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क्या हो हमारा ई-कचरा प्रबंधन मॉडल
Posted on 28 May, 2010 08:28 AM
भारत को क्या दुनिया भर में बढ़ते कबाड़ और जहरीले कचरे के ढेर का आयात करना चाहिए और उसे पुन:चक्रित कर इस्तेमाल में लाना चाहिए? क्या यह हमारे लिए एक कारोबारी संभावना के रूप में उभर सकता है? क्या इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए क्योंकि धनी देशों को इलेक्ट्रॉनिक से लेकर चिकित्सा उत्पादों तक के कचरे का निस्तारण करने के लिए सस्ते और प्रभावी साधन की जरूरत है?
कम्पोस्ट परिभाषा (Compost Definition in Hindi)
Posted on 26 May, 2010 11:33 AM

कम्पोस्ट परिभाषा (Compost Definition in Hindi) 1. कम्पोस्ट - (पुं.) (वि.) - (अं.) कृषि वि. खेती में प्रयोग की जाने वाली वह खाद जिसमें प्रमुख रूप से कार्बन और खनिज पदार्थ रहते हैं तथा जो कार्बनिक पदार्थों के विघटन से तैयार की जाती है। टि. प्राय: सड़े-गले पौधों, पशुओं के मल इत्यादि को मिटटी में कुछ समय तक दबाकर यह खाद प्राप्‍त की जाती है। compost

खाद बनने के लिए गोबर आदि को सड़ाना पड़ता है, ऐसी भाषा हम बोलते हैं और ‘सड़ाना’ शब्द के साथ कुछ कमी का, बिगाड़ का भाव है। असल में उसे हम ‘सड़ाना’ नहीं, ‘पकाना’ कहेंगे, ‘गलाना’ कहेंगे जैसे कि अनाज पकाकर खाया जाता है।

कम्पोस्ट परिभाषा (Compost Definition in Hindi) 2. मैले से माने गये अनर्थ का मूल कारण यह है कि उसे चीन में कच्चा या अधपका ही उपयोग में लाया जाता होगा। यह हमने ऊपर देखा। किसी चीज का खाद के तौर पर उपयोग करने के पहले वह पूरी गली हुई याने पकी होनी चाहिए, यह बात आदमी प्राचीन काल से जानता आया है। गोबर के गलने के बाद ही खाद के तौर पर किसान उसका उपयोग करता है। गोबर आदि को ताजा देने के बजाय सड़ा-गलाकर देना अधिक उपयोगी है। यह बात जरा विचित्र तो लगती है क्योंकि और चीजें तो ताजी अच्छी होती हैं, जैसा कि हम अनुभव करते हैं, फिर खाद के संबंध में यह उल्टी बात क्यों? इसकी एक वजह तो यह है कि खाद बनने के लिए गोबर

“किफायती, स्थाई सेनिटेशनः भारतीय अनुभव” पर राष्ट्रीय सम्मेलन
Posted on 14 May, 2010 06:42 PM
भारत में नागरिक समाज संगठनों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों, संयुक्त राष्ट्र के सक्रिय समर्थन और जुड़ाव के साथ, राज्य और केंद्र सरकारों के लगातार प्रयास स्वच्छता के क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। हालांकि, सेनिटेशन की तरफ रुझान बढ़ रहा है फिर भी खुले में शौच मुक्त (ODF) गांवों में फिर से वही परम्परा शुरु हो रही है, बढ़ती जनसंख्या और लगातार पलायन के कारण शहरी स्लमो
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आज भी खरे हैं तालाब
Posted on 05 May, 2010 02:01 PM


अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।

आज भी खरे हैं तालाब
नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल
Posted on 02 May, 2010 11:53 AM तमाम तरह के प्रदूषण से जूझ रहे लोगों को अब शीघ्र ही शिकायत का मंच मिल जाएगा। नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल का बिल आ चुका है। और लोकसभा ने उसको पास भी कर दिया है। अब इसको कानून के बन जाने के बाद लोग प्रदूषण संबंधी शिकायतों के लिए इस ट्राइब्यूनल का दरवाजा खटखटा सकेंगे।

सभी मामलों को लेकर जन सुनवाई का प्रावधान


बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिन इस ट्राइब्यूनल से संबंधित विधेयक पर चर्चा शुरू हो गई थी। इस विधेयक में जल, वायु, ध्वनि प्रदूषण के साथ ही वन कानूनों के उल्लंघन के सभी मामलों को लेकर जन सुनवाई का प्रावधान है। मसलन, प्रदूषण की वजह से यदि किसी क्षेत्र में पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, लोगों को बीमारियां हो रही हैं तो इसकी शिकायत भी ट्राइब्यूनल से की जा सकेगी।
स्वच्छता सबका अधिकार है - इंदिरा खुराना
Posted on 21 Mar, 2010 01:00 PM

विश्व जल दिवस के अवसर पर विशेष रेडियो श्रृंखला “जल है तो कल है” इंडिया वाटर पोर्टल प्रस्तुत कर रहा है। यह कार्यक्रम वन वर्ल्ड साउथ इंडिया के सहयोग से प्रस्तुत किया जा रहा है। 19 मार्च को प्रसारित कार्यक्रम की मेहमान इंदिरा खुराना जी हैं, जो वाटरएड की पालिसी और पार्टनर डायरेक्टर हैं।
 

यह कार्यक्रम एआईआर एफएम रेनबो इंडिया (102.6 मेगाहर्टज) पर रोजाना 18-23 मार्च, 2010 तक समय 3:45- 4:00 शाम को आप सुन सकते हैं।

Indira Khurana
यत्र-तत्र-सर्वत्र पानी ही पानी
Posted on 16 Mar, 2010 12:25 PM पृथ्वी की सतह पर पानी समुद्र, नदियों, झीलों से लेकर बर्फ से ढंके क्षेत्रों के रूप में मौजूद है। पानी का सबसे बड़ा स्रोत समुद्र है जहाँ धरती का 97.33% पानी पाया जाता है। समुद्र के पानी में अनेक प्रकार के लवण एवं खनिज घुले होते हैं जिसकी वजह से वह खारा होता है। भार के अनुसार समुद्र जल में 3.5% लवण खनिज होते हैं। हमारी धरती की सतह का 70.8% भाग पानी से घिरा है। धरती के कुल पानी का 2.7% से भी कम हिस्सा
वराहमिहिर का उदकार्गल
Posted on 23 Feb, 2010 04:58 PM सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद वराहमिहिर की बृहत्संहिता में एक उदकार्गल (जल की रुकावट) नामक अध्याय है। 125 श्लोकों के इस अध्याय में भूगर्भस्थ जल की विभिन्न स्थितियाँ और उनके ज्ञान संबंधी संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न वृक्षों-वनस्पतियों, मिट्टी के रंग, पत्थर, क्षेत्र, देश आदि के अनुसार भूगर्भस्थ जल की उपलब्धि का इसमें अंदाज दिया गया है। यह भी बताया गया कि किस स्थिति में कितनी गहराई पर जल
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