Posted on 18 Mar, 2010 12:14 PM जो रोहिनि बरसा करै, बचै जेठ नित मूर। एक बूँद कृतिका पड़ै, नासै तीनों तूर।।
भावार्थ- घाघ का कहना है कि रोहिणी नक्षत्र में वर्षा हो तो जेठ मास में न होने से कोई लाभ-हानि नहीं है, लेकिन यदि कृतिका नक्षत्र में एक बूँद भी पानी बरस गया तो तीनों फसलें नष्ट हो जायेंगी।
Posted on 18 Mar, 2010 12:07 PM जो कहुं हवा अकासे जाय, परै न बूंद काल परि जाय। दक्खिने पच्छिम आधे समयो, भड्डर जोसी ऐसो मनयो।।
भावार्थ- यदि आषाढ़-सावन में हवा ऊपर (आकाश) की ओर उठे तो यह समझना चाहिए की पानी नहीं बरसेगा और अकाल पड़ जाएगा। भड्डर ज्योतिषी कहते हैं कि ऐसी स्थिति में दक्षिण-पश्चिम की दिशा में थोड़ी फसल पैदा होने की आशा है।
Posted on 18 Mar, 2010 11:53 AM जो न बरसे पुनर्वसु स्वाती। चरखा चले न बोले ताँती।
भावार्थ- यदि पुनर्वसु और स्वाति नक्षत्र में वर्षा नहीं हुई तो न चरखा चल पायेगा और नही ताँत बजेगी अर्थात् रुई धुनी नहीं जाएगी क्योंकि कपास की फसल नष्ट हो जायेगी।
Posted on 18 Mar, 2010 11:12 AM जब बहै हड़हवा कोन। तब बनजारा लादै नोन।
शब्दार्थ- हड़हवा-नैऋत्य कोण (पश्चिम दक्षिण कोण)।
भावार्थ- यदि पश्चिम दक्षिण के कोने की हवा बहे तो बनजारों को नमक लादने से नहीं डरना चाहिए क्योंकि पानी बरसने के आसार नहीं है और नमक गलने का भय नहीं रहेगा।