Posted on 20 Mar, 2010 02:37 PM सावन सुक्ला सत्तमी, उभरे निकले भान। हम जायें पिय माइके, तुम कर लो गुजरान।।
भावार्थ- यदि श्रावण शुक्ल सप्तमी को सूर्य के उदय होने के समय आसमान स्वच्छ हो तो हे प्रियतम! मैं मायके जा रही हूँ और तुम किसी प्रकार अपना गुजारा कर लेना क्योंकि भीषण अकाल पड़ने वाला है।
Posted on 20 Mar, 2010 01:40 PM सावन सुक्ला सत्तमी, उवत जो दीखै भान। या जल मिलि है कूप में, या गंगा असनान।।
भावार्थ- यदि श्रावण शुक्ल सप्तमी को स्वच्छ आकाश में सूर्य उदय होता हुआ दिखाई पड़े तो वर्षा नहीं होगी, निश्चय ही सूखा पड़ेगा। ऐसी स्थिति आ जायेगी कि पानी या कुएँ में दिखेगा या गंगास्नान करने में गंगा में मिलेगा।
Posted on 20 Mar, 2010 01:32 PM सावन सुक्ला सत्तमी, चन्दा छिटिक करै। की जल देखौ कूप में, की कामिनी सीस धरै।।
शब्दार्थ- कूप-कुआँ। कामिनी-स्त्री।
भावार्थ- यदि सावन शुक्ल सप्तमी को चाँदनी फैली हो तो वर्षा नहीं होगी, सूखा पड़ेगा। ऐसे में पानी या तो कुँए मे दिखेगा या फिर स्त्रियों के सिर पर रखे घड़े में।
Posted on 20 Mar, 2010 01:27 PM सावन पुरवाई चलै, भादों में पछियाँव। कन्त डँगरवा बेचि के, लरिका जाइ जियाव।।
शब्दार्थ- कन्त स्वामी। डँगरवा-पशु। लरिका-बच्चा।
भावार्थ- यदि सावन महीने में पुरवा हवा बहे और भाद्र में पछुवा, तो हे स्वामी! पशुओं को बेच दो और बच्चों को पालने की चिन्ता करो क्योंकि वर्षा नहीं होगी और अकाल पड़ेगा।
Posted on 20 Mar, 2010 12:50 PM माघे नौमी निरमली, बादर रेख न जोय। तौ सरवर भी सूखहीं, महि में जल नहिं होय।।
शब्दार्थ- निरमली-स्वच्छ। महि-धरती।
भावार्थ- यदि माघ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को आकाश बिल्कुल स्वच्छ हो और आकाश में बादल की एक रेख तक न हो तो सारे तालाब सूख जायेंगे, पूरी धरती पर कहीं भी पानी नहीं मिलेगा अर्थात् बिना पानी के पैदावार नहीं होगी।
Posted on 20 Mar, 2010 12:35 PM माघ सुदी पून्यो दिवस, चन्द्र निर्मलो जोय। पसु बेंचो कन संग्रहों, काल हलाहल होय।।
भावार्थ- यदि माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा स्वच्छ हो अर्थात् बादल न हों तो हे किसान! अपने जानवरों को बेचकर अन्न को इकट्ठा कर लो, क्योंकि भीषण अकाल पड़ने वाला है।