दिल्ली

Term Path Alias

/regions/delhi

‘अदृश्य भारत’ : मैला ढोने के बजबजाते यथार्थ से मुठभेड़’ किताब का विमोचन
Posted on 08 Jun, 2012 10:10 AM जुझारू पत्रकार भाषा सिंह द्वारा लिखित किताब ‘अदृश्य भारत’ मैला ढोने वालों के बजबजाते यथार्थ को बताती है। कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक यह उस भारत की दास्तान है, जो दिखाई नहीं देता। एक ऐसा अदृश्य भारत, जो किसी गिनती में नहीं है। यह किताब इसी का आईना है। भाषा सिंह ने देश के दस राज्यों में खदबदा रहे उस परिवर्तन को पकड़ने की कोशिश की है, जिसे उन्होंने पिछेल आठ साल में देखा है।
हासिये पर बच्चों का पर्यावरणीय अधिकार
Posted on 07 Jun, 2012 10:20 AM

एक तरफ हमारा तथा कथित विकसित समाज पर्यावरण को ताक पर रखकर प्लास्टिक के उपयोग में लगा हुआ है वही दूसरी ओर पन्नी व

बिना सरकारी मदद के बनते शौचालय
Posted on 06 Jun, 2012 11:10 AM जहां एक तरफ हमारे ग्रामीण विकास मंत्री यह जानकर परेशान हैं कि भारत को खुला शौच मुक्त देश बनाने कि दिशा में धीमी प्रगति हुई है। वहीं कोलकाता के कमल कर ने बिना सरकारी मदद से लोगों को शौचालय मुहैया करा रहे हैं। देश में फोन धारकों और टीवी देखने वालों की संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है तो संचार क्रांति के इसी असर को इस समस्या से लड़ने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस समस्या
शौचालय मुहैया करा देने से ही सेनिटेशन नहीं आ जाता
Posted on 06 Jun, 2012 10:12 AM आजादी के 64 साल बाद भी देश के सिर्फ 47 प्रतिशत घरों में ही शौचालय की सुविधा मौजूद है। बाकी 53 प्रतिशत यानी देश की आधे से भी ज्यादा जनता खुले में ही निवृत होने को मजबूर हैं। हालांकि पिछले 10 सालों में, इसमें 13 प्रतिशत का सुधार हुआ है। 2001 में सिर्फ 34 प्रतिशत घरों में ही शौचालय था। लेकिन स्थिति अब भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं है। महज शौचालय मुहैया करा देने से ही काम पूरा नहीं जाता उसके लिए जरूरी ह
अनाज की बर्बादी इस तरह रोकिए
Posted on 04 Jun, 2012 04:50 PM

एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का अनाज नष्ट हो जाता है। सरकार ने बफर नॉर्म्स तय क

आधुनिक विकास के दौड़ में खत्म होते जंगल
Posted on 04 Jun, 2012 09:41 AM प्रकृति ने जिस जंगल को हमें देकर न केवल जंगल में औषधि, पशु-पक्षी आदि को अपने गोद में पाला बल्कि हमें भी अपने ही गोद में पालकर अनेक प्रकार के प्राकृतिक औषधियां, पानी, लकड़ी सभी चीजों को उपलब्ध कराया आज उसी जंगल को हम उजाड़ने में लगे हैं कहीं खनन करके तो कहीं बांध बांधकर अपने आधुनिक सुविधाओं की पूर्ति के लिए इन जंगलों को खत्म करने के होड़ में लगे हैं।
परिवर्तन के लिए यात्रा
Posted on 02 Jun, 2012 11:48 AM

हमारे वनवासी पहले ही बड़े बांधों के नाम पर उजाड़े जाते रहे हैं और अब बड़ी पूंजी के नाम पर उन्हें बेदखल किया जा रहा है। तिजोरियों वाला ‘इंडिया’ अलग देश है और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता और नक्सलवाद से जूझता ‘हिन्दुस्तान’ एक अलग देश है और दोनों ही के बीच एक गहरी खाई है। एक तरफ हम अपनी सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर आराम के साधन जुटा रहे हैं तो दूसरी तरफ लाखों लोग अपनी भूमि और आजीविका के संसाधनों से वंचित हो रहे हैं।

भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या की 16 प्रतिशत है, जबकि भारत भूमि का रकबा विश्व रकबे का मात्र 2 प्रतिशत है और हम हैं कि बड़े उद्योगों, विशेष आर्थिक क्षेत्र (एस.ई.जेड.) और चौड़ी सड़कों इत्यादि के नाम पर अमीरों के फायदे के लिए भूमि बर्बाद करते जा रहे हैं। जो कारखाना 500 एकड़ में बनने वाला है, वहां पांच हजार से दस हजार एकड़ तक भूमि की मांग करते हैं और कमोवेश वे इसे ले भी सकते हैं।
रोजमर्रा के जीवन में कचरा करते हम
Posted on 31 May, 2012 08:59 AM आज जो कचरा हमारे पर्यावरण और भूजल को नुकसान पहुंचा रहा है। उसे हमने ही तो जमा किया है। पेन, शेविंग किट, दूध की थैली, पानी का बोतल आदि सभी चीजें प्लास्टिक में ही आती है जिसे हर हफ्ते कचरा बढ़ाने वाले ‘यूज एंड थ्रो’ के रूप में प्रयोग करते हैं। पूरे देश में हर रोज चार करोड़ दूध की थैलियां और दो करोड़ पानी की बोतलें कूड़े में फेंकी जाती हैं। इस बढ़ते कचरा के बारे में जानकारी दे रहे हैं पंकज चतुर्वे
Plastic Trash
सराय एक्ट का मिट जाना
Posted on 30 May, 2012 10:38 AM

जब कोई मेहमान घर पर आता है तो उसे सबसे पहले पानी पिलाया जाता है। जेठ की दोपहरी में व चिलचिलाती गर्मी में धर्मलाभ

शौचालय या मोबाइल फोन
Posted on 29 May, 2012 04:31 PM अक्सर व्यंग में कहा जाता है और शायद आपने पढ़ा भी हो कि हमारे देश में आज संडास से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। अगर यहां हर व्यक्ति के पास मल त्यागने के लिए संडास हो तो कैसा रहे?
×