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ऊगी हरनी फूले कास
Posted on 23 Mar, 2010 09:46 AM
ऊगी हरनी फूले कास।
अब का बोये निगोड़े मास।।


शब्दार्थ- निगोड़े-आलसी, निठल्ला। मास-उड़द। हरनी-अगस्त नामक तारा।

भावार्थ- अब आसमान में अगस्त तारे का उदय हो गया है और ‘कास’ भी फूल गये हैं तो ऐ निठल्ला किसान! अब उड़द बोने से क्या लाभ?

ऊख सरवती दिवला धान
Posted on 23 Mar, 2010 09:23 AM
ऊख सरवती दिवला धान।
इन्हें छाड़ि जनि बोओ आन।।


शब्दार्थ- सरवती-सरौती नामक ईख।

भावार्थ- घाघ का कहना है कि ईख में सरौती ईख और धान में देहुला नामक धान बोना चाहिए क्योंकि इनमें पैदावार अधिक होती है। अतः इन्हीं की बुआई करनी चाहिए अन्य की नहीं।

अगहन जो कोउ बोवै जौवा
Posted on 23 Mar, 2010 09:21 AM
अगहन जो कोउ बोवै जौवा।
होई तो होई नहीं खावै कौवा।।


भावार्थ- अगहन मास में जौ की बोवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस मास में बोने से फसल ठीक नहीं होती है और उसे कौवे ही खा जाते हैं।

अगहन बवा
Posted on 23 Mar, 2010 09:19 AM
अगहन बवा।
कहूँ मन कहूँ सवा।।


भावार्थ- यदि अगहन मास में गेहूँ, जौ की बोवाई होती है तो कहीं बीघा पीछे मन भर और कहीं सवा मन की उपज होती है अर्थात् अगहन में बोवाई से पैदावार कम हो जाती है।

अद्रा में जो बोवै साठी
Posted on 23 Mar, 2010 09:16 AM
अद्रा में जो बोवै साठी।
दुःखै मार निकारै लाठी।।


भावार्थ- जो किसान आर्द्र मे साठी धान बो दे तो वह दरिद्रता को घर से डण्डे मार कर नकाल सकता है।

आधे हथिया मूरि-मुराई
Posted on 23 Mar, 2010 09:14 AM
आधे हथिया मूरि-मुराई।
आधे हथिया सरसों राई।।


भावार्थ- हस्त नक्षत्र के पूर्वार्द्ध में मूली और उत्तरार्द्ध में सरसों, राई आदि के बीज की बोवाई करनी चाहिए।

अद्रा धान पुनर्बसु पैया
Posted on 23 Mar, 2010 09:08 AM
अद्रा धान पुनर्बसु पैया।
गया किसान जो रोप चिरैया।।


भावार्थ- धान को आर्द्रा नक्षत्र में रोपने से फसल अच्छी होती है। पुनर्वसु नक्षत्र में रोपने पर केवल पैया (बिना चावल का धान) ही हाथ आयेगा और जो किसान धान की रोपाई पुष्य नक्षत्र में करते हैं तो कुछ भी हाथ नहीं लगता है।

अद्रा रेड़ पुनर्बसु पाती
Posted on 23 Mar, 2010 08:58 AM
अद्रा रेड़ पुनर्बसु पाती।
लाग चिरैया दिया न बाती।।


शब्दार्थ- रेड़-धान का उस स्थिति में पहुँचना जब बालें निकलती हैं। पाती-पत्ती।
आगिल खेती आगे आगे
Posted on 22 Mar, 2010 05:00 PM
आगिल खेती आगे आगे।
पाछिल खेती भागे जोगे।।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि आगे बोई जाने वाली फसल पहले ही तैयार हो जाती है और समय निकल जाने पर पीछे बोई जाने वाली फसल भाग्य के ही भरोसे होती है।

बोवाई सम्बन्धी कहावतें
Posted on 22 Mar, 2010 04:55 PM
अगहर खेती अगहर मार।
घाघ कहैं तौ कबहुँ न हार।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि खेती और मारपीट के मामले में पहल करने वाला व्यक्ति कभी हारता नहीं है। लड़ाई-झगड़े में पहले मारने की नीति को सर्वत्र श्रेय दिया जाता है लेकिन खेती के मामले में हमेशा अगहर होना लाभदायक नहीं होता, फिर भी लाभ की सम्भावना अधिक होती है।

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