जम्मू और कश्मीर

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कल्याणकारी योजनाओं से लोग पा सकते हैं रोज़गार
Posted on 09 Dec, 2014 03:59 PM

इस प्रोजेक्ट के तहत चल रहे कामों की स्थिति को जानने के लिए अंजुमन देही कलमकराने, सुरनकोट (ग्राम

जम्मू कश्मीर चुनाव और बाढ़ प्रभावित
Posted on 27 Nov, 2014 01:30 PM बांध मज़बूत होता तो कभी भी नदी का पानी शहर में प्रवेश नहीं करता और
बाढ़ के बाद रोज़गार की तलाश
Posted on 11 Nov, 2014 04:09 PM बाढ़ के बाद पैदा हुए हालात से निपटने के लिए ज़रूरी है कि प्रभावित ल
बाढ़ के बाद बेबस हुए लोग
Posted on 30 Oct, 2014 02:57 PM बाढ़ के बाद इस गांव में लोगों को आजीविका के साधन जुटाना भी एक बड़ी
कहां से लाऊं हिम्मत जीने की
Posted on 30 Oct, 2014 02:54 PM हमारे घर के जख्मी लोगों के इलाज में 90 हजार रुपए लगे हैं जोकि हमने
... ताकि झूठ न हो जाए पर्वतराज का गीत
Posted on 18 Oct, 2014 03:15 PM

हिमालय के बारे में एक बात और अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि पहले पूरे लघु हिमालय क्षेत्र में एक सम

Himalaya
बाढ़ के बाद दूभर हुई जिंदगी
Posted on 02 Oct, 2014 11:47 AM

जम्मू कश्मीर में आई भयंकर बाढ़ ने राज्य का नक्शा ही बदलकर रख दिया है। बाढ़ ने धरती के इस स्वर्ग को पूरी तरह नर्क में बदल दिया है। बाढ़ के बाद जो कुछ हुआ वह एक बुरे सपने की तरह था। बाढ़ की वजह से राज्य में अरबों की निजी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा। समूचे जम्मू एवं कश्मीर में सड़क संपर्क, बिजली, जल आपूर्ति और संचार सुविधाअों के साथ-साथ लोगों के घर बुरी तर

Badh
पुंछ त्रासदी: बरसों तक दुहराई जाएगी यह कथा
Posted on 02 Oct, 2014 11:21 AM

सितंबर के शुरुआत में जब जम्मू कश्मीर में बारिश शुरु हुई तो किसी ने यह अंदाजा भी नहीं लगाया होगा कि चंद दिनों में ही यह पूरा राज्य उस स्थिति का गवाह बनेगा जो पिछले 6 दशकों में किसी भी पीढ़ी ने नहीं देखा। जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ अपने साथ तबाही और बर्बादी का वह मजंर लेकर आई है जिसके निशान शायद दशकों तक न तो जमीन से मिटेंगे और न तो लोगों के दिलों से। इस बाढ़ की

Flood
पुंछ: बाढ़ की भयावह तस्वीर
Posted on 23 Sep, 2014 10:30 AM लोगों के व्यक्तिगत नुकसान के अलावा पुंछ जिले को संरचनागत नुकसान भी
झीलें बचाई होती तो जन्नत के यह हाल ना होते
Posted on 21 Sep, 2014 04:24 PM कश्मीर का अधिकांश झीलें आपस में जुड़ी हुई थीं और अभी कुछ दशक पहले तक यहां आवागमन के लिए जलमार्ग का इस्तेमाल बेहद लोकप्रिय था। झीलों की मौत के साथ ही परिवहन का पर्यावरण-मित्र माध्यम भी दम तोड़ गया। ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण की मार, अतिक्रमण के चलते कई झीलें दलदली जमीन में बदलती जा रही हैं। खुशलसार, गिलसार, मानसबल, बरारी नंबल, जैना लेक, अंचर झील, वसकुरसर, मीरगुड, हैईगाम, नरानबाग,, नरकारा जैसी कई झीलों के नाम तो अब कश्मीरियों को भी याद नहीं हैं। कश्मीर का अधिकांश भाग चिनाब, झेलम और सिंधु नदी की घाटियों में बसा हुआ है। जम्मू का पश्चिमी भाग रावी नदी की घाटी में आता है। इस खूबसूरत राज्य के चप्पे-चप्पे पर कई नदी-नाले, सरोवर-झरने हैं। विडंबना है कि प्रकृति के इतने करीब व जल-निधियों से संपन्न इस राज्य के लोगों ने कभी उनकी कदर नहीं की। मनमाने तरीके से झीलों को पाट कर बस्तियां व बाजार बनाए, झीलों के रास्तों को रोक कर सड़क बना ली।

यह साफ होता जा रहा है कि यदि जल-निधियों का प्राकृतिक स्वरूप बना रहता तो बारिश का पानी दरिया में होता ना कि बस्तियों में कश्मीर में आतंकवाद के हल्ले के बीच वहां की झीलों व जंगलों पर असरदार लोगों के नजायज कब्जे का मसला हर समय कहीं दब जाता है, जबकि यह कई हजार करोड़ रुपए की सरकारी जमीन पर कब्जा का ही नहीं, इस राज्य के पर्यावरण को खतरनाक स्तर पर पहुंचा देने का मामला है। कभी राज्य में छोटे-बड़े कुल मिला कर कोई 600 वेटलैंड थे जो अब बमुश्किल 12-15 बचे हैं।
Buller Lake
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