इंदौर जिला

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बूँदों से जुड़ा शिक्षण
Posted on 04 Sep, 2015 10:41 AM

विश्व साक्षरता दिवस 08 सितम्बर 2015 पर विशेष


पानी संचय प्रणाली और तकनीकें अब सर्वोच्च प्राथमिकता में होना चाहिए- इस भाव को गाँव-गाँव और जन-जन तक फैलाने के लिये जरूरी है कि समाज में इस तरह का वातावरण निर्मित किया जाये। इस वातावरण निर्माण के लिये यह आवश्यक है कि पानी संचय के प्रति जागरुकता को और विस्तारित किया जाये।
water
चन्द्रकेशर बाँध लबालब तो खिले किसानों के चेहरे
Posted on 21 Aug, 2015 11:05 AM

जलस्रोत अपने इलाके की तकदीर रचते हैं। यह बात एक बार फिर साबित हुई है। करीब पाँच साल बाद इस बार अच्छी बारिश से चन्द्रकेशर बाँध लबालब भर गया है। इससे आस-पास के गाँवों के करीब साढे तीन हजार से ज्यादा किसानों के चेहरे पर चमक आ गई है। बाँध में इतना पानी आ जाने से अब यह पक्का हो गया है कि यहाँ की जमीनें अब रबी की फसलों के रूप में सोना उगलेंगी। इस बाँध के आसपास से करीब 10 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन में र

chandrakeshar dam
600 करोड़ खर्च करने के बाद भी पानी नहीं, अब सहेजेंगे कुएँ-बावड़ियाँ
Posted on 18 Aug, 2015 10:12 AM

मध्यप्रदेश के महानगर इन्दौर की तेजी से बढ़ती हुई आबादी को पानी देने में नगर निगम के हाथ–पाँव फूल रहे हैं। बीते साल 600 करोड़ की भारी भरकम राशि खर्चकर करीब 50 कि.मी.

well
जंगल, बूँदें और जीवन
Posted on 08 Aug, 2015 04:35 PM

आदिवासियों का यह पलायन इसलिए ज्यादा चिंताजनक हैं, क्योंकि यह सुविधाओं की खातिर न होकर अपने को ज

forest
खान नदी हुई ज़हरीली
Posted on 26 Jul, 2015 03:50 PM क्षिप्रा की सहायक नदी खान इतनी बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है कि इसका पानी जहरीला हो गया है। अब इसके पानी के उपयोग पर भी पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। दरअसल कई गंदे नालों का पानी और कुछ उद्योगों का हानिकारक अपशिष्ट रसायन मिलने से इस नदी की यह हालत हुई है। यह नदी उज्जैन से पहले क्षिप्रा नदी में मिलती है। उज्जैन में अप्रैल 2016 में क्षिप्रा नदी के किनारे सिंह
kahn river
पहले पानी फिर निर्मल गांव
Posted on 15 Oct, 2012 05:10 PM समग्र स्वच्छता अभियान, मर्यादा अभियान, निर्मल ग्राम एवं अन्य कई नाम से ग्रामीण भारत को समग्र रूप से स्वच्छ बनाने का कार्य लंबे अर्से से चल रहा है, जिसमें एक महत्वपूर्ण घटक है - खुले में शौच खत्म करना। लेकिन क्या खुले में शौच को खत्म करना आसान है? इसका सकारात्मक जवाब मिलना फिलहाल मुश्किल है क्योंकि अब तक देश में निर्मल ग्राम घोषित किए गए अधिकांश गांवों में लोग खुले में शौच आज भी जा रहे हैं।
जयराम रमेश कार्यकेरम में शिरकत करते हुए
पेड़-पौधों को बिसराता समाज
Posted on 13 Jul, 2010 01:04 PM शहरों में रोशनीयुक्त प्लास्टिक के बड़े-बड़े वृक्ष देखकर अजीब से मितलाहट होती है। अगर शहरी बाग-बगीचों में प्राकृतिक वृक्षों एवं पौधों के लिए ही स्थान नहीं है तो इनके होने का क्या फायदा? आवश्यकता इस बात की है कि शहरों को एक बार पुनः वृक्षों से आच्छादित करने के प्रयास पूरी ईमानदारी से प्रारंभ किए जाएं तभी हम जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को धीमा कर सकते हैं। अधिकांश शहरवासियों का अब पेड़ों से कोई वास्ता नहीं रह गया है। पेड़-पौधों से जुड़े धार्मिक, सांस्कृतिक, रीति-रिवाजों के लिए अब हमारे पास समय नहीं है। दादी मां के नुस्खों को शहरियों ने तिलांजलि दे दी है। पेड़-पौधे पर शहरी जीवन की निर्भरता नहीं रही। धीरे-धीरे यह लगने लगा है कि पेड़-पौधे बेकार हैं। दरअसल पेड़-पौधों की उपयोगिता भरे ज्ञान को हम भूल गए हैं। यही कारण है कि शहरी बंगलों में विदेशी फूलों के पौधे लगाए जाते हैं और सुंदर दिखने वाली पत्तियों को बड़े जतन से सहेजा जाता है।

पश्चिमी संस्कृति की चलती बयार से हमारा पेड़-पौधों से रिश्ता टूट सा गया। घर-आंगन में तुलसी चौरा की अनिवार्यता अब कहीं नहीं दिखती। पूजा-अर्चना के लिए फूल एवं फूलमाला की अब कोई जरुरत नहीं रही। जैसे-जैसे परिवार टूटते गए, वैसे-वैसे घर छोटा होता चला गया। पेड़- पौधों की महत्ता बताने वाले, धार्मिक, सांस्कृतिक पर्व को मनाने वाले दादा-दादी, नाना-नानी का परम्परागत ज्ञान बेकार हो चला।
नर्मदा की छाती पर एक नया पत्थर
Posted on 09 Apr, 2010 04:07 PM भीष्म जी कहते हैं, ‘‘युधिष्ठिर ! जिन वृक्षों के फल खाने के काम आते हैं, उनको तुम्हारे राज्य में कोई काटने न पावे-इसका ध्यान रखना।’’ - ‘महाभारत-शान्तिपर्व’

जिस समय दिल्ली में सरदार सरोवर बांध की ऊँचाई को 122 मीटर से बढ़ाकर 139 मीटर किए जाने की बैठक चल रही थी, ठीक उसी समय इंदौर के विसर्जन आश्रम में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री सुश्री मेधा पाटकर 11 अप्रैल 2010 से प्रारंभ होने वाली जीवन अधिकार यात्रा एवं इंदौर स्थित नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) पर होने वाले अनिश्चितकालीन धरने की रूपरेखा समझा रहीं थीं। बैठक में शहर के नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। एकाएक फोन बजा और खबर आई कि देवेन्द्र पांडे की अध्यक्षता में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा गठित पर्यावरणीय उप समिति जो कि सरदार सरोवर एवं इंदिरा सागर परियोजनाओं में पर्यावरणीय सुरक्षा से संबंधित दिशानिर्देशों
बूँदों में गाँधी दर्शन ‘बूंदों की मनुहार’
Posted on 27 Jan, 2010 06:16 PM भारत का लम्बा इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्द्धन की जिम्मेदारी समाज खुद ही वहन करते आया है। रियासतों का काल हो या लोकतांत्रिक सरकारों का दौर, ग्रामीण समाज अपने परिवेश के लिए सत्ता संस्थानों पर आश्रित नहीं रहते आया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो से समाज में यह धारणा घर करती गई कि जो कुछ भी करना है, सरकार ही करेगी। गाँव के काम को हम अपना काम क्यों समझे?
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