवाहे ने नदी के जल को गौर से देखा। चुल्लू में लिया-कनकन ठंडा! सूवा-सचमुच, गेरुआ पानी!

गेरुआ पानी अर्थात पहाड़ का पानी-बाढ़ का पानी?
जवान चरवाहों ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया। किंतु जानवरों की देह की कंपकंपी बढ़ती गयी। वे झुंड बांधकर कगार पर खड़े नदी की ओर देखते और भड़कते। फिर धरती पर मुँह नहीं रोपा किसी बछड़े ने भी।
डायन कोसी
Posted on 23 Aug, 2012 11:08 AM

फणीश्वरनाथ रेणु मुंशी प्रेमचंद के बाद के काल के सबसे प्रमुख रचनाकार हैं। मैला आंचल, परति परिकथा सहित कई उपन्यासों के रचनाकार रेणु रिपोर्ताज भी लिखते थे। उनके प्रसिद्ध रिपोर्ताज में बाढ़ पर ‘जै गंगे’ (1947), ‘डायन कोसी’ (1948), ‘अकाल पर हड्डियों का पुल’ तथा ‘हिल रहा हिमालय’ आदि प्रमुख हैं। ‘डायन कोसी’ इनमें सर्वाधिक चर्चित माना गया है। इसका कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। लगभग 65 साल पहले लिखा गया रेणु का ‘डायन कोसी’ रिपोर्ताज बाढ़ और कोसी के कई अनसुलझे पहलुओं को समझने में मदद करता है।

कोसी नदी में आई बाढ़ से हो रहा मिट्टी कटावकोसी नदी में आई बाढ़ से हो रहा मिट्टी कटावहिमालय की किसी चोटी की बर्फ पिघली या किसी तराई में घनघोर वर्षा हुई और कोसी की निर्मल धारा में गंदले पानी की हल्की रेखा छा गई।

कोसी में तैयार हो रही है प्रलय की पृष्ठभूमि
Posted on 04 Jul, 2011 03:57 PM

सरिसृप वर्ग के कई जंतुओं में हाइबर्नेशन (सुसुप्तावस्था में रहने की प्रवृत्ति) पर जाने की विशिष्ट प्रवृत्ति होती है। हाइबर्नेशन पीरियड में ये जंतु अपने-अपने बिलों से बाहर नहीं निकलते। महीनों तक सोये रहते हैं, न हिलते हैं, न डोलते हैं। आंख-कान दोनों बंद कर लेते हैं। बरसात आने के साथ ही इनका हाइबर्नेशन टूटता है और जब टूटता है, तो यह चार-चार हाथ उछलने लगते हैं। चारों ओर अजीब-सा कोलाहल मच जाता है।

×