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बाली छोटी भई काहें
Posted on 22 Mar, 2010 04:11 PM
बाली छोटी भई काहें।
बिना असाढ़ के दो बाहें।।


भावार्थ- गेंहूँ की फसल में छोटी बाली होने का प्रमुख कारण है कि उसे आषाढ़ में दो बार नहीं जोता गया था।

बाहे क्यों न असाढ़ यक बार
Posted on 22 Mar, 2010 04:04 PM
बाहे क्यों न असाढ़ यक बार।
अब क्यों बाहे बारम्बार।।


भावार्थ- यदि गेहूँ बोने वाले खेत को आषाढ़ मास में एक बार नहीं जोता तो बोते समय कई बार जोतने से कोई फायदा नहीं होता है।

नौ नसी – एक कसी
Posted on 22 Mar, 2010 04:00 PM
नौ नसी – एक कसी।।

भावार्थ- नौ बार हल से जोतने से अच्छा एक बार फावड़े से मिट्टी को उलट दे।

दस बाहों का माड़ा
Posted on 22 Mar, 2010 03:56 PM
दस बाहों का माड़ा।
बीस बाहों का गाँड़ा।।


शब्दार्थ- बाहों-जुताई। गाँड़ा – ईख।

भावार्थ- किसान को अच्छी पैदावार के लिए गेहूँ के खेत को दस बार और ईख के खेत को बीस बार जोतना चाहिए।

दाना अरसी
Posted on 22 Mar, 2010 03:52 PM
दाना अरसी, बोया सरसी।

शब्दार्थ- दाना- पोस्ता।

भावार्थ- पोस्ता और अलसी के खेत की मिट्टी सरस अर्थात् नमी वाली होनी चाहिए, तब उसके बीज जमते हैं और अच्छी फसल होती है।

थोड़ा जोतै बहुत हेंगावै
Posted on 22 Mar, 2010 03:50 PM
थोड़ा जोतै बहुत हेंगावै, ऊँच न बाँधै आड़।
ऊँचे पर खेती करै, पैदा होवै भाड़।।


शब्दार्थ- आड़- मेंड़। भाड़-भड़भाड़ (घमोय या सत्यानाशी, एक काँटेदार चितकबरा पत्ती वाला पौधा)।

भावार्थ- कम जोते और अधिक सिरावन दे, ऊँची जगह पर खेती करे और मेड़ न वाँधे तो वहाँ भड़भाड़ ही पैदा होंगे।

थोर जोताई बहुत हेंगाई
Posted on 22 Mar, 2010 03:48 PM
थोर जोताई बहुत हेंगाई, ऊँचे बाँधै आरी।
खेत जो तोरे उपजै नाहीं, घाघै दीह गारी।।


शब्दार्थ- थोर – कम। हेंगाई – पाटे से सिरावन देना। आरी – मेंड़।

भावार्थ- कम जुताई से और बहुत बार हेंगाई करने से एवं मेंड़ बाँधने से अन्न की उपज अच्छी होती हैं। घाघ कहते हैं कि यदि ऐसा न हो तो मुझे गाली देना।

तेरह कातिक तीन अषाढ़
Posted on 22 Mar, 2010 03:46 PM
तेरह कातिक तीन अषाढ़।
जो चूका सो गया बजार।।


शब्दार्थ- चूका- भूलना।

भावार्थ- जो किसान तेरह बार कार्तिक और तीन बार आषाढ़ में खेत जोतने से चूका, वह बाजार से ही अन्न खरीद कर खायेगा अर्थात् जो ऐसा नहीं करेगा उसे अन्न नहीं मिलेगा।

जोंधरी जोतै तोड़ मड़ोर
Posted on 22 Mar, 2010 03:42 PM
जोंधरी जोतै तोड़ मड़ोर।
तब वह डारै कोठिला फोर।।


भावार्थ- जोंधरी के खेत की जुताई अधिक करनी चाहिए। यदि किसान ने ऐसा किया तो पैदावार इतनी अधिक होगी कि कोठिले में नहीं समायेगी।

जब सैल खटाखट बाजै
Posted on 22 Mar, 2010 03:39 PM
जब सैल खटाखट बाजै।
तब चना खूब ही गाजै।।


शब्दार्थ- सैल-हल के किनारे पर लगाई जाने वाली खूँटी।

भावार्थ- जिस खेत में ढेले अधिक हों और जुताई के समय बैलों के जुए की सैल खट-खट बजती रहे, उस खेत में चने की अच्छी पैदावार होगी।

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