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जै दिन जेठ बहे पुरवाई
Posted on 20 Mar, 2010 09:45 AM
जै दिन जेठ बहे पुरवाई
तै दिन सावन धूरि उड़ाई।।


भावार्थ- जेठ में जितने दिन पुरवा हवा चलेगी सावन में उतने दिन धूल उड़ेगी यानी पानी नहीं बरसेगा।

चैत मास उजियाले पाख
Posted on 20 Mar, 2010 09:44 AM
चैत मास उजियाले पाख, आठें दिवस बरसत राख।
नव बरसे जित बिजली जोय, ता दिसि काल हलाहल होय।।


भावार्थ- यदि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को धूल उड़े और नवमी को पानी बरसे तो जिस दिशा में बिजली चमकी, समझो उस दिशा में अकाल पड़ने वाला है।

चटका मघा पटकिगा ऊसर
Posted on 20 Mar, 2010 09:30 AM
चटका मघा पटकिगा ऊसर।
दूध भात में परिगा मूसर।।


भावार्थ- यदि मघा नक्षत्र सूखा चला जाय तो समझो कि सारी जमीन ऊसर बन जायेगी और किसान को दूध-भात भी नहीं मिलेगा।

चित्रा स्वाति विसाखड़ी
Posted on 20 Mar, 2010 09:23 AM
चित्रा स्वाति विसाखड़ी, जो बरसै आसाढ़।
भागो लोग विदेस को, पड़े अकाल प्रगाढ़।।


भावार्थ- यदि आषाढ़ के महीने के चित्रा, स्वाती और विशाखा नक्षत्रों में वर्षा न हुई तो अकाल पड़ना निश्चित है। ऐसे में लोगों को छोड़ कर विदेश में शरण लेनी पड़ेगी।

कृष्ण अषाढ़ी प्रतिपदा
Posted on 20 Mar, 2010 09:14 AM
कृष्ण अषाढ़ी प्रतिपदा, जो अम्बर गरजन्त।
छत्री छत्री जूझिया, निहचै काल पड़न्त।।


शब्दार्थ- जूझिया-लड़ना।

भावार्थ- आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा को यदि आसमान में बादल गरजें तो क्षत्रिय आपस में लड़ेगे और अकाल पड़ेगा।

कर्क रासि में मंगलवारी
Posted on 20 Mar, 2010 09:08 AM
कर्क रासि में मंगलवारी।
ग्रहण परै दुर्भिक्ष बिचारी।।


भावार्थ- यदि चन्द्रमा कर्क राशि में हो तथा मंगल के दिन चंद्रग्रहण पड़े तो अकाल पड़ना निश्चित है।

कर्क संक्रमी मंगलवार
Posted on 20 Mar, 2010 09:02 AM
कर्क संक्रमी मंगलवार। मकर संक्रमी सनिहि बिचार।
पंद्रह महुरतावरी होय। देस उजाड़ करै यों जोय।।


शब्दार्थ- मुहुरतवारी – मुहूर्त (दिन रात का 30वां भाग)

भावार्थ- यदि कर्क नक्षत्र की संक्रांति मंगल को पड़े और मकर की संक्रांति शनि को और वह पंद्रह मुहूर्त की हो तो ऐसा भीषण अकाल पड़ेगा की देश उजड़ जायेगा।

कृतिका तो कोरी गई
Posted on 20 Mar, 2010 09:00 AM
कृतिका तो कोरी गई, अद्रा मेह न बूंद।
तो यों जानो भड्डरी, काल मचावे दुंद।।


शब्दार्थ- कोरी-खाली, दुंद – लड़ाई-झगड़ा, संघर्ष। काल-अकाल।

भावार्थ- भड्डरी का मानना है कि यदि आर्द्रा नक्षत्र में पानी न बरसा कृत्तिका नक्षत्र भी वर्षा से खाली गयी तो अकाल पड़ना तय है।

काहे पंडित पढ़ि पढ़ि मरो
Posted on 20 Mar, 2010 08:56 AM
काहे पंडित पढ़ि पढ़ि मरो, पूस अमावस की सुधि करो।
मूल विसाखा पूरबाषाढ़, झूरा जान लो बहिरें ठाढ़।।


भावार्थ- हे पंडितों! बहुत पढ़-पढ़कर क्यों जान देते हो? पौष की अमावस्या को देखो, यदि उस दिन मूल, विशाखा या पूर्वाषाढ़ नक्षत्र हों तो समझ लो सूखा पड़ेगा और अकाल घर के बाहर ही खड़ा है।

कातिक मावस देखो जोसी
Posted on 20 Mar, 2010 08:52 AM
कातिक मावस देखो जोसी। रवि सनि भौमवार जो होखी।
स्वाति नखत अरु आयुष जोगा। काल पड़ै अरु नासैं लोगा।।


भावार्थ- भड्डरी का कहना है कि ज्योतिषी को कार्तिक की अमावस्या को यह देख लेना चाहिए कि उस दिन रविवार, शनिवार और मंगलवार, स्वाती नक्षत्र तथा आयुष्य योग तो नहीं है। यदि ऐसा है तो अकाल पड़ेगा और मनुष्यों का नाश होगा।

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