भारत

Term Path Alias

/regions/india

दस हल राव आठ हल राना
Posted on 22 Mar, 2010 01:15 PM
दस हल राव आठ हल राना।
चार हलों का बड़ा किसाना।।


भावार्थ- जिस किसान के पास दस हल की खेती है वह राव के बराबर है, जिसके पास आठ हल की खेती है वह राना है और जिसके पास चार हल की खेती है वह बड़ा किसान होता है।

जब बरसै तब बाँधों क्यारी
Posted on 22 Mar, 2010 01:13 PM
जब बरसै तब बाँधों क्यारी।
बड़ा किसान जो हाथ कुदारी।।


भावार्थ- वर्षा होते ही तुरन्त खेत में क्यारी बाँधनी चाहिए। वही किसान बड़ा है जिसके हाथ में सदैव कुदाल रहती है।

उत्तम खेती आप सेती
Posted on 22 Mar, 2010 01:11 PM
उत्तम खेती आप सेती। मध्यम खेती भाई सेती।
निकृष्ट खेती नौकर सेती। बिगड़ गई तो बलाये सेती।।


भावार्थ- जो किसान का कार्य स्वयं करता है वह उत्तम होता है, जो भाई के भरोसे रहता है। वह मध्यम होता है और जो नौकर के भरोसे खेती कराता है वह निकृष्ट होता है। उसकी खेती यदि बिगड़ गयी तो नौकर की बला से।

उत्तम खेती जो हर गहा
Posted on 22 Mar, 2010 12:49 PM
उत्तम खेती जो हर गहा। मध्यम खेती जो सँग रहा।
जो पूछेसि हरवाहा कहाँ। बीज बूड़िगे तिनके तहाँ।।


भावार्थ- घाघ कहते हैं कि किसान स्वयं हल जोतता है उसकी खेती श्रेष्ठ होती है, जो हलवाहे के साथ रहता है उसकी मध्यम, लेकिन जो यह पूछता है कि हलवाहा कहाँ हैं? उसका बीज भी व्यर्थ चला जाता है।

अहिर बरदिया ब्राह्मन हारी
Posted on 22 Mar, 2010 12:43 PM
अहिर बरदिया ब्राह्मन हारी।
गई सावनी और असाढ़ी।।


शब्दार्थ- हारी- हलवाहा।

भावार्थ- यदि अहीर बैलों का व्यापारी और ब्राह्मण हलवाहा हो तो आषाढ़ और सावन के महीने यों ही बीत जाते हैं जिससे फसलें मारी जाती हैं।

किसान सम्बन्धी कहावतें
Posted on 22 Mar, 2010 12:41 PM
असाढ़ मास जो गँवही कीन।
ताकी खेती होवै हीन।।


शब्दार्थ- गँवही-गमन, मेहमानी।

भावार्थ- यदि किसान आषाढ़ मास में मेहमानी करता फिरता है तो उसकी खेती कमजोर या नष्ट हो जाती है क्योंकि यह समय खेती के काम के लिए उपयुक्त होता है।

हथिया में हाथ गोड़ चित्रा में फूल
Posted on 22 Mar, 2010 12:31 PM
हथिया में हाथ गोड़ चित्रा में फूल।
चढ़त सेवाती झम्पा झूल।


भावार्थ- हस्त नक्षत्र में जड़हन (धान) की फसल में डण्ठल निकलना शुरू होता है। चित्रा में फूल निकलने लगता है और स्वाति नक्षत्र के प्रारम्भ में बालें लटक आती है।

सब कार हर तर
Posted on 22 Mar, 2010 12:29 PM
सब कार हर तर।
जो खसम सीर पर।।


शब्दार्थ- सीर-जमीन। कार- काम।

भावार्थ- यदि जमीन का मालिक स्वयं खेती के सारे काम करें तो खेती कुल पेशों से उत्तम है।

सर्व तपै जो रोहिणी
Posted on 22 Mar, 2010 12:26 PM
सर्व तपै जो रोहिणी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।


भावार्थ- यदि रोहिणी पूरी तरह से तपे और मूल में भी उसी तरह गर्मी रहे और जेठ की परिवा भी उसी प्रकार तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे, ऐसा घाघ का मानना है।

बिधि का लिखा न होवै आन
Posted on 22 Mar, 2010 12:24 PM
बिधि का लिखा न होवै आन। बिना तुला ना फूटै धान।।
सुख सुखराती देवउठान। तेकरे बरहे करौ नेमान।।
तेकरे बरहे खेत खरिहान। तेकरे बरहे कोठिलै धान।।

×