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खेती करै खाद से भरै
Posted on 23 Mar, 2010 01:26 PM
खेती करै खाद से भरै।
सौ मन कोठिला में लै धरै।।


भावार्थ- अच्छी खेती के लिए अधिक खाद की आवश्यकता होती है। यदि खेत में खाद अधिक है तो पैदावार इतनी अधिक होगी कि कोठिला अन्न से भर जायेंगे।

खाद परै तो खेत
Posted on 23 Mar, 2010 01:23 PM
खाद परै तो खेत।
नहीं तो कूड़ा रेत।।


भावार्थ- यदि खेत में देशी खाद पड़े तभी खेत खेती के योग्य बनता है अन्यथा कूड़ा-करकट और रेत के समान हो जाता है।

खाद सम्बन्धी कहावतें
Posted on 23 Mar, 2010 01:14 PM
खेते पाँसा जो न किसाना।
उसके घरे दरिद्र समाना।।


शब्दार्थ- पाँसा- खाद, पास।

भावार्थ- जो कृषक अपने खेत में खाद नहीं डालता, उसके घर में दरिद्रता का वास होता है। एक अन्य आशय यह भी है कि जो किसान कभी खेत के समीप नहीं जाता है सदा दूसरों से ही खेती कराता है उसके घर में दरिद्रता निवास करती है।

सभी किसानी हेठी
Posted on 23 Mar, 2010 01:11 PM
सभी किसानी हेठी।
अगहनिया पानी जेठी।।


भावार्थ- जो किसान अगहन मास में खेत की सिंचाई करता है, वह अन्य किसान से श्रेष्ठ होता है क्योंकि उसकी फसल अच्छी होती है।

धान, पान औ खीरा
Posted on 23 Mar, 2010 01:10 PM
धान, पान औ खीरा।
तीनों पानी के कीरा।।


भावार्थ- धान, पान और खीरा ये तीनों पानी के कीड़े हैं। ये पानी के ऊपर ही निर्भर होते है।

धान, पान, उखेरा
Posted on 23 Mar, 2010 01:08 PM
धान, पान, उखेरा।
तीनों पानी के चेरा।।


भावार्थ- धान, पान और ईख तीनों पानी के गुलाम हैं अर्थात् इनकी फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

तरकारी है तरकारी
Posted on 23 Mar, 2010 01:06 PM
तरकारी है तरकारी।
या में पानी की अधिकारी।।


भावार्थ- तरकारी को सदैव तर रखना चाहिए। इसमें सिंचाई की अधिकता होनी चाहिए।

सिंचाई सम्बन्धी कहावतें
Posted on 23 Mar, 2010 12:57 PM
काले फूल न पाया पानी।
धान मरा अध बीच जवानी।।


भावार्थ- यदि धान का फूल काला हो गया हो और उसे पानी नहीं मिला तो समझो वह आधी जवानी में ही मर जायेगा अर्थात् फसल नष्ट हो जायेगी।

हस्त न बज री
Posted on 23 Mar, 2010 12:55 PM
हस्त न बज री, चित्रा न चना।
स्वाति न गोहूँ, बिसाखा न धना।।


भावार्थ- हस्त नक्षत्र में बाजरा, चित्रा में चना, स्वाति में गेंहूँ और विशाखा नक्षत्र में धान बोने से फसल चौपट हो जाती है।

हरिन फलांगन काकरी
Posted on 23 Mar, 2010 12:45 PM
हरिन फलांगन काकरी, पैगे पैग कपास।
जाय कहो किसान से, बोवै घनी उखार।।


शब्दार्थ- उखार-ईख, गन्ना।

भावार्थ- हिरण के एक छलांग की दूरी पर ककड़ी और मनुष्य के कदम-कदम की दूरी पर कपास का बीज बोना चाहिए। घाघ का कहना है कि किसान से जाकर कहो कि ईख को घनी बोवे।

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