Posted on 01 Sep, 2017 11:14 AM उत्तराखंड भारत का 27वां तथा नवनिर्मित राज्यों में सबसे छोटा राज्य है जो हिमालय में स्थित है। प्रदेश में विभिन्न प्रकार के जलस्रोत जैसे-झील, जलाशय, नदियाँ और झरने बहुतायत में हैं। उत्तराखंड में कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में शारदा सागर, नानक सागर, बैगुल, तुमड़िया, बौर, धौरा, हरिपुरा आदि जलाशय स्थित हैं। शारदा सागर तथा नानक सागर क्रमश: 7303 एवं 4662 हे.
Posted on 01 Sep, 2017 11:08 AM भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश जहाँ पर नित छ: ऋतुओं की छटा प्रदर्शित होती रहती है। यहाँ की कण-कण में समाहित है कृषकों के पसीने की बूँदे जो आभास कराती है यहाँ के जनमानस की श्रद्धा व भावना। विश्व की अन्नय प्रसिद्ध क्रांतियों में भारत का एक अभूतपूर्व योगदान रहा है। फिर चाहे वे श्वेत क्रांति हो या हरित क्रांति इसी क्रांति की श्रृंखला में अग्रसर है नीली क्रांति। नीली क्रांति के पथ पर अग्रसरित भारतवर
Posted on 01 Sep, 2017 11:04 AM हिमालय के कुमाऊँ क्षेत्र को छकाता अथवा पश्चिम-मूर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में विभिन्न आकार की सुन्दर शीतजलीय झीलें विद्यमान हैं। जैसे कि नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, पन्नाताल (गरुड़ताल) एवं खुरपाताल में वर्षभर जल उपलब्ध रहता है जबकि सरियाताल, मलवाताल, सुखाताल, एवं खोरियाताल, केवल वर्षाऋतु के बाद ही झील का रूप ले लेती हैं एवं ग्रीष्मकाल में सूख जाती हैं।
Posted on 31 Aug, 2017 04:57 PM उत्तराखंड राज्य 9 नवम्बर, 2000 को भारतीय गणतन्त्र का 27वां राज्य बना जिसका नाम उत्तरांचल रखा गया था। मध्य हिमालय में 28047’ से 31020’ उत्तर एवं 77035’ से 80055’ पूर्व देशान्तर तक फैला तथा 198 से 7,116 मी. समुद्रतलीय ऊँचाई वाला यह राज्य 53,483 वर्ग कि.मी.
Posted on 31 Aug, 2017 04:54 PM मत्स्य विविधता एवं उनका संरक्षण आज केवल वातावरण एवं परिवेश के दृष्टिकोण से आवश्यक है अपितु खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के डाटाबेस के अनुसार लगभग 708 मछलियाँ मीठे जल की हैं जिसमें लगभग 3.32 प्रतिशत मछलियाँ शीतजल की हैं। पर्वतीय प्रदेश में आज बहुत सी अभ्यागत मछलियाँ प्रवेश कर गयी हैं जिनका मत्स्य पालन में अच्छा घुसपैठ है। विदेश
Posted on 31 Aug, 2017 04:51 PM भारत में महासीर की तकरीबन सात प्रजातियाँ पायी जाती हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों में उपलब्ध हैं। इन सभी प्रजातियों को वैज्ञानिकों ने उनके शारीरिक बनावट एवं संरचना के आधार पर वर्गीकृत किया है। किन्तु निरंतर पर्यावरणीय परिवर्तनों के वजह से इनके शारीरिक बनावट एवं संरचना में कुछ बदलाव आया है जिसके कारण ठीक प्रकार से इनकी पहचान एवं उसके फलस्वरूप पारिस्थितिकी सन्तुलन हेतु इनका संरक्षण करना कठिन हो
Posted on 31 Aug, 2017 04:46 PM मानव जाति के पिछले कुछ दशकों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है एवं प्रतिदिन हजारों की तादाद में नये रासायनिक उत्पाद अस्तित्व में आ रहे हैं, जिनका उपयोग कृषि, उद्योग, चिकित्सा, खाद्य, सौन्दर्य सामग्री इत्यादि में किया जा रहा है। कारखानों से निकले संश्लेषित रसायन जिनमें भारी धातु तत्व, कीटनाशक इत्यादि हमारे प्राकृतिक जल संसाधनों को प्रदूषित कर रहा है। इनमें से कुछ