महोबा जिला

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आलू को दें जल कुंभी की खाद
Posted on 06 Feb, 2014 01:27 PM फार्म एन फ़ूड, 16 नवंबर 2012। जलकुंभी एक ऐसी खरपतवार है जो कई सालों तक तालाब में रहने की कूबत रखती है। भारत के सभी राज्यों के निचले इलाको में जहां पानी जमा होता है,या गंदे तालाब है,वहाँ जलकुम्भी ज्यादा मिलती है। बारिश के वक्त यह तेजी से बढती है। पानी के निकास वाली जगहों जैसे नालों व तालाबों में जलकुम्भी उग जाने से पानी निकलने में परेशानी आती है।यह एक खरपतवार है लेकिन इसके पौधे से हमे फसल के लिए जर
पर्यावरण संरक्षण में बाल काव्य की भूमिका
Posted on 03 Feb, 2014 01:22 PM पर्यावरण शब्द का निर्माण परि और आवरण शब्दों को मिलाकर हुआ है। पर्यावरण का तात्पर्य है आस-पास का परिवेश और वातावरण। पर्यावरण में प्रकृति के विभिन्न अंगोपांग सम्मिलित है। इसमें वायु धरा, आकाश समुद्र,पर्वत, वन-उपवन, खेत-बाग-वाटिका, वृक्ष-लता-पुष्प-पल्लव, जीवन-जन्तु आदि का समावेश है। चिरकाल तक प्राकृतिक सम्पदा की सुरक्षा और जीवन जन्तुओं के संरक्षण के कारण पर्यावरण विशुद्ध एवं सतुलित रहा है। किन्तु ज्य
बदलाव की चाहत में बदलू नहीं बदला
Posted on 31 Jan, 2014 04:57 PM 01 फरवरी 2014/ जहां चाह वहां राह की कहावत चरितार्थ होते दिख रही है। बुन्देलखण्ड के सूखाधारी क्षेत्र महोबा जिले के गांवों में । जिले के कबरई विकासखण्ड में बरबई गांव के किसान बदलू विश्वकर्मा के पास खेती के नाम पर साढ़ॆ तीन एकड़ जमीन है। जिसमें मेहनत-मशक्कत के बावजूद भी मिलने वाली फसल इतनी भी नहीं होती थी, कि परिवार के खर्चे चल सकें। बदलू कभी हार नहीं माना, वह घाटे-मुनाफे को अनदेखा कर खेती करता रहा ।
प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन
Posted on 31 Jan, 2014 12:26 PM

प्राकृतिक संसाधन

भौतिक जगत के समस्त प्राणियों की उत्पत्ति एवं सृजन पंच महाभूतों यथाक्षिति, जल, पावक, गगन, समीर से हुई है। इन पंच महाभूतों को ही ‘‘भगवान‘‘ की संज्ञा भी दी जा सकती है, क्योंकि भगवान शब्द चार व्यंजन एवं एक स्वर के योग से बना है। यथा भ-भूमि, ग-गगन, व-वायु, अ-अग्नि एवं न-नीर। इन पंचतत्वों में जीवन के मुख्य आधार भूमि, जल एवं वनस्पति को प्रमुखता देते हुये मनीषियों ने इसे प्रथम ती
सूखे की त्रासदी से हौसले परास्त
Posted on 29 Jan, 2014 01:44 PM 28 जनवरी 2014 बुन्देलखण्ड में बहुतेरे गांव के किसानों को सूखे की त्रासदी ने उनके हौसलों को परस्त करके रख दिया है। किसान सोंचे भी तो क्या जब भी कोई योजना अपनी खेती को संवारने की बनाता है तो पैसा आड़े आता है। बैंको की गिरफ्त में फंसे किसानों को कर्ज से उबरने का कोई जरिया ही नहीं दिख रहा।
महोबा में जैव विविधता संरक्षण एवं संवर्धन संगोष्ठी
Posted on 26 Jan, 2014 02:11 AM 25 जनवरी 2014 उत्तर प्रदेश बुन्देलखण्डद्ध के महोबा जनपद में जैव विविधता के संरक्षण एवं संब़र्द्धन विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया जाना तय हुआ है।
ऐतिहासिक मदन सागर के सुन्दरीकरण का रास्ता साफ
Posted on 26 Jan, 2014 02:04 AM

61.21 करोड़ की एनआरसीडी योजना

बारिश और सपने
Posted on 19 Jan, 2014 05:03 PM सागर की लहरों पर

छलांग लगाता है एक लड़का

और लहर-संगीत से खुलती है

सागर तट पर

स्वप्निल एक खिड़की

खिड़की के जगमग फ्रेम में जड़ी

अपनी छत के नीचे खड़ी

भीगती है एक लड़की

दूर सागर पर गिरती बूंदों से

सरोबार भीगने का

सुख उसका उसका अपना है

खिड़की से सागर तक तिरती
चुल्लू की आत्मकथा
Posted on 19 Jan, 2014 04:41 PM मैं न झील न ताल न तलैया,न बादल न समुद्र

मैं यहां फंसा हूँ इस गढै़या में

चुल्लू भर आत्मा लिए,सड़क के बीचों-बीच

मुझ में भी झलकता है आसमान

चमकते हैं सूर्य सितारे चांद

दिखते हैं चील कौवे और तीतर

मुझे भी हिला देती है हवा

मुझ में भी पड़कर सड़ सकती है

फूल-पत्तों सहित हरियाली की आत्मा
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